Section 120 The Army Act, 1950
Section 120 The Army Act, 1950 in Hindi and English
Section 120 The Army Act, 1950 :Powers of summary courts- martial.
(1) Subject to the provisions of sub- section (2), a summary court- martial may try any offenc punishable under this Act.
(2) When there is no grave reason for immediate action and reference can without detriment to discipline be made to the officer empowered to convene a district court- martial or on active service a summary general court- martial for the trial of the alleged offender, an officer holding a summary court- martial shall not try without such reference any offence punishable under any of the sections 34, 37 and 69, or any offence against the officer holding the court.
(3) A summary court- martial may try any person subject to this Act and under the command of the officer holding the court, except an officer, junior commissioned officer or warrant officer.
(4) A summary court- martial may pass any sentence which may be passed under this Act, except a sentence of death or transportation, or of imprisonment for a term exceeding the limit specified in subsection (5).
(5) The limit referred to in sub- section (4) shall be one year if the officer holding the summary courtmartial is of the rank of lieutenantcolonel and upwards, and three months if such officer is below that rank.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 120 of The Army Act, 1950 :
Union Of India & Ors vs Vishav Priya Singh on 5 July, 2016
Ex-Havildar Ratan Singh vs Union Of India And Ors on 19 November, 1991
Ram Sarup vs The Union Of India And Another on 12 December, 1963
Union Of India vs Dafadar Kartar Singh on 9 December, 2019
सेना अधिनियम, 1950 की धारा 120 का विवरण : - सम्मरी सेना-न्यायालयों की शक्तियां - (1) उपधारा (2) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए सम्मरी सेना-न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का विचारण कर सकेगा।
(2) जब कि तुरन्त कार्यवाही के लिए गम्भीर कारण नहीं है और अभिकथित अपराधी के विचारण के लिए निर्देश, अनुशासन का उपाय किए बिना उस आफिसर को किया जा सकता है जो डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय या सक्रिय सेवा की दशा में सम्मरी जनरल सेना - न्यायालय संयोजित करने के लिए सशक्त है तब सम्मरी सेना - न्यायालय अधिविष्ट करने वाला आफिसर, धाराओं 34, 37 और 69 में से किसी के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का या न्यायालय अधिविष्ट करने वाले आफिसर के विरुद्ध किसी अपराध का विचारण ऐसे निर्देश के बिना नहीं करेगा।
(3) आफिसर, कनिष्ठ आयुक्त आफिसर या वारण्ट आफिसर से भिन्न इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का जो उस न्यायालय के रूप में कार्य करने वाले न्यायालय को अधिविष्ट करने वाले आफिसर के समादेश के अधीन है, विचारण सम्मरी सेनान्यायालय कर सकेगा।
(4) सम्मरी सेना - न्यायालय मृत्यु या निर्वासन के या उपधारा (5) में विनिर्दिष्ट परिसीमा से अधिक अवधि के कारावास के दंडादेश से भिन्न कोई भी ऐसा दंडादेश पारित कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन पारित किया जा सकता है।
(5) उपधारा (4) में निर्दिष्ट परिसीमा, उस दशा में, जिसमें सम्मरी सेना - न्यायालय को अधिविष्ट करने वाला आफिसर लेफ्टीनेंट - कर्नल के रैंक का और उससे ऊपर का है एक वर्ष की, और उस दशा में, जिसमें ऐसा आफिसर उस रैंक से नीचे का है तीन मास की होगी।
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