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Showing posts from February, 2020

Important Characteristics of Constitution of India in Hindi

भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। Explain the various characteristics of the Constitution of India? भारत का संविधान एक पवित्र दस्तावेज है इसमें विश्व के प्रमुख संविधान ओं की विशेषताएं समाहित हैं यह संविधान निर्मात्री सभा के 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के सतत प्रयत्न, अध्ययन विचार, विमर्श चिंतन एवं परिश्रम का निचोड़ है इसे 26 जनवरी 1950 को संपूर्ण भारत पर लागू किया गया। List of 100+  Landmark Cases  of Supreme Court India   भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नांकित हैं- 1. विशालतम संविधान- सामान्यतया संविधान का आकार अत्यंत छोटा होता है संविधान में मोटी मोटी बातों का उल्लेख कर दिया जाता है और अन्य बातें  अर्थान्वयन के लिए छोड़ दी जाती हैं लेकिन भारत का संविधान इसका अपवाद है भारत के संविधान का आकार ने तो अत्यधिक छोटा रखा गया है और ना ही अत्यधिक बड़ा हमने सभी आवश्यक बातें समाहित करते हुए संतुलित आकार का रखा है। संविधान के मूल प्रारूप में 22 भाग 395 अनुच्छेद तथा 9 अनुसूचियां थी कालांतर में संशोधनों के साथ साथ इनमें अभिवृद्धि होती गई।  ...

गरीकपति वीरवा बनाम एन. सुमिया चौधरी

गरीकपति वीरवा बनाम एन. सुमिया चौधरी भूमिका यह प्रकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 96, 109 एवं 110 से संबंधित है इसमें संविधान का अनुच्छेद 133, 135, 136 एवं 395 भी अंतर वलित है इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय बिंदु अपील के अधिकार की व्याख्या का था। तथ्य प्रत्यर्थी एन. सुमिया चौधरी ने अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर 22. 4. 1949 को अधीनस्थ न्यायालय में एक वाद दायर किया जो 14. 11. 1950 को खारिज कर दिया गया उक्त निर्णय के विरुद्ध वादी प्रत्यय अर्थी द्वारा उच्च न्यायालय में अपील की गई जो 4. 3.1955 को स्वीकार कर ली गई तथा वादी-प्रत्यर्थी का वाद डिक्री कर दिया गया इस पर प्रतिवादी अपील आर्थी द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति चाही गई लेकिन वह इस कारण नहीं दी गई क्योंकि वादग्रस्त संपत्ति का मूल्य केवल 11400 रुपए ही था जबकि अपील के लिए कम से कम ₹20000 की संपत्ति होना जरूरी था प्रतिवादी अपीलार्थी ने उच्चतम न्यायालय से विशेष इजाजत मांगी।  उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील आरती की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि- क.  अपील करने का अधिकार एक ...

डीटी पट्टाभिरामा स्वामी बनाम एस. हनमैय्या

डीटी पट्टाभिरामा स्वामी बनाम एस. हनमैय्या भूमिका यह मामला सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 100 से संबंधित है इसमें  उच्चतम न्यायालय के समक्ष द्वितीय अपील की ग्राहयता का प्रश्न अंतर वलित था। तथ्य मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं इसमें वादी नरासरावपेट नामक स्थान में  स्थित मंदिर के देवता पट्टाभिरामा स्वामी है सन 1868 में बिहार के एक परिवार ने लगभग 12 एकड़ भूमि देवता को समर्पित की थी तथा एक न्यास का सृजन किया था कालांतर में वादी की भूमि पर काम करने वाले व्यक्तियों की मजदूरी के लिए न्यास की ओर से एक अनुबंध उन कार्य करने वाले व्यक्तियों के साथ जो इस मामले में प्रतिवादी संख्या 6 से लगाकर 23  तक है इस आशय  का किया गया कि वे तथाकथित भूमि अपने पास रखेंगे उन व्यक्तियों द्वारा उक्त भूमि का विक्रय कर दिया गया इस पर वादी-देवता की ओर से प्रतिवादी गण के विरुद्ध भूमि का कब्जा प्राप्त करने के लिए वाद दायर किया गया। प्रतिवादी संख्या 1 लगायत 5 द्वारा उत्तर में यह कहा गया कि वे भूमि की वास्तविक क्रेता होने से उसके स्वामी है तथा वादी का उस पर कोई अधिकार नहीं है भूमि...

Seth Hukumchand vs Maharaj Bahadur Singh | सेठ हुकुमचंद बनाम महाराज बहादुर सिंह

Seth Hukumchand vs Maharaj Bahadur Singh | सेठ हुकुमचंद बनाम महाराज बहादुर सिंह भूमिका यह प्रकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 1 नियम 8 से संबंधित है। इसमें पूजा के अधिकार की घोषणा का  प्रश्न अंतर् वलित था। तथ्य प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं सन 1918 में श्वेतांबर जैन समाज ने पर्वतों पर स्थित संपत्ति तीर्थ स्थान आदि पालगंज के राजा से खरीद कर उस पर अपना स्वामित्व स्थापित किया समाज ने उस पर पुजारियों नौकरों एवं यात्रियों के लिए कुछ मकान एवं धर्मशाला बनाई तथा संतरियों व चौकीदारों की नियुक्ति की श्वेतांबर जैन समाज ने वहां एक दरवाजा बनाने की योजना भी बनाई ताकि यात्री आदि पर्वत पर आसानी से जा सके दिगंबर जैन समाज ने इस दरवाजे (फाटक) पर आपत्ति की।  उनका यह कहना था कि श्वेतांबर जैन समाज वाले दरवाजा बना कर दिगंबर जैन समाज के मार्ग के उपयोग में व्यवधान पैदा करना चाहते हैं दिगंबर जैन समाज की ओर से सन 1920 में श्वेतांबर जैन समाज के विरुद्ध सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत एक वाद दायर किया। वाद में यह कहा गया कि पर्वत का प्रत्येक पत्थर...

Shri Sinha Ramanuja vs Ramanuja | श्री सिन्हा रामानुजा बनाम रामानुजा

Shri Sinha Ramanuja vs Ramanuja |  श्री सिन्हा रामानुजा बनाम रामानुजा भूमिका यह मामला सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 9 एवं धारा 100 से संबंधित है इसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष सिविल प्रकृति के वाद के निर्धारण तथा तथ्य संबंधी मुद्दे पर अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का प्रश्न अंतर्वलित था। तथ्य मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं तिरूनेल वैली जिले में अलवर तिरु नगरी में भगवान विष्णु का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है इस मंदिर को आदिनाथ अलवर मंदिर के नाम से जाना जाता है कालांतर में इस मंदिर के चारों तरफ छोटे-मोटे 20 मंदिर और बन गए इनमें से तीन मंदिर भगवान विष्णु के मंदिर में और शेष बाहर बनाए गए विशेष अवसरों पर इन मंदिरों की मूर्तियां एक दूसरे मंदिर में लाई ले जाए जाती थी इसी दौरान पुजारियों के बीच पूजा की प्रधानता तथा प्रशंसा पत्र की प्राप्ति को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया इस पर चेन्नई हिंदू धार्मिक संस्थान बोर्ड ने सन 1927 में प्राथमिकता का क्रम निर्धारित करते हुए एक सूची तैयार की जिसमें रामानुजाचारिया मंदिर के पुजारियों को अन्य पुजारियों की अपेक्षा निम्नांकित दिनों के लिए...

Narayan Bhagwant Rao vs Gopal Vinayak | नारायण भगवंत राव बनाम गोपाल विनायक

Narayan Bhagwant Rao vs Gopal Vinayak | नारायण  भगवंत राव बनाम गोपाल विनायक भूमिका यह मामला संविधान के अनुच्छेद 133 तथा सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 1  नियम 3 व 10 की व्याख्या से संबंधित है। तथ्य संक्षेप में मामले के तथ्य इस प्रकार है वादी  अपील आर्थी नारायण भगवंतराव गणपति महाराज का वंशज है गणपति महाराज की मृत्यु सन 1701 में 98 बरस की आयु में हो गई थी जब गणपति महाराज की आयु 72 वर्ष की थी तब उन्हें स्वपन में यह कहा गया कि ताम्रपर्णी नदी में उन्हें 'वेंकटेश बालाजी' की प्रतिमा मिलेगी। तदनुसार उन्हें वहां बालाजी की मूर्ति मिली जिसे उन्होंने जुनार (जिला पूना) स्थित अपने मकान में स्थापित किया। गणपति महाराज की मृत्यु के बाद उनके जेष्ठ पुत्र मिम्माया को  भी स्वप्न में यह कहा गया कि जुन्नार गांव नष्ट हो जाएगा इसलिए मूर्ति को वहां से हटा लिया जाए इस पर मीमाया की मृत्यु के बाद उसके पुत्र बापा जी बूबा ने पेशवा से नासिक में गोदावरी नदी के किनारे भूमि प्राप्त कर वहां मंदिर का निर्माण करवाया और उसमें मूर्ति की स्थापना की इस मंदिर में होलकर एवं सिंधिया का भी रु...

S M Zakati vs B M Borkar | एस. एम. जकाती बनाम बी. एम. बोरकर

 S M Zakati vs B M Borkar |  एस. एम. जकाती बनाम बी. एम. बोरकर भूमिका यह मामला सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 53 आदेश 21 नियम 94 तथा हिंदू विधि के अंतर्गत पुत्र  के पवित्र कर्तव्य से संबंधित है। तथ्य संक्षेप में इस मामले के तथ्य इस प्रकार हैं एम. बी. जकाती नाम का एक व्यक्ति धारवाड़ कोआपरेटिव बैंक में प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यरत था जब बैंक का समापन हुआ तब  परिसमापक ने जकाती को अपकरण का दोषी बताते हुए उसके विरुद्ध ₹15000 बकाया निकाले 21 अप्रैल 1942 को सहकारी विभाग के उप रजिस्ट्रार ने जकाती को उक्त राशि जमा कराने का आदेश दिया इसे निष्पादन हेतु कलेक्टर के पास भेजा गया कलेक्टर ने आदेश के निष्पादन में भू राजस्व कानून के अंतर्गत जकाती के मकान को कुर्क कर लिया 24 नवंबर 1942 को मकान की नीलामी का आदेश दिया गया 24 दिसंबर 1942 को इस आशय की घोषणा की गई तथा 2 फरवरी 1943 नीलामी की तारीख तय की गई 16 जनवरी 1943 को जकाती द्वारा नीलाम रोके जाने हेतु प्रार्थना की गई जिसे अस्वीकार कर दिया गया निर्धारित तिथि 2 फरवरी 1943 को मकान नीलाम किया गया प्रतिवादी एस. एम. बोटकर नहीं...

Devkinandan vs Murlidhar | देवकीनंदन बनाम मुरलीधर

Devkinandan vs Murlidhar | देवकीनंदन बनाम मुरलीधर भूमिका यह बाद सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 92 तथा आदेश 6 नियम दो कि व्याख्या से संबंधित है इसमें हिंदू विधि के अंतर्गत स्थापित निजी एवं सार्वजनिक न्यास ओं के बीच अंतर का प्रश्न भी अंतर वलित था तथ्य इस मामले में तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं शिव गुलाम नामक एक व्यक्ति में सन 1914 में सीतापुर जिले की भदेशिया गांव में राधा कृष्ण का एक मंदिर बनवाया था यह मंदिर "श्री राधा कृष्ण जी का ठाकुरद्वारा" नाम से जाना जाता था सन 1928 में शिव गुलाम की मृत्यु हो गई।  अपने जीवन जीवन काल में इस मंदिर का प्रबंध शिव गुलाम के हाथों में ही रहा शिव गुलाम द्वारा सन 1919 में एक वसीयत निष्पादित की गई थी जिसके द्वारा उसने अपनी सारी भूमि ठाकुरद्वारा के नाम कर दी थी शिव गुलाम के दो पत्नियां थी रामकोर व राजकोट रामपुर की मृत्यु शिव गुलाम के जीवन काल में ही हो गई थी इसलिए शिव गुलाम की मृत्यु के बाद मंदिर का प्रबंध राजकोट के हाथों में चला गया जब राज कोर की भी मृत्यु हो गई तो मंदिर का प्रबंध वसीयत के अनुसार शिव गुलाम के भतीजे मुरलीधर ने संभ...

Satwant Singh Vs State of Punjab | Supreme Court Case

सतवंत सिंह- अपील कर्ता बनाम पंजाब सरकार - उत्तर दाता भूमिका यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188और197 से संबंधित है। तथ्य    सन 1942 में बर्मा राज्य द्वारा  जापानियों पर आक्रमण करने के फल स्वरुप बर्मा सरकार तथा सहायक शक्ति जापानियों को छोड़ने के लिए बाध्य करने लगे बर्मा का परित्याग के सिलसिले में बर्मा सरकार को कुछ काम करना पड़ा जैसे कि सड़के बनवाना,  पुल मजबूत कराना रेल लाइन हटाकर मोटर के लिए सड़के बनाना इसमें कुछ काम फौजियों द्वारा किया गया बाकी काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। बर्मा का परित्याग के बाद सरकार शिमला में आ गई 1942 में बर्मा सरकार ने विज्ञापन दिया जिसके अनुसार जिन्होंने काम किया था या माल दिया था लेकिन पैसा अदा नहीं किया गया था उनके क्लेम मांगने को कहा गया था सतवंत सिंह ठेकेदार ने पहले करीब ₹18000 का क्लेम मांगा बाद में उसने कई लाख रुपए का क्लेम मांगा यह क्लेम मेजर हेंडरसन अधिकार प्राप्त अधिकारी झांसी को प्रमाणीकरण करने के लिए सरकार ने भेज दिया इस अफसर ने सारे क्लेम मंजूर किए लेकिन एक नहीं किया,  इसके लिए उसका कहना था कि यह क्ले...

Andhra Pradesh Vs Ganeshwar Rao | Supreme Court Case

आंध्र प्रदेश सरकार - अपील करता बनाम गनेश्वर राओ - उत्तर दाता भूमिका यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 233 से 236 एवं 239 (सीआरपीसी) से संबंधित है। तथ्य सन 1929 में आंध्र इंजीनियरिंग कंपनी जो शुरू में साझीदार फर्म थी बाद में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई जिसको सूक्ष्म में (ए ई सी ओ) कहा जा सकता है इस कंपनी ने विशाखापट्टनम अनक पल्ली कुछ जगह बिजली देने के लिए सरकार से लाइसेंस लिए पैसा अधिक नए होने के कारण (  ए ई सी ओ) प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बजाए पब्लिक लिमिटेड कंपनी कर दी गई इस कंपनी का मुख्य संचालक श्री राजू थे पब्लिक लिमिटेड कंपनी का नाम विशाखापट्टनम इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड जिसको सूक्ष्म में (वी ई एस सी ओ)  कहा जा सकता है रख दिया और 1936 में अनक पल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड रख दिया ( ए ई सी ओ)  ने अपने लाइसेंस वी ई एस सी ओ को हस्तांतरित कर दिए और वी ई एस सी ओ ने लाइसेंस अनक पलीके बिजली खर्च करने वालों कंज्यूमर्स को कर दिए। ए ई सी ओ इकरारनामा के द्वारा प्रबंधक बन गई उसके बाद आंध्र सीमेंस लिमिटेड आदि फरम राजू द्वारा और खोली गई ए ई सी ओ प...

Tehsildar Vs State of Uttar Pradesh | Landmark Judgment on Criminal Law

तहसीलदार - अपील कर्ता बनाम  उत्तर प्रदेश सरकार - उत्तर दाता भूमिका यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 162 से संबंधित है तथ्य 16 जून 1954 को नयापुरा के मल्लाह रामस्नेही नहीं अपने घर एक दावत का आयोजन किया जिसमें उसके काफी मित्रगण आए दावत के बाद स्नेही ने पड़ोसी रामस्वरूप के घर के सामने रात को 9:00 बजे गाने बजाने का कार्यक्रम हुआ रामस्वरूप के घर के प्लेटफार्म पर करीब 35-49 मेहमान गाना सुनने के लिए एकत्रित हुए अभियोजन के अनुसार बहुत से लोग बंदूक लिए हुए अकस्मात् रामस्वरूप के मकान के दक्षिणा वाले कुए पर आए और आकर बंदूक चलाई जिससे नत्थी, भारत सिंह, सक्टू मर गए और छह व्यक्तियों को चोटें आई। घटना वाले स्थान की रूपरेखा भी ली गई उस नक्शे के अवलोकन से यह जाहिर होता है कि रामस्वरूप का मकान पश्चिम की तरफ स्थित है और प्लेटफार्म से करीब 25 कदम दूर पर एक कुआं है। अभियोजन के अनुसार दावत के बाद गाने का कार्यक्रम हुआ था कुछ लोग रामस्वरूप के मकान के प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर सुनने लगे सत्तू मजीरा बजा रहा था नत्थू गाना गा रहा था पूर्ण चंद्रमा की रोशनी थी तथा एक गैस की लालटेन व और कई अ...

Pritam Singh Vs State of Punjab

प्रीतम सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब भूमिका यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 342, 367, 403 आदि से संबंधित है इसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की पहचान पद चिन्हों के महत्व एवं विशेष इजाजत से की गई अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता से जुड़े प्रश्न विचारणीय थे। तथ्य इस प्रकरण  के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है 2 मई 1953 की शाम को लगभग 6:00 बजे प्रीतम सिंह लोहारा तथा करतार सिंह नामक दो व्यक्ति अमृतसर बस स्टैंड से एक बस पर चढ़े उस बस में चानन सिंह एवं सार्दुल सिंह नाम के दो व्यक्ति भी यात्रा कर रहे थे रास्ते में दो और यात्री प्रीतम सिंह फतेहपुरी और गुरुदयाल सिंह उस बस में चढ़ी और प्रीतम सिंह लोहारा के पास की खाली सीटों पर बैठ गए। बोहारु गांव के पास प्रीतम सिंह ने बस को रुकवाया और करतार सिंह तथा गुरदयाल सिंह वहां उतर गए इस दौरान प्रीतम सिंह फतेहपुरी व गुरदयाल सिंह ने चानन सिंह पर और प्रीतम सिंह लोहारा  व करतार सिंह  ने सरदूल सिंह पर बंदूक की गोलियां चलाई जिससे घटनास्थल पर ही उन दोनों की मृत्यु हो गई वह सार्दुल सिंह तथा चानन सिंह से उनकी राइफल वह रिवाल्व...

State of Uttar Pradesh Vs Shingara Singh

  स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश बनाम सिंघारा सिंह भूमिका- यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164, 364 एवं 533 से संबंधित है इसमें उत्तम न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय प्रश्न सन्स्वीकृति की विधि मान्यता एवं   गाहयता का था। तथ्य इस प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है 20 मार्च 1959 को उत्तर प्रदेश के एक नगर में राजाराम नाम के व्यक्ति की गोली से हत्या कर दी गई थी इस हत्या के लिए तीन अभियुक्त गणों सिंघारा सिंह,  वी. सिंह एवं तेगा  सिंह समेत 7 व्यक्तियों के विरुद्ध अभियोजन चलाया गया था अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बिजनौर द्वारा सिंघाड़ा सिंह को मृत्युदंड वीर सिंह को धारा 302 सहपठितधारा 120 ख, 109 तथा 114 के अंतर्गत मृत्युदंड एवं तेगा सिंह को उक्त धाराओं के अंतर्गत आजीवन कारावास के दंड से दंडित किया गया तथा शेष अभियुक्त गणों को दोषमुक्त कर दिया गया उपरोक्त तीनों अभियुक्त गणों द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की गई उधर राज्य सरकार द्वारा भी उन व्यक्तियों के विरुद्ध अपील की गई जिन्हें दोषमुक्त कर दिया गया था उच्च न्यायालय द्वारा अपीलार्थी  गणों की अपील ...

Nisar Ali Vs State of Uttar Pradesh | निसार अली बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश

निसार अली बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश भूमिका यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154, 157, 252 एवं 286 से संबंधित है साथ ही इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 से 104 तक के उपबंधों  के  अर्थान्वयन का प्रश्न भी अंतर ग्रस्त रहा है इस मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट का साक्ष्यिक  मूल्य, उसकी  ग्राहयता,  अभियुक्त व्यक्ति के निर्दोष होने की उपधारणा, अभियोजन पर आरोप सिद्धि का भार जैसे प्रश्न विचारणीय बिंदु थे। तथ्य इस प्रकरण के तथ्य  संक्षेप में इस प्रकार हैं दिनांक 11 मई 1951 की शाम के करीब 6:30 बजे की घटना है कुदरत उल्ला नाम का व्यक्ति अपनी दुकान पर बैठा हुआ था दुकान के नीचे सबीर नाम का व्यक्ति भी बैठा हुआ था। तब वहां निसार अली अपने घर से बाहर आया उससे सभी ने उसकी खराब हालत के बारे में पूछा इससे निसार अली नाराज एवं क्रोधित हो गया तथा दोनों में गाली गलौज होने लग गई धीरे धीरे दोनों गुत्थम गुत्था हो गए इस घटना से वहां कई लोग इकट्ठे हो गए निसार अली ने कुदरत उल्ला से चाकू मांगा जो दे दिया गया निसार अली उस चाकू से सबीर पर वार ...

आया राम गया राम की राजनीति एवं दसवीं अनुसूची

आया राम गया राम की राजनीति, भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची तथा दल परिवर्तन सत्ता की लालसा में बहुत से राजनीतिक जिस दल के चिन्ह पर चुनाव लड़ते हैं उसे छोड़कर दूसरे दल में चले जाते हैं | इसका एक मात्र उद्देश्य सत्ता और सुविधा प्राप्त करना होता है | 1952 में टी प्रकाशम ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए | पटनम थानों पिल्लई ने 1956 में राज्यपाल पद पाने के लिए अपना दल परिवर्तन कर लिया | उत्तर प्रदेश में एक समय के विपक्ष के नेता गेंदा सिंह और नारायण नारायण दत्त तिवारी रातों-रात कांग्रेसी बन गए | चौथे साधारण निर्वाचन में जो 1968 में हुआ था अनेक राज्यों में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गए | अभी तक विधायक अपना दल छोड़कर कांग्रेस के सदस्य बन जाते थे अब आना-जाना दोनों तरफ से होने लगा | चरण सिंह उत्तर प्रदेश से, राव वीरेंद्र सिंह हरियाणा से, गोविंद नारायण सिंह मध्यप्रदेश से और सरदार लक्ष्मण सिंह गिल पंजाब से मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेसी से बाहर आ गए | यह प्रवृत्ति आगे भी चलती रही | 1978 में शरद पवार ने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेसी ...

बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति

बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिए एक कार्य योजना के लिए 1987 में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति का निर्माण किया गया इस नीति के अनुसरण में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना एनसीएलपी 1988 में शुरू की गई थी ताकि कार्यरत बच्चों का पुनर्वास किया जा सके यह योजना सर्वप्रथम खतरनाक व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में कार्यरत बच्चों के पुनर्वास पर एक फोकस के साथ परिमाण उपागम के अधिकार पर बल देती है खतरनाक व्यवसाय में कार्यरत बच्चों को निकाल कर उन्हें विशेष विद्यालय में रखा जाएगा और उन्हें विद्यालय प्रणाली की मुख्य धारा में लाने के लिए सक्षम बनाया जाएगा इस नीति के उद्देश्य नीचे दिए गए हैं बाल श्रम कानून एवं अन्य श्रम कानूनों को कड़ाई से लागू करने के लिए वैधानिक कार्य योजना बाल श्रम के उच्च केंद्र वाले क्षेत्रों में कार्यशील बच्चों के कल्याण हेतु परियोजनाओं के आरंभ के लिए कार्यवाही की परियोजना आधारित योजना जहां भी संभव हो वहां काम करने वाले बच्चों की लाभान्वित करने के लिए सामान्य विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्र एवं अभिसरण

राष्ट्रीय शिक्षा नीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 1986 में अंगीकार किया गया था तथा इसे 1992 में पुणे संशोधित किया गया यह नीति शिक्षा प्रणाली पर जोर देती है जिसके द्वारा या इसके माध्यम से नई शिक्षा नीति पद्धति में शिक्षा में एकरूपता लाई जा सके व्यस्क शिक्षा कार्यक्रमों का एक जन आंदोलन के रूप में बनाया जाए और शिक्षा तक सभी लोगों की फौज को सुनिश्चित किया जा सके एवं प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता परक धारणा छात्रों को प्रसारित प्रसारित किया जा सके इस नीति के द्वारा लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा सके तथा माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाए और प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे गति निर्धारक स्कूलों की स्थापना की जा सके उच्चतर शिक्षा में ज्ञान एवं अनुशासनात्मक शोध का संश्लेषण किया जा सके राज्यों में अधिक खुले विश्वविद्यालय आरंभ किए जा सकें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को मजबूती प्रदान की जाए खेलो योग को प्रोत्साहित किया जा सके यह शिक्षा प्रणाली एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर आधारित है जो कि लचीले एवं क्षेत्र विशेष घटकों के एक साथ एक साझा कौर का प्रस्ताव करता है जहां नीति लोगों के लिए अवसरों को बढ़ाने पर...

राष्ट्रीय युवा नीति

राष्ट्रीय युवा नीति पहली राष्ट्रीय युवा नीति 1988 में निर्मित की गई तब से लेकर अब तक देश में सामाजिक एवं आर्थिक दशाएं एक महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर चुकी है और उनको व्यापक तकनीकी उन्नति के द्वारा नया आकार दिया जा चुका है इसलिए 2003 में एक नई पुनरीक्षित युवा नीति तैयार की गई ताकि युवाओं को भूमंडलीकरण सदस्य को ध्यान में रखते हुए चुनौतियों के विरुद्ध खड़ा होने के लिए प्रेरित करना है 13 से 35 वर्ष के बीच इस नीति में युवाओं का चयन किया गया है इस नीति के उद्देश्य निम्नलिखित है युवाओं को भारत के संविधान में निहित सिद्धांतों एवं मूल्यों के अनुपालन हेतु अभी प्रेरित करना युवाओं के सभी वर्गों के बीच नागरिकता के गुणों का विकास करना और उनमें समुदाय सेवा के प्रति समर्पण का भाव पैदा करना भारतीय इतिहास एवं विरासत कला एवं संस्कृति के चित्रों में युवाओं के बीच जागरूकता को बढ़ावा देना युवाओं को समुचित शैक्षिक एवं प्रशिक्षण अवसर उपलब्ध कराना तथा रोजगार अवसरों एवं अन्य के संबंध में सूचना तक उनकी पहुंच को बढ़ावा देना List of 100+  Landmark Cases  of Supreme Court India   युवाओं के...

वृद्धों के लिए राष्ट्रीय नीति

वृद्धों के लिए राष्ट्रीय नीति वृद्ध लोगों की बेहतरी को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहराने के लिए 1999 में वृद्ध व्यक्तियों के लिए एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा की गई इस नीति के द्वारा वृद्ध लोगों के लिए वित्तीय एवं खाद्य सुरक्षा स्वास्थ्य देखभाल आश्रय एवं लोगों की अन्य जरूरतें विकास में समानता पूर्ण सहभागिता शोषण एवं दुर्व्यवहार के विरुद्ध संरक्षण तथा उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए सेवाओं की उपलब्धता को बनाए रखने के लिए राज्य के समर्थन पर बल दिया जाता है इसकी विशेषताएं निम्न है व्यक्तियों को अपने और अपने वृद्ध पत्नी या पति के लिए प्रावधान बनाने को प्रोत्साहित करना परिवारों को अपने वृद्ध परिवारिक सदस्यों की देखभाल के लिए प्रोत्साहित करना संवेदनशील करोड लोगों के लिए देखभाल एवं संरक्षण उपलब्ध कराना परिवारों द्वारा उपलब्ध कराई गई देखभाल की अनु पूर्ति करने के लिए गैर सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों की क्षमता एवं समर्थन प्रदान करना रोड व्यक्तियों के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधा उपलब्ध कराना वयोवृद्ध व्यक्तियों के संबंध में जागरूकता पैदा करना ताकि उत्पादन एवं स्वतंत्र जीवन जीन...

राष्ट्रीय विकलांग नीति

राष्ट्रीय विकलांग नीति विकलांग व्यक्तियों के लिए 2006 में एक राष्ट्रीय नीति बनाई गई इस नीति के द्वारा इस बात की मान्यता दी गई कि विकलांग व्यक्ति देश के लिए एक मूल्यवान मानव संसाधन है तथा उनके लिए एक ऐसे वातावरण की रचना की जानी चाहिए जो उन्हें समान अवसर उनके अधिकारों का संरक्षण एवं समाज में पूर्ण भागीदारी उपलब्ध करा सकें यह नीति इस बात पर ज्यादा बल देती है कि विकलांगों को एक बेहतर एवं समान अवसर दिया जाए जिससे वह एक बेहतर जीवन जिसके इसकी प्रमुख विशेषता नीचे दी गई हैं शारीरिक पुनर्वास जिसमें शुरुआती पहचान और हस्तक्षेप परामर्श एवं चिकित्सकीय हस्तक्षेप तथा सहायता एवं उपकरणों के प्रावधान शामिल है शैक्षिक पुनर्वास जिसमें व्यवसायिक प्रशिक्षण शामिल है एक बाधा रहित वातावरण का निर्माण समाज में एक गरिमा पूर्ण जीवन के लिए आर्थिक पुनर्वास इसके अंतर्गत सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में रोजगार तथा स्वरोजगार शामिल है पुनर्वास पेशेवरों का विकास विकलांगता पेंशन बेरोजगारी भत्ता इत्यादि जैसे सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहन विकलांगों के लिए राष्ट्रीय संस्थान जैसे राष्ट...