Section 63 Contract Act 1872
Section 63 Contract Act 1872 in Hindi and English
Section 63 Contract Act 1872 :Promisee may dispense with or remit performance of promise - Every promisee may dispense with or remit, wholly or in part, the performance of the premise made to him, or may extend the time for such performance or may accept instead of it any satisfaction which he thinks fit.
Illustrations
(a) A promises to paint a picture for B. B afterward forbids him to do so. A is no longer bound to perform the promise.
(b) A owes B 5,000 rupees. A pays to B, and B accepts, in satisfaction of the whole debt, 2,000 rupees paid at the time and place at which the 5,000 rupees were payable. The whole debt is discharged.
(c) A owes B 5,000 rupees. C pays to B 1,000 rupees, and B accepts them, in satisfaction of his claim on A. This payment is a discharge of the whole claim.
(d) A owes B, under a contract, a sum of money, the amount of which has not been ascertained. A, without ascertaining the amount, gives to B, and B, in satisfaction thereof, accepts, the sum of 2,000 rupees. This is a discharge of the whole debt, whatever may be its amount.
(e) A owes B 2,000 rupees, and is also indebted to another creditor. A makes an arrangement with his creditors, including B, to pay them a composition of eight annas in the rupee upon their respective demands. Payment to B of 1,000 rupees is a discharge of B's demand.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 63 of Contract Act 1872 :
Govindbhai Gordhanbhai Patel & vs Gulam Abbas Mulla Allibhai & Ors on 17 December, 1976
All India Power Engineer vs Sasan Power Ltd. & Ors. Etc on 8 December, 2016
Citi Bank N.A vs Standard Chartered Bank & Others on 8 October, 2003
Citibank N.A vs Standard Chartered Bank on 7 July, 2004
Chrisomar Corporation vs Mjr Steels Private Limited on 14 September, 2017
Asha John Divianathan vs Vikram Malhotra . on 26 February, 2021
M/S. Kailash Nath Associates vs Delhi Development Authority & Anr on 9 January, 2015
Kapur Chand Godha vs Mir Nawab Himayatalikhan Azamjah on 12 April, 1962
Keshavlal Lallubhai Patel And vs Lalbhai Trikumlal Mills Ltd on 21 March, 1958
The Union Of India vs Kishorilal Gupta And Bros on 21 May, 1959
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 63 का विवरण : - वचनग्रहीता वचन के पालन से अभिमुक्ति या उसका परिहार दे या कर सकेगा-- हर वचनग्रहीता अपने को दिये गए किसी वचन के पालन से अभिमुक्ति या उसका परिहार पूर्णत: या भागतः दे या कर सकेगा, या ऐसे पालन के लिए समय बढ़ा सकेगा, या उसके स्थान पर किसी तुष्टि को, जिसे वह ठीक समझे प्रतिग्रहीत कर सकेगा।
दृष्टान्त
(क) 'ख' के लिए क' एक रंगचित्र बनाने का वचन देता है। तत्पश्चात् ‘ख’ उससे वैसा करने का निषेध कर देता है। ‘क’ उस वचन के पालन के लिए अब आबद्ध नहीं है।
(ख). 'ख' का 'क' 5,000 रुपये का देनदार है। ‘क’ उस समय और स्थान पर, जिस पर 5,000 रुपये देय थे, ‘ख’ को 2,000 रुपये देता है और ‘ख’ सम्पूर्ण ऋण की तुष्टि में उन्हें प्रतिग्रहीत कर लेता है। सम्पूर्ण ऋण का उन्मोचन हो जाता है
(ग) 'ख' का 'क' 5,000 रुपये का देनदार है। ‘ख’ को ‘ग' 1,000 रुपये देता है और ‘ख’ उन्हें 'क' पर अपने दावे की तुष्टि में प्रतिग्रहीत कर लेता है। यह संदाय सम्पूर्ण दावे का उन्मोचन है।
(घ) 'क' एक संविदा के अधीन ‘ख’ को ऐसी धनराशि का देनदार है जिसका परिमाण अभिनिश्चित नहीं किया गया है। 'क' परिमाण अभिनिश्चित किए बिना, ‘ख’ को 2,000 रुपये देता है और ‘ख’ उसे उसकी तुष्टि में प्रतिग्रहीत कर लेता है। यह सम्पूर्ण ऋण का उन्मोचन है चाहे उसका परिमाण कुछ भी हो।
(ङ) 'ख' का 'क' 2,000 रुपये का देनदार है और अन्य लेनदारों का भी ऋणी है। ‘ख’ समेत लेनदारों से 'क' उनकी अपनी-अपनी मांगों का प्रशमन करने के लिए उन्हें रुपये में आठ आने देने का ठहराव करता है। ‘ख’ को 1,000 रुपये का संदाय 'ख' की माँग का उन्मोचन है।
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