Section 28 Contract Act 1872

 

Section 28 Contract Act 1872 in Hindi and English 



Section 28 Contract Act 1872 :Agreements in restraint of legal proceedings, void --- Every agreement

(a) by which any party thereto is restricted absolutely from enforcing his rights under or in respect of any contract, by the usual legal proceedings in the ordinary tribunals, or which limits the time within which he may thus enforce his rights; or

(b) which extinguishes the rights of any party thereto, or discharges any party thereto, from any liability, under or in respect of any contact on the expiry of a specified period so as to restrict any party from enforcing his rights, is void to that extent.

Exception 1 - Saving of contract to refer to arbitration dispute that may arise - This section shall not render illegal a contract, by which two or more persons agree that any dispute which may arise between them in respect of any subject or class of subjects shall be referred to arbitration, and that only the amount awarded in such arbitration shall be recoverable in respect of the dispute so referred.

Exception 2 - Saving of contract to refer questions that have already arisen - Nor shall this section render illegal any contract in writing, by which two or more persons agree to refer to arbitration any question between them which has already arisen, or affect any provision of any law in force for the time being as to references to arbitration.

Exception 3 - Saving of a guarantee agreement of a bank or a financial institution - This section shall not render illegal a contract in writing by which any bank or financial institution stipulate a term in a guarantee or any agreement making a provision for guarantee for extinguishment of the rights or discharge of any party thereto from any liability under or in respect of such guarantee or agreement on the expiry of a specified period which is not less than one year from the date of occurring or non-occurring of a specified event for extinguishment or discharge of such party from the said liability.

Explanation

(i) In Exception 3, the expression "bank” means

(a) a "banking company" as defined in clause (c) of Section 5 of the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949);

(b) "a corresponding new bank" as defined in clause (da) of Section 5 of the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949);

(c) "State Bank of India" constituted under Section 3 of the State Bank of India Act, 1955 (23 of 1955);

(d) "a subsidiary bank” as defined in clause (k) of Section 2 of the State Bank of India (Subsidiary Banks) Act, 1959 (38 of 1959);

(e) "a Regional Rural Bank” established under Section 3 of the Regional Rural Banks Act, 1976 (21 of 1976);

(f) "a Co-operative Bank” as defined in clause (cci) of Section 5 of the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949);

(g) "a multi-State Co-operative Bank” as defined in clause (cciiia) of Section 5 of the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949); and

(ii) In Exception 3, the expression "a financial institution" means any public financial institution within the meaning of Section 4A of the Companies Act, 1956 (1 of 1956).)



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 28 of Contract Act 1872 :



भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 28 का विवरण :  -  विधिक कार्यवाहियों के अवरोधक करार शून्य हैं -- हर करार --

(क) जिससे उसका कोई पक्षकार किसी संविदा के अधीन या बारे में अपने अधिकारों को मामूली अधिकरणों में प्रायिक विधिक कार्यवाहियों द्वारा प्रवर्तित कराने से आत्यन्तिकतः अवरुद्ध किया जाता है या जो उस समय को, जिसके भीतर वह अपने अधिकारों को इस प्रकार प्रवृत्त करा सकता है, परिसीमित कर देता हो; या

(ख) जो उसके किसी पक्षकार के अधिकारों को समाप्त कर देता है अथवा किसी संविदा के अधीन या बारे में किसी । विनिर्दिष्ट समय तक किसी पक्षकार को अपने दायित्व के निर्वहन से उन्मोचित कर देता है ताकि उसे अपने अधिकारों के प्रवर्तन से प्रतिबंधित किया जा सके; उस विस्तार तक शून्य है।

अपवाद 1 ---- जो विवाद पैदा हो उसको माध्यस्थम् के लिए निर्देशित करने वाली संविदा की व्यावृत्ति -- यह धारा उस संविदा को अवैध नहीं कर देगी जिसके द्वारा दो या अधिक व्यक्ति, करार करें कि किसी विषय के या विषयों के किसी वर्ग के बारे में, जो विवाद उनके बीच पैदा हो, वह माध्यस्थम् के लिए निर्देशित किया जाएगा और कि ऐसे निर्दिष्ट विवाद के बारे में केवल वह रकम वसूलीय होगी जो ऐसे माध्यस्थम् में अधिनिर्णीत हो।

अपवाद 2 -- जो प्रश्न पहले ही पैदा हो चुके हैं उन्हें निर्देशित करने की संविदा की व्यावृत्ति -- और न यह धारा किसी ऐसी लिखित संविदा को अवैध कर देगी जिससे दो या अधिक व्यक्ति किसी प्रश्न को, जो उनके बीच पहले ही पैदा हो चुके हों, माध्यस्थम् के लिए निर्देशित करने का करार करे या माध्यस्थम् विषयक निर्देशों के बारे में किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के किसी उपबन्ध पर प्रभाव डालेगी।

अपवाद 3 -- किसी बैंक अथवा किसी वित्तीय संस्था के प्रत्याभूति करार की व्यावृत्ति -- यह धारा ऐसी किसी लिखित संविदा को अवैध नहीं बनाएगी जिसके द्वारा कोई बैंक अथवा वित्तीय संस्था, अधिकारों के निर्वापन के लिये या ऐसी प्रत्याभूति या करार के अधीन था की बाबत् किसी दायित्व से उसके किसी पक्षकार के उन्मोचन के लिये, किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के पर्यवसान पर जो उक्त दायित्व से ऐसे पक्षकार के निर्वापन या उन्मोचन के लिये किसी विनिर्दिष्ट घटना के घटित होने या घटत न होने की तारीख से एक वर्ष से अन्यून हो, किसी प्रत्याभूति या प्रत्याभूति के लिये प्रावधान करने वाले किसी करार में कोई निबंधन अनुबद्ध करे।

स्पष्टीकरण,

(i) अपवाद 3 में, अभिव्यक्ति “बैंक" से अभिप्रेत है :

(क) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खण्ड (ग) में यथा परिभाषित कोई बैंककारी कंपनी';

(ख) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खण्ड (घ) में यथा परिभाषित कोई तत्स्थानी नया बैंक";

(ग) भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (1955 का 23) की धारा 3 के अधीन गठित “भारतीय स्टेट बैंक':

(घ) भारतीय स्टेट बैंक (समनुषंगी बैंक) अधिनियम, 1959 (1959 का 38) की धारा 2 के खण्ड (ट) में यथा परिभाषित “कोई समनुषंगी बैंक';

(ङ) प्रादेशिक ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 (1976 का 21) की धारा 3 के अधीन स्थापित “कोई प्रादेशिक ग्रामीण बैंक';

(च) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खण्ड (गग) में यथा परिभाषित “कोई सहकारी बैंक";

(छ) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खण्ड (गगiiiक) में यथा परिभाषित “कोई बहु-राज्य सहकारी बैंक'; और

(ii) अपवाद 3 में, अभिव्यक्ति किसी वित्तीय संस्था” से अभिप्रेत है कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क के अर्थान्तर्गत कोई लोक वित्तीय संस्था ।


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