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Showing posts from August, 2020

जमानत - Bail

 जमानत किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति की स्वतंत्रता छीन जाती है और वह बंदी की स्थिति में आ जाता है जबकि उसे मुकदमे की अवधि के दौरान और अपराध सिद्ध होने तक निर्देश माना जाता चाहिए| मुकदमा काफी लंबा चल सकता है ऐसी स्थिति में उसे परिवार को भी कष्ट उठाना पड़ता है| यह भी हो सकता है कि उसके आजीविका के साधन नौकरी व्यवसाय आदि को हानि हो जाए ऐसे में उसका परिवार निर्धन असहाय तथा बेघर बार हो जाता है| यदि बंदी अपने परिवार ईस्ट मित्रों व वकील से अलग हो जाता है तो तय है कि वह अपने बचाव में कुछ नहीं कर पाएगा| इसके अतिरिक्त सरकार की राजस्व विभाग को भी उसे जेल में रखने का खर्चा उठाना पड़ता है| इस स्थिति का दूसरा पक्ष यह भी है कि गिरफ्तार कैदी को स्वतंत्र आवाजाही भी खतरनाक सिद्ध हो सकती है| वह दूसरे अपराध भी कर सकता है या भाग सकता है| वह  केस के प्रमाणो को नष्ट कर सकता है और गवाहों को डरा धमका भी सकता है| वह राजनीतिक दबाव भी बना सकता है और समाज तथा न्याय की हानि कर सकता है| ऐसी अवस्था में जमानत ना देना विपरीत संभावनाओं को टालने का सही उपाय है| जमानत शब्द का शाब्दिक अर्थ प्रतिभूति, सुरक्षा सिक्योरिटी ...

सामान्य व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी

 सामान्य व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी जिस अपराधी पर इनाम घोषित हो उसे कोई भी सामान्य व्यक्ति गिरफ्तार कर सकता है ऐसे व्यक्ति को आवश्यक है कि वह तुरंत गिरफ्तार अपराधी को पुलिस के हवाले कर दे| परंतु यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि किसी को मात्र संदेह के आधार पर सामान्य व्यक्ति गिरफ्तार नहीं कर सकता, इश्तहारी अपराध को गिरफ्तार कर सामान्य व्यक्ति थाने भिजवा आएगा इसमें जरा भी विलंब न करना होगा इस विषय में कुछ अन्य बातें भी जानकारी योग है  | जैसे_ बिना वारंट उस व्यक्ति को भी गिरफ्तार हो सकती है जो मजिस्ट्रेट की उचित में अपराध कर रहा हो या मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में अपराध किया जाए| इन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता सेंट्रल रिज़र्व फोर्स का कोई भी व्यक्ति जो अपने कर्तव्य पालन का कार्य करने के कारण या अन्य संभावित व्यक्ति कार्य के निर्वाहन कि किसी भी कार्यवाही के लिए तब तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जब तक केंद्र सरकार की स्वीकृति ना हो| इसके अतिरिक्त राज्य सरकार अधिनियम द्वारा सुरक्षा बल के वर्ग या  प्रवर्ग  के सदस्यों के विषय में आदेश दे  सकती है| आदेश के अंतर्गत स...

गिरफ्तारी और जमानत

 गिरफ्तारी और जमानत पुलिस द्वारा जब किसी व्यक्ति को अपने अधिकार में अथवा कब्जे में ले लिया जाता है तो उसे गिरफ्तारी कहा जाता है| गिरफ्तारी का कानूनी अर्थ भी यही है| इस दृष्टि से आवश्यक नहीं कि पुलिस ही बरन एक सामान्य नागरिक भी किसी संज्ञेय अथवा ऐसे अपराध के अपराधी को जो और जमानत किए हैं अपने अधिकार अथवा कब्जे में ले सकता है| यह गिरफ्तारी दो प्रकार से की जाती है| पहली वारंट के साथ दूसरी बिना वारंट के  | इस विषय में संज्ञेय तथा गंभीर  अपराधों के लिए बिना वारंट की गिरफ्तारी हो सकती है| गिरफ्तारी के संबंध में जो बिना वारंट गिरफ्तार की कानूनी स्थिति है उसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है_ 1, यदि कोई व्यक्ति किसी  संज्ञेय  अपराध में जुड़ा रहता है या फिर इसी प्रकार के अपराध लिए जो गंभीर खतरनाक संगीन जुर्म थे उस पर केस चला हो| 2, बिना वारंट गिरफ्तारी उस व्यक्ति की भी हो सकती है जो हिरासत से निकल धागा हो अथवाउसके पास अवैध शस्त्र औजार रखा पाया गया हो| 3, पुलिस कार्य में बाधा डालने वाले व्यक्ति को भी बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है| किसके साथ ही विदेश में ऐसा अपराध कर...

जमानती - गैर जमानती अपराधी धाराएं

 जमानती गैर जमानती अपराधी धाराएं अपराध अथवा जुर्म:- जब कोई व्यक्ति ऐसा कृत्य करता है जो भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अंतर्गत वर्जित है तो उसका वही कृत्य अपराध अथवा जुर्म कहलाता है | स्थापित भारतीय कानूनों के खिलाफ किया गया काम भी अपराध की श्रेणी में आता है | जमानत के आधार पर अपराध :- किए गए अपराध के लिए व्यक्ति के प्रकरण के निस्तारण तक जमानत पर रिहाई प्राप्त हो जाती है और कई मामलों में नहीं | जमानत के आधार पर जुर्म अथवा अपराधियों को भारतीय दंड प्रक्रिया सहित अधिनियम सन 1973 संशोधित के अनुसार 3 वर्गों में बांटा गया है | 1. जमानती अपराध :- जिस में जमानत का प्रावधान है | जो अधिकार स्वरूप मिलती है | 2. गैर जमानती अपराध :- जिस में जमानत का प्रावधान ही नहीं है| 3. माननीय न्यायालय के विवेका अनुसार :- मामले की संगीता एवं अपराधी की प्रकृति के अनुसार माननीय न्यायालय विवेकाधिकार से जमानत दे भी सकता है और नहीं भी | सामान्य जानकारी के लिए पाठकों की सहायतार्थ आईपीसी कि उन धाराओं का विवरण अग्वर्णित है जिसके आधार पर अपराध की श्रेणी निर्धारित की गई है | जमानत के अपराध :- आई पी सी कि वह धाराएं जिन...

पुलिस उत्पीड़न से कैसे बचें

पुलिस उत्पीड़न से कैसे बचें यूं तो पुलिस पर तरह-तरह के दोषारोपण होते रहते हैं परंतु सच है कि न जाने कौन व्यक्ति को पुलिस उत्पीड़न का शिकार हो जाए | पुलिसिया उत्पीड़न कभी-कभी तो सारी मानवीय सीमाओं को पार कर जाती है | कुछ समय से कुछ पुलिसवाले मामूली वजहों पर भी दबिश या तलाशी के नाम पर रात को घरों में कूद जाते हैं | यह नितांत गलत है तथा लोगों की निजता को भंग करता है परंतु अगर आप अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं तो पुलिस को इस कृत्य से जहां रोक सकते हैं वही उन्हें ऐसा करने पर दंड भी दिला सकते हैं | अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का परिचय देते हुए उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद की एक महिला ने 1 मई सन 1998 को बांद्रा जनपद के थाना तिंदवारी के मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण याचिका में प्रार्थना की गई कि बांद्रा जनपद के थाना तिंदवारी को निर्देशित किया जाए कि वह उसे तथा उसके परिवार वालों को रात में छापे डाल कर तलाशी की कार्यवाही करके परेशान ना करें दूसरी प्रार्थना थी कि थानाध्यक्ष तिंदवारी के विरुद्ध c.i.d. की जांच कराकर उचित कार्रवाई की जाए | थानाध्यक्ष द्वारा याची की निजता को...

Constitutional Development in India

 Constitutional Development in India Modern democracy and constitutional government may be western development's but ancient India was not unfamilar with Republican institutions  democratic assemblies panchayat and safeguards that Limited the power of the monarch and protected the public from abuse of authorities. The concept of the the supremacy of Dharma was hardly different from the rule of law Limited government point out Subhash C.Kashyap. However it was under British rule that India of the modern constitutional form of Government developed. As the East India Company gradually changed from a Mere trending group into a political authority on behalf of the British Crown several Charters and acts were passed by the British Parliament Tu to regulate its conduct. Sum of of these are of significance from the point of view of India's constitutional history. Brief overview of acts given ahead.  Regulating Act, 1773  The chief clauses of the act were:(1) The the director...

Concepts of Constitution - Historical Perspective

 Concepts  of Constitution - Historical Perspective :-  In political terms a  constitution comprises the basic principles of the political system under which the people of a state are to be governed. It determines such matters as the composition power and procedure of the the Legislature, executive and judiciary the the appointment of of officers and the structure of office which authorise Express and midiate the exercise of power. In general terms constitution consists of a set of right power and procedures the regulate on the one hand the relationship between public authorities in any state and one The Other between the public authorities and individual citizens more countries have a written constitution with define the relationship the United Kingdom UK a and Israel are notable for not having such a written constitution written constitution however require to be supplemented by other sources.  World in any document need to be intercepted and constitutional pr...

आयोग क्या होता है ? Commision in Civil Proceedings

 प्रश्न :- आयोग क्या होता है ?  उत्तर :- आयोग न्यायालय द्वारा नियुक्त करने के लिए जारी एक आदेश होता है जो कि कुछ उत्तरदाई व्यक्तियों को कुछ कार्य सौपता है | उसकी रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है | प्रश्न :- किसी गवाही की जांच करने के लिए आयोग क्या होता है ?  उत्तर :- यह किसी गवाही की जांच के लिए किसी प्रदीकरण या व्यक्ति के लिए जारी किया गया एक आदेश अथवा निवेदन होता है उस स्थिति में  जारी किया जाता है जहां गवाह किसी दूरदराज स्थान पर या विदेश में रहता है अथवा वह बीमार है और न्यायालय आने में असमर्थ है या ऐसा कोई व्यक्ति जिसको न्यायालय में उपस्थिति में छूट है | आयोग किसी अन्य न्यायालय के लिए अथवा किसी वकील के लिए गवाह का बयान दर्ज कराने के लिए तथा जारी करने वाले न्यायालय तक उसे पहुंचाने के लिए गठन किया जाता है | प्रश्न :- वे अन्य उद्देश्य क्या है जिनके लिए आयोग का गठन किया जाता है ?   उत्तर :- आयोग का गठन वही खाने प्राप्त करने प्रयोग करने संपत्ति के बंटवारे का प्रभावशाली बनाने अथवा अन्य गैर न्यायालय कार्यों के लिए भी किया जाता है |

क्या कोई मुकदमा वापस लिया जा सकता है ?

 प्रश्न :- क्या कोई मुकदमा वापस लिया जा सकता है ?  उत्तर :- हां किंतु जब कोई मुकदमा वापस ले लिया जाता है तो वादी उसी बात के आधार पर नया मुकदमा दायर नहीं कर सकता है | प्रश्न  :- क्या किसी मुकदमे में समझौता या सुलह हो सकती है ?  उत्तर :- क) हां आपसी राजीनामा द्वारा पक्ष सुलह या समझौता कर सकते हैं | ख) यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि पक्षों में स्वेच्छा पूर्ण समझौता कर लिया है | वही समझौता कानून सम्मत है तो वह उसे दर्ज करता है एवं उस समझौते के संदर्भ में डिक्री जारी करता है | यह डिक्री किसी अन्य डिग्री के सामने ही प्रभावशाली होता है परंतु इस से अपील नहीं की जा सकती आगे | ग) हां समझौता करने वाला पक्ष कमजोर अथवा नाबालिक है तो न्यायालय को संतुष्टि होनी चाहिए कि प्रभावित समझौता कमजोर अथवा नाबालिक के हित में हुआ है |

ऐसी स्थिति में क्या होता है जब मुकदमों के दौरान ही वादी अथवा प्रतिवादी की मौत हो जाती है

 पक्षों की मौत प्रश्न :- ऐसी स्थिति में क्या होता है जब मुकदमों के दौरान ही वादी अथवा प्रतिवादी की मौत हो जाती है ?  उत्तर :- यदि किसी पक्ष की मृत्यु का निर्णय होने से पूर्वी ही हो जाता है तो उसे कानूनी प्रतिनिधि को चाहिए कि निश्चित अवधि के भीतर उसे दस्तावेज में लाए | अन्यथा यह मुकदमा उस पक्ष के संदर्भ में खारिज किया जाता है | अंततः पक्षों की मृत्यु होने की एक निश्चित समय के भीतर न्यायालय को यह सूचना देनी चाहिए कि मृतक के उत्तराधिकारी या कानूनी प्रतिनिधि अब इस मुकदमे को देगा |

हलफनामा का क्या अर्थ होता है

प्रश्न  :-  हलफनामा का क्या अर्थ होता है ?  उत्तर :- क)  हलफनामा लिखित में दिया गया वह बयान होता है जिसे शपथ पूर्वक किसी समक्ष अधिकारी के सम्मुख देना पड़ता है | बाद में इसे न्यायालय में उस पक्ष के समर्थन में प्रस्तुत किया जाता है जिसके कहने से फलक नानी बयान दिया जाता है | ख) सामान्यता: गवाहों को स्वयं अपने साक्ष्य न्यायालय में प्रस्तुत करने चाहिए | किंतु कुछ उद्देश्यों के लिए कानून साक्ष्यों के रूप में हलफनामा को देने की अनुमति देता है | जैसे अस्थाई आदेशों के लिए आवेदन के समर्थन में दिया गया इलफनामी बयान |

दीवानी मुकदमे में सम्मन का क्या अर्थ होता है ? Summon in Civil Suite / Civil Cases?

 प्रश्न :- दीवानी मुकदमे में सम्मन का क्या अर्थ होता है ?  Summon in Civil Suite / Civil Cases? उत्तर :- अनुमान न्यायालय द्वारा जारी सूचना होती है | 1) की प्रतिवादी को उसके मुकदमे की सुनवाई की तिथि सूचित करने के लिए जारी किया जाता है | यह वाद— पत्र उनका दावे के संक्षिप्त विवरण की प्राप्ति के साथ होता है | 2) गवाह को जारी किया सम्मन उसे न्यायालय में साक्ष्य देने अथवा दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित होने के लिए बाध्य करने से अभी प्रेरित होता है प्रश्न  :- क्या कोई गवाह न्यायालय में उपस्थित होने के लिए खर्च पाने का हकदार होता है ?  उत्तर :- हां प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा व्यय मान निश्चित किया हुआ होता है | सिद्धांत रूप में गवाह यह आगरा भी कर सकता है कि न्यायालय में जाने से पहले ही खर्चा प्रदान किया जाए |

विवेचना के लिए गिरफ्तारी आवश्यक नहीं | Arrest is not mandatory for investigation

 विवेचना के लिए गिरफ्तारी आवश्यक नहीं| Arrest is not mandatory for investigation -  दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अति महत्वपूर्ण निर्णय अपने स्वामेव अधिकारों का उपयोग करते हुए दिया| एक अंग्रेजी के समाचार– पत्र में एक समाचार प्रकाशित हुआ था कि सीबीआई को विवेचना के चलते हुए एक उच्च अधिकारी को गिरफ्तार ना करने के संदर्भ में चेतावनी दी गई तथा सीबीआई के द्वारा न्यायालय में पेश की गई चार शीट( आरोप पत्र) को न्यायालय द्वारा शिकार नहीं किया गया | विवेचना के दौरान अभियुक्त को गिरफ्तार न करना पश्चाताप का प्रमाण था| दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंग्रेजी दैनिक समाचार_ पत्र में प्रकाशित इस समाचार को पढ़ने के बाद इसका संज्ञान लिया तथा इस बात पर विचार किया कि क्या कोई न्यायालय इस आधार पर आरोप_ पत्र को स्वीकार करने से इंकार कर सकता है कि अभियुक्त  को विवेचना के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया अथवा न्यायालय के पक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया? दिल्ली उच्च न्यायालय ने  प्रश्न  का उत्तर न, मैं देते हुए कहा कि आरोप_ पत्र प्रस्तुत करने से पूर्व अभियुक्त की गिरफ्तारी अथवा अभियुक्त को न्यायालय को न्या...

एफ आई आर के उपरांत पुलिस के कर्तव्य | Duties and Responsibilities of Police after registration of FIR

 एफ आई आर के उपरांत पुलिस के कर्तव्य | Duties and Responsibilities of Police after registration of FIR:  संज्ञेय  और असंज्ञे अपराधों व मामलों की पुलिस को सूचना में हमने जाना किए अपराधी मामले दो प्रकार के हो सकते हैं_ एक वाह जिसमें कोई संज्ञेय  अपराध हुआ हो और दूसरे वह जो केवल और असंज्ञेय  अपराध से समृद्ध हो| पुलिस के लिए दोनों ही मामलों की रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी है  संज्ञेय  मामलों मैं पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी और विशेषण भी आरंभ करेंगी| प्रत्येक ऐसे संज्ञेय  मामले मैं जो उस पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में घटित हुआ है उस थाने का धार साधक अन्वेषण आरंभ कर सकता है और उसके अन्वेषण आरंभ करने में यह आपत्ति नहीं की जा सकती कि उससे उस मामले के अन्वेषण का अधिकार नहीं था| द0 प्र0सं0 की धारा 190 के अंतर्गत शक्ति प्राप्त मजिस्ट्रेट भी पुलिस आने के बाद साधक अधिकारी को किसी मामले का अन्वेषण का करने का आदेश दे सकता है| यदि किसी पुलिस थाने के भार अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई संज्ञेय   श्राद्ध किया गया है का अन्वेषण करने ...

प्रथम सूचना रिपोर्ट | FIR | First Information Report

 प्रथम सूचना रिपोर्ट | What is FIR |  First Information Report   (एफ आई आर)  जो सूचना किसी अधिकारी को निर्धारित नियमों के तहत लिखित रूप से प्रदान की जाती है उसे प्रथम सूचना कहते हैं और लिखित रूप में उसी सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट f.i.r. पुकारा जाता है | जुल्म अत्याचार तथा अधिकार समाप्ति के खिलाफ भारतीय नागरिक न्याय पाने के लिए सबसे पहले पुलिस के पास जाता है | कानून एवं विधि द्वारा स्थापित संस्था पुलिस द्वारा उसकी फरियाद सुनी जाती है और प्रथम सूचना के रूप में दर्ज कर ली जाती है | जुल्म का शिकार व्यक्ति साक्षर होने पर लिखित रूप से तथा निरक्षर होने पर मौखिक रूप से दर्ज करवा सकता है | यह जरूरी नहीं कि जुल्म का शिकार व्यक्ति ही दोषी के खिलाफ रिपोर्ट करें उसका प्रतिनिधि भी असाधारण स्थिति में पुलिस के पास एफ आई आर दर्ज करवा सकता है | लिखित सूचना के साथ सूचना अधिकारी के हस्ताक्षर भी होने चाहिए | भारतीय दंड संहिता धारा 154 (1) में वर्णित है कि प्रत्येक संज्ञान योग्य अपराध (ऐसा अपराध जिस के आरोप में किसी व्यक्ति को वारंट के बिना भी गिरफ्तार किया जा सकता है) के संबंध में अगर ...

रिपोर्ट दर्ज कराना आवश्यक है | Reporting is Mandatory

 रिपोर्ट दर्ज कराना आवश्यक है | Reporting is Mandatory दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति रिपोर्ट दर्ज करा सकता है| इस संदर्भ में कोई भी ऐसी आपत्ति नहीं उठाई जा सकती है की रिपोर्ट दर्ज कराने का अधिकार नहीं है| इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला रामचंद्र मौर्य के प्रति उत्तर प्रदेश राज्य के एक मामले में दिया |  रिपोर्ट का क्या महत्व है तथा कौन रिपोर्ट करा सकता है? इसे स्पष्ट करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को या विधिक अधिकार प्राप्त है कि वह रिपोर्ट दर्ज करा सके तथा पुलिस अधिकारी रिपोर्ट लिखने के लिए कर्तव्यबद्ध  है| रिपोर्ट लिखाने का उद्देश अपराध की जांच करने के लिए पुलिस को प्रेरित करना है | रिपोर्ट का महत्व अपराध की प्रकृति तथा सूचना देने वाले व्यक्ति की स्थिति पर निर्भर करता है | सूचना देने वाले व्यक्ति को दांणिडक विधि की प्रक्रिया प्रारंभ कराने   का    अधिकार है| दंणड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तीन उद्देश्य है-  ( अ) यह धारा पुलिस तथा जिला मजिस्ट्रेट ...

कानूनी सहायता कैसे प्राप्त करें | How to Get Legal Help or Legal Aid in Hindi

 कानूनी सहायता कैसे प्राप्त करें |  How to Get Legal Help or Legal Aid in Hindi  कानूनी सहायता कैसे प्राप्त करें: हमारे देश में गरीब बेसहारा व्यक्तियों को कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है| कानून ने प्रत्येक व्यक्ति को अदालत में अपना पक्ष रखने का अधिकार प्रदान किया है| ताकि किसी भी व्यक्ति को यह कहने का अवसर ना प्राप्त हो कि उसका पक्ष सुने बिना ही फैसला दिया गया  कानूनी सहायता प्राप्त करने के निम्नलिखित हकदार होते हैं_ कानूनी सहायता ऐसे शख्स को प्रदान हो सकती है जिसके पास ना तो कोर्ट का शुक्र है और ना ही मुकदमा लड़ने के लिए प्राप्त आर्थिक संसाधन अभियुक्त यदि 16 से कम उम्र का हो तो वह भी कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है| विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम सन 19 87 में उद्योगपति व्यक्ति विशेष को कानूनी सहायता पाने योग माना गया है | शारीरिक रूप से अक्षम अथवा आयोग शख्स बालक नारी जातिगत हिंसा व अत्याचार का भागी शख्स बाढ़ व सूखे से पीड़ित व्यक्ति बंधुआ मजदूर( बेगार से पीड़ित} लोक व औद्योगिक उपद्रव से ग्रस्त व्यक्ति और मानसिक चिकित्सालय में रहने वाले रोगी| ऐसा बंदी...

Must know Legal Rights for Every Indian in Hindi | कानून प्रदत्त अधिकारों को जाने

Must know Legal Rights for Every Indian in Hindi  कानून प्रदत्त अधिकारों को जाने भारत सरकार अपने देश के प्रत्येक नागरिक को कानूनी रूप से अनेक अधिकार दिए  हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक है| नीचे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जा रही है- 1. भारतीय कानून में नागरिक को सम्मान पूर्वक जीवन  निर्वाहन का अधिकार है| प्रत्येक    नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है| एक नागरिक को आजीविका कमाने का अधिकार है| 2 कानून में प्रत्येक नागरिक को न्यायालय में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार प्रदान किया गया है| 3 कानूनी सहायता के( विधिक हकदार) नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए  निशुल्क  वकील की सेवाएं सरकारी खर्च पर प्राप्त करने का अधिकार है| 4 अपने साथ हुए जुर्म अन्याय और अधिकार समाप्ति के विरुद्ध व्यक्ति को पुलिस मैं एफ.आई.आर. दर्ज करवाने का कानूनी अधिकार है| 5 लोक हित से जुड़े मामलों के लिए कोई भी व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में अपनी शिकायत लिखित रूप में डाक से प्रेषित कर सकता है| 6 सार्वजनिक स्थानों पर अवरोध के विरुद्ध व्...

Know What are your legal Rights in Hindi | कानूनी अधिकार क्या है

 कानूनी अधिकार क्या है | You must know your Legal Rights  1.किसी भी व्यक्ति को बीड़ी और हथकड़ी में तब तक नहीं रखा जा सकता जब तक अदालत द्वारा पुलिस को इस बात का लिखित अधिकार ना दिया गया हो| 2.जो भी पुलिस अधिकारी आप को गिरफ्तार कर रहा है उनकी नाम  परटि्टका स्पष्ट रूप से लगी होनी चाहिए| जिसमें उसका नाम पढ़ा जा सके यानी उसकी पहचान गिरफ्तार हो रहे व्यक्ति को होनी चाहिए| 3.गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय यह बताना आवश्यक है कि उसे किस जुर्म के कारण गिरफ्तार किया जा रहा है और यह भी कि गिरफ्तार हो रहा है व्यक्ति बचाओ में वकील कर सकता है| 4.गिरफ्तार का  प्रपत्र( गिरफ्तारी मेमो) तिथि एवं समय के साथ गिरफ्तारी के समय ही तैयार किया जाना चाहिए| उसके ऊपर घर के किसी सदस्य पड़ोसी अथवा अन्य किसी उपस्थित व्यक्ति के हस्ताक्षर होनी चाहिए| यह इसलिए ताकि उनकी गिरफ्तारी गुपचुप न रह सकें| 5.पुलिस के लिए अनिवार्य है कि गिरफ्तारी की सूचना उसे दें जिसके गिरफ्तार होने वाला व्यक्ति अपना शुभचिंतक और मददगार समझता को तथा यह भी कि गिरफ्तार व्यक्ति को कहां रखा या ले जाया जा रहा है | 7....

Women Reservation in Panchayat & Urban Local Bodies in Hindi | पंचायतों तथा नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण

Women Reservation in Panchayat & Urban Local Bodies in Hindi |  पंचायतों तथा नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रश्न : पंचायतों तथा नगर पालिकाओं में महिलाओं के आरक्षण के संदर्भ में संविधान में क्या प्रावधान है?  उत्तर : संविधान के 73 में संशोधन के अनुसार कुल पदों में1/3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित है| वन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम1/3 राजस्थान अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे| 2 प्रत्येक पंचायत में अध्यक्ष निर्वाचित द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम1/3 स्थान ( जिसके अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या की गई है) महिलाओं के लिए आरक्षित करेंगे| 3 प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के कम से कम1/3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे| नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित पद इस प्रकार हैं: 1 आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम1/3 स्थान अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे| 2 प्रत्ये...

Uniform Civil Code in Hindi | समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता  | Questions and Answers on Uniform Civil Code प्रश्न : समान सिविल संहिता के बारे में संविधान में क्या कहा गया है?  उत्तर : संविधान की अनुच्छेद 44 राज्य को यह निर्देश देती है कि राज्य भारत के सभी नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता बनाने का प्रयास करेगा| परंतु यह न्यायालयों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकती क्योंकि यह राज्य के लिए एक नीति निर्देशक सिद्धांत है| प्रश्न : समान सिविल संहिता के संबंध में न्यायपालिका  ने क्या सुझाव दिए हैं?  उत्तर : उच्चतम न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक महत्व के निर्णय सरला मुदगल बनाम भारत संघ( 1995) मैं प्रधानमंत्री से यह निवेदन किया कि वे संघ के अनुच्छेद 44 पर नया दृष्टिकोण अपनाएं जिसमें सभी नागरिकों के लिए एक सम्मान सिविल संहिता के बनाने का निर्देश दिया गया है और कहा कि ऐसा करना पीड़ित व्यक्ति की रक्षा तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की वृद्धि के लिए आवश्यक है| उच्चतम न्यायालय ने बार-बाहर नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने पर बल दिया है| परंतु कोर्ट ने सभी लोगों को यह जगह लाने में आने वाली कठिनाइयों को भी महसूस किया है...

Preamble of Indian Constitution in Hindi

  Preamble of Indian Constitution in Hindi उद्देशिका : संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और कुछ दिन पश्चात 13 दिसंबर को उद्देश्य संकल्प प्रस्तावित हुआ| इस संकल्प द्वारा संविधान सभा के लक्ष्य और प्रयोजन परिनिश्चित किए गये| इस संकल्प में जो मूल आकांक्षाएं थी वह उद्देशिका में थोड़े से शब्दों में बड़ी सुंदरता के साथ अभिव्यक्त हुई है| उद्देशिका इस प्रकार है- हम, भारत के लोग , भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व- संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:  समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए  सुदृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949ई० को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मापिर्त  करते हैं| इस उद्देशिका का 1976 में संशोधन किया गया| पहले पैरा के दो शब्द समाजवादी और पंथनिरपेक्ष अ...

Questions and Answers on Women's Rights on Personal Liberty, Life and Property Rights in Hindi

Questions and Answers on Women's Rights on Personal Liberty, Life and Property Rights in Hindi प्रश्न : व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संदर्भ में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को लेकर क्या प्रतिक्रिया हुई है?  उत्तर: संविधान का अनुच्छेद 21 यह कहता है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विविध द्वारा स्थापित प्रतिक्रिया के अनुसार ही वांचित किया जाएगा अन्यथा नहीं| पुलिस हिरासत में महिलाओं की समस्याओं का प्रश्न उत्तर न्यायालय के सामने आया| मुंबई में महिला कैदियों के साथ पुलिस हिरासत में हिंसा का मामला एक पत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय में उठाया गया| इस पत्र पर कार्यवाही करते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश दिए कि कैसे पुलिस की हिरासत में महिलाओं के साथ बर्ताव किया  जाना चाहिए| इन निर्देशों में बहुत सारे सुरक्षा के उपाय सम्मिलित हैं जैसे कि:  1     संदिग्ध महिलाओं को कैद में रखने के लिए अलग स्थान की व्यवस्था की जानी चाहिए| 2 संदिग्ध महिलाओं से प्रश्न केवल महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में पूछे जाने चाहिए| 3 कोई भी व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है...

पुरुष तथा महिलाओं को समान वेतन सुनिश्चित करने के क्या प्रावधान है?

प्रश्न : पुरुष तथा महिलाओं को समान वेतन सुनिश्चित करने के क्या  विविध  प्रावधान है?  उत्तर : संवैधानिक प्रावधानों को अमल मैं लाने के लिए संसद ने 1976 मैं समान   परिश्रमिक अधिनियम बनाया| इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार किसी भी कर्मचारी को किसी संस्था या नौकरी में लिंग के आधार पर दूसरे कर्मचारी से कम वेतन नहीं दिया जा सकता यदि व समान काम या एक जैसे तरीके के काम करें| धारा 5 कहती है कि कोई भी  नियोजक( मालिक) सम्मान काम या एक जैसी पक्की के कामों में कर्मचारियों की भर्ती करते समय महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं कर सकता| परंतु यह बात उन रोजगारों पर ऊपर लागू नहीं होती जिनमें महिलाओं को काम करने के लिए कानून द्वारा मना किया गया है| इसके अलावा यह बात अनुसूचित जाति जन जाति',भूत- पूर्व कर्मचारी निकाल दिए गए कर्मचारियों या कोई अन्य वर्ग या श्रेणी के व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में लागू नहीं होती है|  प्रश्न : क्या कानून महिलाओं के पक्ष में विशेष प्रबंध करता है?   उत्तर: जी हां| न्यायालयों ने महिलाओं के पक्ष में बनाए गए विशेष प्रबंधन का संविधान के अनुच्छेद 15(...

क्या कामकाजी महिलाओं को अपना आवास चुनने का अधिकार है?

प्रश्न : क्या कामकाजी महिलाओं को अपना आवास चुनने का अधिकार है?  उत्तर:  यद्यपि इस विषय पर न्यायालयों के परस्पर विरोधी निर्णय है| परंतु एक विचार यह है कि महिला को इसका अधिकार है उदाहरणार्थ : पति एक जगह काम करता था तथा पत्नी अन्य जगह काम करती थी| पत्नी ने अपनी नौकरी नहीं छोड़ी पति ने हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत याचिका दाखिल करके यह प्रार्थना की की पत्नी उसके साथ रहे( दांपत्य अधिकारों का प्रतिस्थापन धारा 9 हिंदू विवाह अधिनियम/) परंतु पत्नी ने अपनी नौकरी के कारण पति के साथ रहने से मना कर दिया| दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति की याचिका को खारिज कर दिया| न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि हिंदू कानून के अनुसार हिंदू विवाहित स्थान जैसी कोई जगह नहीं है| संविधान का अनुच्छेद 14 पति तथा पत्नी दोनों को समान रूप से कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है|  प्रश्न :क्या विदेश सेवा में महिलाओं पर अविवाहित रहने की शर्त लगाई जा सकती है?  उत्तर : नहीं, उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि कोई भी नियम जो कि विवाहित महिलाओं को नौकरी पर रखने की मनाही करते हैं या किसी महिला के विवाह करने पर उन्हे...

क्या समानता का अधिकार व्यक्तिगत कानूनों तक फैला हुआ है?

Right to Equality and Personal Laws / Women Rights in Indian Constitution and Indian Kanoon प्रश्न :- क्या समानता का अधिकार व्यक्तिगत कानूनों तक फैला हुआ है?  उत्तर -तथ्यात्मक रूप से समानता के अधिकार मैं ऐसा कुछ नहीं है जिसे व्यक्तिगत कानूनों तक फैलाया जा सके| विवाह . तलाक तथा उत्तराधिकार से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों के अस्तित्व अभ्यास तथा समावेश ( रिवाजों) को राज्य के यंत्र द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह धार्मिक कार्यों के अभ्यास तथा प्रसार  मैं हस्तक्षेप समझा जाएगा| परंतु निश्चित रूप से धार्मिक पद्धतियों तथा प्रथाओं को जो की मूल्य रूप से अपमानजनक तथा अमाननीय है उन्हें चुनौती दी जा सकती है व प्रतिबंधित किया जा सकता है|1997 मैं उच्चतम न्यायालय ने अहमदाबाद वूमेन एक्शन ग्रुप एक लोक सेवक संघ व यंग वूमेन क्रिकेट सीटन एसोसिएशन द्वारा दाखिल याचिका को अस्वीकार किया जिसमें की व्यक्तिगत कानूनों को चुनौती दी गई थी| उच्चतम न्यायालय ने  तीन  जनहित याचिकाओं को खारिज किया| इन जनहित याचिकाओं में हिंदू मुसलमानों तथा क्रयस्टिन के विवाह, उत्तराधिकार से संबंधित भेदभाव पू...

Some Questions and Answers on Civil Procedure Code in Hindi

Some Questions and Answers on Civil Procedure Code in Hindi प्रश्न  :- दीवानी मुकदमे में मुद्दे क्या होते हैं ?  उत्तर  :- मुद्दे विवाद में बिंदुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं | प्रत्येक मामले में प्रस्ताव को एक पक्ष निश्चय के साथ स्वीकार्यता है | और दूसरे पक्ष द्वारा उसी मुद्दे की विषय वस्तु को नकारा जाता है प्रत्येक मुकदमे में मुद्दों को अवश्य बनाना चाहिए | प्रश्न :- मुद्दों को आकार देने का उद्देश्य क्या होता है ?  उत्तर :-  इसका उद्देश्य विवाद पूर्ण बिंदुओं को सफाई और बारीकी से प्रस्तुत करना होता है | न्यायालय के निर्णय के संबंध में या अपेक्षा की जाती है कि जहां प्रत्येक मुद्दे को अलग से देखा जाएगा तथा प्रत्येक मुद्दे का न्यायालय द्वारा निर्णय अलग से दर्ज होगा | प्रश्न  :- किसी दीवानी मुकदमे की सुनवाई कैसे होती है ?  उत्तर  :-(क) मुद्दे के अस्पष्ट हो जाने के बाद न्यायालय पक्षों द्वारा प्रस्तुत किए गए मुद्दों के संदर्भ में प्रासंगिक सबूत देता है | (ख)  वादी के साक्ष्यों की जांच पहले होती है | वे प्रतिवादी के साक्ष्यों का अनुगमन करते हैं, किंतु...

Indian Federalism - परिसंघ सिद्धांत का भारतीय संस्करण

संविधान में कुछ ऐसी उपबंध हैं जो परिसंघ सिद्धांत से विचलन हैं| दूसरे प्रकार से कहें तो यह परिसंघ सिद्धांत का भारतीय संस्करण है| (क) राजू टीवी एक संविधान| अमेरिकी संघ अनेक प्रभुत्व संपन्न राज्यों द्वारा स्वेच्छा से किए गए करार का परिणाम था| इसका उद्देश्य एक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना थी जो उनके समान हितों का पोषण करें| इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राज्यों ने अपने कुछ अधिकार त्याग दिए| कनाडा में प्रांतों का जन्म केंद्र के जन्म के पहले नहीं हुआ था| कनाडा के एक अधिनियम द्वारा प्रांतों को राज्य बनाकर उन्हें कुछ अधिकार प्रदान किए गए| परिसंघ अधिनियम द्वारा अधिरोपित था| राज्यों द्वारा स्वेच्छा से नहीं बनाया गया था| भारत में 1935 के अधिनियम द्वारा स्वशासी इकाइयां बनाई गई और उन्हें परिसंघ के ढांचे में डाला गया| दोनों का सृजन एक ही अधिनियम से हुआ| या किसी संधि या करार का परिणाम नहीं था| हमारा संविधान भारत के लोगों द्वारा बनाया गया है| राज्यों द्वारा नहीं| यह करार का परिणाम नहीं है| संविधान सभा ने संघ और राज्य दोनों के लिए संविधान बनाया|  (ख) भारत में एकल नागरिकता है| ऐसा ही कनाडा में है| इ...