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Showing posts from July, 2020

Some Questions & Answers in Hindi on Women's Position in Indian Constitution

Some Questions & Answers in Hindi on Women's Position in Indian Constitution महिला संगठन / Women Organizations Roles प्रश्न - क्या महिला संगठन न्यायालय के असंतोषजनक निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकते हैं?  उत्तर - जी हां| न्यायालय की आज्ञा से ऐसा कर सकते हैं| सुधा गोयल केस में पीड़ित सुधा गोयल को दहेज के लिए उनके पति लक्ष्मण, सास शकुंतला देवी ,देवर सुभाष द्वारा जला दिया गया था| सेशन जज ने मुजरिमों को मौत की सजा सुनाई परंतु उच्च न्यायालय ने उन लोगों को रिहा कर दिया| परिवादी सुधा के भाई ने 14 महिला संगठनों को साथ लेकर उत्तम न्यायालय से अपील के लिए विशेष इजाजत प्राप्त की उच्चतम न्यायालय ने लक्ष्मण( पति) के रिहाई के आदेश को बदल दिया तथा उसे सजा सुनाई| रोजगारों में समानता / Equal Opportunities in Public Employment for Women प्रश्न :- सार्वजनिक रोजगारों में  महिलाओं के लिए समानता बनाए रखने के लिए क्या राज्य वाद्य है ?  उत्तर :-  जी हां भारतीय संविधान के विशेष आदेश सार्वजनिक पदों तथा रोजगारों में किसी भी तरह के भेदभाव को मना करते हैं| अतः सार्वजनिक रोजगार  में महिलाओं के लिए समानता बनाए र

Plaint or Pleading related Questions and Answers in Hindi

Plaint or Pleading related Questions and Answers in Hindi | Civil Procedure Code related questions on plaint and Pleadings मुकदमे का कालचक: अभीवचन या (प्लीडिंग)  प्रश्न :- कोई दीवानी मुकदमा कैसे प्रारंभ होता है | उत्तर :- दीवानी मुकदमा न्यायालय मे वाद पत्र प्रस्तुत होने के बाद शुरू होता है | यह या तो व्यक्तिगत रूप से किया जा सकता है अथवा किसी वकील या फिर किसी अधिकृत एजेंट द्वारा किया जा सकता है | प्रश्न  :- प्लीडिंग (अभिवचन) किसे कहते हैं ?  उत्तर :- अभी वचन का तात्पर्य मुख्यतः वाद पत्र या लिखित जवाब होता है | यह काम व्यक्ति स्वयं या अपने वकील के द्वारा या किसी मनोनीत एजेंट के द्वारा भी करा सकता है | प्रश्न  :- प्लीडिंग (अभिवचन) वचन में क्या लिखना चाहिए ?  उत्तर :- (क) किसी अभिवचन में उन सभी सार मुक्त तथ्यों को लिखना चाहिए जिसके ऊपर वादी मुकदमे का आधार बनता है | इसमें सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होती है | दीवानी प्रक्रिया संहिता तथा में जो बिल्डिंग (अभिवचन) होते हैं | यह याचिका या काउंटर एफिडेविट की प्लीडिंग से भिन्न होती है | दीवानी प्रक्रिया में केवल तथ्यों की जरूरत होती है जबकि याचि

Right to Equality and Natural Justice Principle in Indian Constitution in Hindi

Right to Equality and Natural Justice Principle in Indian Constitution - E P Royappa to Maneka Gandhi Case - A short journey  समता का नया आयाम - नैसर्गिक न्याय - मनमानेपन के विरुद्ध संरक्षण इ० पी०रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने समता की पारंपरिक धारणा को जोकि युक्ति वर्गीकरण के सिद्धांत पर आधारित है मानने से अस्वीकार कर दिया है और एक नया दृष्टिकोण अपनाया है| यदि पति श्री भगवती ने बहुमत का निर्णय सुनाते हुए यह कहा है कि" समता एक गतिशील धारणा है जिसके अनेक रूप और आयाम है और इसे परंपरागत और सिद्धांत वाद की सीमाओं से नहीं बांधा जा सकता है| अनुच्छेद 14 राज्य की कार्यवाही यों में मनमाने पन को वर्जित करता है और समान व्यवहार की अपेक्षा करता है युक्तियुक्तका का सिद्धांत समता के सिद्धांत का एक आवश्यक तत्व है जो अनुच्छेद 14 में सर्वदा विद्यमान रहता है| वस्तुत: समता और मनमाना पर एक दूसरे के शत्रु हैं जहां कोई कार्य मनमाना किया जाएगा वहां और समानता अवश्य होगी और अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण होगा| मेनका गांधी बनाम भारत संघ के महत्वपूर्ण मामले में न्यायाधीश श्री भगवती न, इ०

Pradeep Tandon vs Union of India Case Summary in Hindi

Pradeep Tandon vs Union of India Case Summary in Hindi - This case is a leading case on article 14 प्रदीप टंडन बनाम भारत संघ के अपने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यह अनिर्धारित किया है कि कुछ राज्यों द्वारा राज्य में केवल अधिवास या निवास स्थान के आधार पर योग्यता पर विचार किए बिना ए०बी०बी०एस० और एम० एस० तथा एम०डी० पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सभी स्थानों का आरक्षण किया जाना अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण है  अता: असंवैधानिक है| न्यायाधिपथी ए०एन०सेठ और रंगनाथ मिश्र और अपनी ओर से न्यायाधिपथी श्री भगवती ने बहुमत का निर्णय सुनाते हुए या कहा कि उपयुक्त पाठ्यक्रमों में प्रवेश योग्यता के आधार पर किया जाना चाहिए ना कि केवल विशेष राज्य में निवास अथवा विशेष संस्था के छात्र होने के आधार पर| उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए किसी योजना का उद्देश्य योग्यतम व्यक्तियों का चुनाव करना होना चाहिए योग्यता केवल निवास या अधिवास के आधार पर निर्धारित नहीं की जा सकती है इसके लिए अनेक बातों पर ध्यान देना चाहिए| योग्यता में उत्तम प्रज्ञा के साथ-साथ क्यों मस्तिष्क मूल विषयों का गहन ज्ञान कठिन परिश्रम क

D S Nakara vs Union of India Case Summary in Hindi

D S Nakara vs Union of India Case Summary in Hindi - This is a leading case on Article 14 of Indian Constitution डी एस नकारा बनाम भारत संघ के मामले में सेंट्रल सर्विसेज जून 1972 को इस आधार पर अविधिमान्य ही मान्य घोषित किया गया है कि उसके द्वारा एक निश्चित तिथि के पूर्व सेवानिवृत्त होने वाले टेंशन होगी और उसके पश्चात सेवानिवृत्त होने वाले पेंशन भोगियों में किया गया वर्गीकरण आयुक्त एवं बनवाना है| न्यायाधिपथी श्री देसाई ने अनुच्छेद 14 में निहित समता के सिद्धांत और उसके निर्धारण की कसौटी को दोहराते हुए कहा है कि अनुच्छेद 14 वर्ग विधान का प्रतिषेध करता है, युक्ति वर्गीकरण को नहीं बसंती की वर्गीकरण उक्त कसौटीओं के आधार पर किया गया हो| मानव समाज का गठन और सम्मान व्यक्तियों से होता है और एक कल्याणकारी राज्य समाजिक आर्थिक रूप से कम भाग्यशाली लोगों की दशा सुधारने का प्रयास करता है जिसके लिए उसे विशेष विधि बनानी होती है जो उन पर लागू हो और उनकी दशा सुधारें| इसके लिए ही न्यायालय ने वर्गीकरण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है ताकि उन कानूनों को विधि मानने रखा जा सके| किंतु राज्य को ऐसा करते  समय उक्त

मिट्ठू बनाम पंजाब राज्य | Mithu vs State of Punjab case summary in Hindi

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Mithu vs State of Punjab case summary in Hindi मिट्ठू बनाम पंजाब राज्य के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 303 को इस आधार पर अवैध घोषित कर दिया गया है कि दो प्रकार की अपराधियों के बीच मृत्युदंड देने के मामले में जेल में आजीवन सजा काट रहे व्यक्ति द्वारा मृत्यु कार्य करना वह जो सजा नहीं काट रहे हैं उनके द्वारा कृत कार्य करना में किया गया वर्गीकरण किसी तर्कसंगत सिद्धांत पर आधारित नहीं है| धारा 303 के अधीन जेल में आजीवन कारावास काट रहे अपराधी द्वारा मानव वध करने पर केवल मृत्युदंड दिए जाने का प्रावधान है जबकि धारा 302 के अधीन मानववाद के मामले में न्यायालय मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास दोनों में से कोई सजा दे सकता है धारा 303 के अधीन यह न्यायिक विकल्प अपराधी को नहीं उपलब्ध है इस प्रकार व्यक्ति अपराधियों के बीच किया गया वर्गीकरण का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है और वह अविधिमान्य है|

Meaning and Explanation of Article 14 of Indian Constitution in Hindi

Meaning and Explanation of Article 14 of Indian Constitution in Hindi उच्चतम न्यायालय ने अनेक विषयों के अनुच्छेद 14 के अर्थ एवं विस्तार का विवेचन किया है| In Re Special Bill स्पेशल बिल के मामले में Hon'ble Justice Chandrchud ने अनुच्छेद 14 में लागू होने वाले सिद्धांतों को reformulate किया है| इसकी श्री Seervai महोदय ने आलोचना की है| उनका मत है कि  न्यायधीपति श्री चंद्रचूड़ ने डालमिया जैन के मामले में निरूपित सिद्धांतों को बिना गलत बताए हुए निरूपित किया है और इस प्रकार एक सुनिश्चित विधि को अनिश्चित  बना दिया है जो उचित नहीं है| श्री  फिरवही का मत सही है| ऐसी दशा में डालमिया जैन के मामले में निरूपित सिद्धांतों को यहां दिया जा रहा है क्योंकि वे अभी भी विद्यमान है| (1) कोई विधि संवैधानिक हो सकती है यदि वह एक व्यक्ति विशेष से ही संबंध रखती है| यदि किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण जो उस पर लागू होती है किंतु दूसरों पर लागू नहीं होती तो ऐसी दशा में उस अकेले व्यक्ति को ही एक वर्ग माना जा सकता है| (2) उदाहरण सदैव किसी अधिनियम की संवैधानिकता के पक्ष में की जाती है और यही साबित करने का भार

Reasonable Classification Test in Hindi - Article 14 of Constitution of India

Reasonable Classification Test in Hindi - Article 14 of Constitution of India युक्त वर्गीकरण की कसौटी(Test Of Reasonable Classification)  अनुच्छेद 14 वर्ग विधान का निषेध करता है किंतु वर्गीकरण की अनुमति देता है मगर वर्गीकरण सही होना चाहिए मनमाना नहीं अन्यथा वह असंवैधानिक होगा| यह सच है कि प्रत्येक वर्गीकरण कुछ मात्रा में और समानता उत्पन्न करता है लेकिन केवल और समानता पैदा करना मात्र ही पर्याप्त नहीं है| उत्पन्न हुई और समानता सही और  स्वेच्छाचारी होनी चाहिए| यदि कोई विधि किसी विशेष वर्ग के सभी सदस्यों के साथ समान व्यवहार करती है तो उस पर यह आपत्ति नहीं की जा सकती है कि वह अन्य व्यक्तियों पर लागू नहीं होती और इसीलिए व्यक्ति विशेष को क्षमता के संरक्षण से वंचित करती है| यदि एक वर्ग के सभी व्यक्तियों में हुई विभिन्न नहीं किया गया है तो ऐसी विधि संवैधानिक होगी| इस प्रकार अनुच्छेद 14 राज्य द्वारा व्यक्तियों तथा वस्तु में वर्गीकरण की शक्ति पर केवल एक ही निर्बंध लगाता है और वह यह कि वर्गीकरण अयुक्त और मनमाना नहीं होना चाहिए| इससे यह स्पष्ट है कि राज्य द्वारा व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के वर्गीकरण

Reasonable Classification and Article 14 of Constitution in Hindi

Reasonable Classification and Article 14 of Constitution in Hindi अनुच्छेद 14 वर्गीकरण की अनुमति देता है, किंतु वर्ग- विधान का निषेध करता है- " विधि के समक्ष समता" का अर्थ यह नहीं है कि एक ही विधि सभी व्यक्तियों पर समान रूप में लागू की जा सकती हो| समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक विधि का सब पर प्रयोग समान रूप से होता है, क्योंकि सभी व्यक्ति प्रकृति, योग्यता या परिस्थितियों मैं समान नहीं होते| व्यक्तियों के विभिन्न वर्गो की आवश्यकताएं अलग-अलग होती है| इसीलिए भिन्न-भिन्न व्यक्तियों और स्थानों के लिए भिन्न भिन्न विधि होनी चाहिए| एक ही विधि प्रत्येक स्थान में लागू नहीं होनी चाहिए| असमान सम्मान परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लिए एक ही विधि लागू करना और समानता होगी| इसलिए यह वर्गीकरण जरूरी ही नहीं आवश्यक भी है| अनेक न्यायिक निर्णयों में न्यायपालिका ने यह स्वीकार किया है कि सामाजिक व्यवस्था को समुचित ढंग से चलाने के लिए अनुच्छेद 14 में राज्य को वर्गीकरण करने की शक्ति प्राप्त है| यह वर्गीकरण भिन्न-भिन्न आधारों पर हो सकता है, जैसे- भौगोलिक स्थिति या उद्देश्यों या पेशों या ऐस

Citizens and Non Citizens have protection of Article 14 in Hindi

Citizens and Non Citizens have protection of Article 14 in Hindi अनुच्छेद 14 का संरक्षण' नागरिक' और 'अनागरिक' दोनों को प्राप्त है- अनुच्छेद 14 में 'नागरिक' शब्द के स्थान पर 'व्यक्ति' शब्द का प्रयोग किया गया है इसका तात्पर्य है कि यह अनुच्छेद भारत के क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों को, चाहे वह भारत का नागरिक हो या विदेशी हो विधि के समक्ष समता का अधिकार प्रदान करता है भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति चाहे भारतीय नागरिक हो  अथवा नहीं, समान विधि के अधीन होगा और उसे विधि का समान संरक्षण प्रदान किया जाएगा इसके विपरीत अनुच्छेद 15,16,17 ,18 आदि के  उपबन्धों का लाभ केवल 'नागरिकों' को ही प्राप्त है अनुच्छेद 14 में  उल्लिखित मूल अधिकार सभी व्यक्तियों को ही प्राप्त है अनुच्छेद 14 नागरिक और अनागरिक मैं कोई भेद नहीं करता है विधि के समक्ष समता का अधिकार सभी व्यक्तियों को बिना किसी मूलवंश, रंगभेद और राष्ट्रीयता के भेदभाव के प्रदान किया गया है

Suneel Jatley vs State of Haryana Case in Hindi

Suneel Jatley vs State of Haryana Case in Hindi सुनील जेटली बनाम हरियाणा राज्य के मामले एमबीबीएस और बीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए गांवों के स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक शिक्षा प्राप्त छात्रों के लिए किए गए आरक्षण को इस आधार पर और संवैधानिक घोषित कर दिया गया कि गांवों के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त और शहरी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त छात्रों में किया गया वर्गीकरण किसी बोधगम्य अंतर पर नहीं आधारित है ओरिया अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण करता है तथा और संवैधानिक है| गांव के छात्रों को भी कक्षा 9 से कक्षा 12:00 तक शहरी छात्रों के साथ ही शिक्षा प्राप्त करना होता है| इस प्रकार दोनों प्रकार के छात्र समान परिस्थितियों में ही रहते हैं अतः गांव के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए स्थानों का आरक्षण करना एक प्रति वर्गीकरण है जिसकी अनुमति अनुच्छेद 14 नहीं देता है

Atam Prakash vs State Of Haryana Case in Hindi

Atam Prakash vs State Of Haryana Case in Hindi आत्मप्रकाश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में हरियाणा राज्य में लागू पंजाब पीएमम्पशन एक्ट 1913 की धारा 15 की विधि मान्यता को इस आधार पर चुनौती दी गई कि वह अनुच्छेद 14 ,15 और 39 (से) का अतिक्रमण करता है| अधिनियम की धारा 15 के अधीन संपत्ति विक्रेता के रक्त संबंध वालों के पक्ष में  Pre emotion  के लिए किया गया वर्गीकरण उपयुक्त नहीं है और अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण करता है और असंवैधानिक है| संविधानिक योजना तथा आधुनिक विचारधारा से बिल्कुल असंगत है| धारा 15 में क्रेधिकार के हकदार भाई बंधुओं की सूची त्रुटिपूर्ण है| एक ही श्रेणी के रिश्तेदार इससे बाहर रखे गए हैं क्योंकि वह या तो स्त्री है या स्त्रियों के माध्यम से संबंधित है| जैसे पुत्र की पुत्री पुत्री की पुत्री को सोफा का अधिकार नहीं प्राप्त है जबकि पिता के भाई के पुत्र को यह हक दिया गया है| धारा के अधीन यदि संपत्ति का एकल स्वामी अपने पिता, माता, बहन, बहन का पुत्र,पुत्री की पुत्री या पुत्र की पुत्री को संपत्ति भेजता है तो वह विक्रेता के पिता के भाई का पुत्र सपा के अधिकार का प्रयोग करके इसको रोक सकता ह

K A Abbas vs Union of India Case in Hindi - Reasonable Classification Case

K A Abbas vs Union of India Case in Hindi - Reasonable Classification Case Article 14 of Indian Constitution which is one of the Fundamental Right as per our constitution states that there will be equality before law and equal protection of law which give rise to interpretation of reasonable classification as per Article 14. K A Abbas vs Union of India is a relevant case.  के ए अब्बास बनाम भारत संघ के मामले में चलचित्र अधिनियम 1952 द्वारा चल चित्रों को दो वर्गों यू और अ में विभाजित किए जाने की विधि मान्यता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि वह आयुक्त वर्गीकरण करता है जिससे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है| यू  वर्ग के चल चित्रों का प्रदर्शन सभी के लिए किया जाता है जबकि अ वर्ग के चल चित्रों का प्रदर्शन  केवल बालकों के लिए ही किया जा सकता है पिटीशन ने यह तर्क दिया कि चलचित्र भी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है और उसे अन्य अभिव्यक्ति के माध्यम के साथ समान व्यवहार के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है| चल चित्रों का पूर्ण आरोप लगाया गया है जबकि अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों पर ऐसा रोक नहीं लगाया गया है| पेट

Salient Features of Indian Constitution in Hindi | भारतीय संविधान के प्रमुख लक्षण क्या है?

Salient Features of Indian Constitution in Hindi भारतीय संविधान के प्रमुख लक्षण क्या है?  संविधान के प्रमुख या स्पष्ट दिखाई देने वाले लक्षण संविधान की वे विशेष बातें होती हैं जिससे उसकी अन्य संविधानों से भिन्नता प्रकट होती है| प्रमुख लक्षण का अर्थ आधारित लक्षण नहीं होता | आधारिक लक्षण संविधान के वे उपबंध है जिनका संशोधन नहीं किया जा सकता या जिन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता यह सिद्धांत केसवानंद भारती में प्रतिपादित किया गया था और इसका अनुसरण इसके पश्चात अनेक मामलों में किया गया| List of 100+  Landmark Cases  of Supreme Court India   संविधान के विद्यार्थी को सबसे पहले जो दिखाई पड़ता है वह है संविधान की विशाल काया इसकी तुलना में दूसरे संविधान छोटी सी पुस्तिका दिखाई पड़ते हैं| अमेरिकी संविधान में 5000 से कम शब्द है| कनाडा का जो संविधान 1982 में बना उसकी शब्द संख्या 6500 से भी कम है| हमारे संविधान के इतने विशाल होने के कारण निम्नलिखित है| 1 इसमें राज्य के प्रशासन से संबंधित उपबंध है| अमेरिकी संविधान इससे भिन्न है वहां राज्यों ने अपने अपने संविधान अलग से बनाएं| हमारे संविधान में कनाडा का अनुसर

Civil Procedure Code in Hindi - Some Questions & Answers

Civil Procedure Code in Hindi - Some Questions & Answers प्रश्न :- भारत में दीवानी प्रक्रिया से संबंध मूल अधिनियम क्या है?  उत्तर - दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत इस विषय पर कानून पाए जा सकते हैं  उच्च न्यायालय के द्वारा अपनी तथा अधिनस्थ न्यायालयों की प्रक्रियाओं की नियंत्रित करने के लिए जो नियम बनाए जाते हैं वे संहिता के पूरक ही होते हैं? प्रश्न :- क्या आपराधिक व दीवानी प्रक्रियाओं के मध्य कोई अंतर भी है?  (उत्तर) आपराधिक प्रक्रियाओं में अपराधी को दंड देने का लक्ष्य होता है और प्रक्रिया हमेशा राज्य एवं अपराधी के बीच ही चला करती है | दीवानी प्रक्रिया में संपत्ति की वापसी या धन की प्राप्ति और मुआवजे का आदेश अथवा किसी अधिकारी को आधार बनाकर राहत प्राप्त करने का उद्देश्य होता है जो उस व्यक्ति के पक्ष में उठा रहा होता है जिसे राहत चाहिए प्रश्न :-  क्या राज्य प्रक्रिया में एक पक्ष होता है?  उत्तर :- जी हां राज्य भी एक पक्ष हो सकता है यदि राज्य से अथवा राज्य के विरुद्ध कोई नागरिक अधिकार मांग कर रहा हो | प्रश्न :- यदि राज्य का एक पक्ष होता है तो दीवानी मामले की कार्यवाही क्या भिन्न हो

Women Rights & Protection in Indian Constitution - Some Questions and Answers in Hindi

प्रश्न : भारतीय संविधान में महिलाओं के प्रति सामान्य प्रस्ताव क्या है?  उत्तर : 1 भारतीय संविधान प्रथम यह निश्चित करता है कि महिलाओं और पुरुषों के साथ एक सा बर्ताव किया जाए| 2 यह देखा गया है कि महिलाओं के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है तथा उन्हें छोटा समझा जाता है| 3 संविधान राज्य को बाध्य करता है कि वह समाज के कमजोर वर्गों को जिसमें महिलाएं भी शामिल है, की स्थिति सुधारने के लिए विशेष उपाय करें| 4 संविधान यह भी संबंध करता है कि राज्य महिलाओं का अत्याचार रोकने के लिए कदम उठाए| प्रस्ताव  मौलिक अधिकारों में बताए गए है | तीसरे और चौथे राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में मिलते हैं जिनका पालन करने के लिए राज्य वाद्य है| महिलाओं को समानता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान उपलब्ध प्रश्न : भारतीय संविधान महिला तथा पुरुषों में किस प्रकार समानता सुनिश्चित करता है?   उत्तर - अनुच्छेद 14 यह उपबन्ध करता है कि भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून से समक्ष समता से अथवा कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा| प्रश्न : संविधान महिलाओं के प्रति भेदभाव को किस प्रकार रोकता है?  उत्तर - सं

Rule of Law in Hindi & Exception to Fundamental Right to Equality

 Question here is what is rule of law and what are the exceptions of fundamental right of equality. Rule of Law is a British concept which says no one is above law and people are equal before the law. We have article 14 of Indian constitution but there are exception to this right too. विधि शासन- विधि के समक्ष समता की गारंटी उसी के समान है जिसे इंग्लैंड में विधि शासन कहते हैं" विधि शासन" का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसकी अवस्था या पर जो कुछ भी हो देश की सामान्य विधियों के अधीन और साधारण न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर है राष्ट्रपति से लेकर देश का निधन से निर्धन व्यक्ति समान विधि के अधीन है और बिना औचित्य के किसी कृत्य के लिए समान रूप से उत्तरदाई है इस संबंध में सरकारी अधिकारियों और साधारण नागरिकों में भेद नहीं किया गया है| समता के नियम के अपवाद- अनुच्छेद 14 में निहित क्षमता का नियम absolute  नियम नहीं है और इसके अनेक अपवाद भी हैं उदाहरण के लिए विदेशी कूटनीतिज्ञ को न्यायालय न्यायालय के अधिकार से बाहर रखा गया है इसी प्रकार भारतीय संविधा

IPC in Hindi

Indian Penal Code IPC in Hindi is explained in this post in short / brief which is a major criminal or penal code in India.in क्या है भारतीय दंड संहिता  लार्ड मकौले के द्वारा लिखा गया दंड विधान है इंडियन पीनल कोड।  जब लार्ड मकौले गवर्नर जनरल कौंसिल का लॉ मेंबर बनकर भारत आया तब उसने भारतीय दंड संहिता लिखी । हालाँकि वो भारत से चला गया लेकिन उसके जाने के बाद दो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव भारत में उसने कर दिए।  पहला था भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत और दूसरा था भारतीय दंड विधान।  दंड संहिता उसके इंग्लॅण्ड जाने के तक़रीबन २० साल बाद कुछ बदलाव करते हुए भारत में अपनायी गयी।  भारतीय दंड संहिता १८६० में लागु किया गया लेकिन आज १६० साल बाद भी भारत में चल रहा है । इस कानून में २३ चैप्टर है और ५११ धाराएं। ये ऐसा आपराधिक कानून है जो भारत में विभिन्न तरह के जुर्म क्या है और उसके लिए क्या सजा होगी ये बताता है।  इसके लागु होने के बाद बहुत से स्पेशल कानून भी बने है जो विभिन्न जुर्मों को ध्यान में रखते हुए बनाये गए हैं लेकिन भारतीय दंड संहिता ये बताता है की क्रिमिनल लॉ में इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों का

Right to Equality - समता का अधिकार

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अनुच्छेद 14 से 18 द्वारा संविधान प्रत्येक व्यक्ति को समता का अधिकार प्रदान करता है (क) विधि के समक्ष समता अथवा विधियों के समान संरक्षण का अधिकार अनुच्छेद 14 यह निश्चित करता है कि" भारत राजू क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा"  एक है ' विधि के समक्ष समता' दूसरा है ' विधियों का समान संरक्षण' ' विधि के समक्ष समता' यह वाक्यांश लगभग सभी लिखित संविधान में पाया जाता है जो नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान करते हैं मानव अधिकार घोषणा पत्र का अनुच्छेद साथ यह कहता है कि " विधि के समक्ष सभी समान है और बिना किसी भेदभाव के सभी विधि के संरक्षण के अधिकारी हैं" 'विधि के समक्ष  समता' यह वाक्यांश ब्रिटिश संविधान से लिया गया है जिसे प्रोफेसर डायसी के अनुसार 'रूल ऑफ लॉ' कहते हैं इन दोनों वाक्यांशों का उद्देश्य भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सिटी की समानता( equality of status) की स्थापना करता है वैसे तो यदि देखा जाए तो दोनों वाक्यांशों में समानता

Consumer Protection Act, 2019 notified with effect from 20 July, 2020 [with 20 Salient Features]

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Consumer Protection Act, 2019 notified with effect from 20 July, 2020. The main features of The Consumer Protection Act, 2019 are as follows:- 1. District forum is renamed as District Commission 2. The Opposite Party needs to deposit 50% of the amount ordered by District Commission before filing appeal before State Commission, earlier the ceiling was of maximum of Rs. 25,000/-, which has been removed.  3. The limitation period for filing of appeal to State Commission is increased from 30 days to 45 days, while retaining power to condone the delay.  4. State Commission shall have a minimum of 1 President and 4 Members 5. The original pecuniary jurisdiction of District Commission shall be uptil Rs. 1 Crore, State Commission from 1 Cr – 10 Cr. And NCDRC to be more than Rs. 10 crore 6. Now complainant can also institute the complaint within the territorial jurisdiction of the Commission where the complainant resides or personally works for gain bes

M K Acharya vs CMD West Bengal State Electricity Distribution Co Ltd - Bijli Paane ka Adhikar

ऍम के आचार्य बनाम सी ऍम डी वेस्ट बंगाल इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के केस में कलकत्ता हाई कोर्ट ने यह कहा है की बिजली पाने का अधिकार  अनुच्छेद २१ के अंतर्गत दैहिक स्वाधीनता में आता है क्योंकि आधुनिक युग में बिजली के बिना जीवित रहना संभव नहीं है।  यह केस अनुच्छेद इक्कीस में दी गयी प्राण एवं दैहिक सवतंत्रता का विस्तार दिखाता है।  मेनका गाँधी बनाम भारत सरकार के बाद से उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायलय ने अनुच्छेद इक्कीस की व्याख्या खुले मन से तथा नागरिकों के अधिकारों की विस्तृत रूप से व्याख्या की है  M K Acharya vs CMD West Bengal State Electricity Distribution Co Ltd - Bijli Paane ka Adhikar