Section 19 Contract Act 1872


Section 19 Contract Act 1872 in Hindi and English 



Section 19 Contract Act 1872 : Voidability of agreements without free consent - When consent to an agreement is caused by coercion, fraud or misrepresentation, the agreement is a contract voidable at the option of the party whose consent was so caused.

A party to contract, whose consent was caused by fraud or misrepresentation, may, if he thinks fit, insist that the contract shall be performed, and that he shall be put in the position in which he would have been if the representations made had been true.

Exception — If such consent was caused by misrepresentation or by silence, fraudulent within the meaning of section 17, the contract, nevertheless, is not voidable, if the party whose consent was so caused had the means of discovering the truth with ordinary diligence.

Explanation --- A fraud or misrepresentation which did not cause the consent to a contract of the party on whom such fraud was practised, or to whom such misrepresentation was made, does not render a contract voidable.


Illustrations

(a) A, intending to deceive B, falsely represents that five hundred maunds of indigo are made annually at As factory, and thereby induces B to buy the factory. The contract is voidable at the option of B.

(b) A, by a misrepresentation, leads B erroneously to believe that five hundred maunds of indigo are made annually at A's factory. B examines the accounts of the factory, which show that only four hundred maunds of indigo have been made. After this B buys the factory. The contract is not voidable on account of A's misrepresentation.

(c) A fraudulently informs B that As estate is free from incumbrance. Bothereupon buys the estate. The estate is subject to a mortgage. B may either avoid the contract, or may insist on its being carried out and mortgage-debt redeemed.

(d) B, having discovered a vein of ore on the estate of A, adopts means to conceal, and does conceal the existence of the ore from A. Through As ignorance B is enabled to buy the estate at an under-value. The contract is voidable at the option of A.

(e) A is entitled to succeed to an estate at the death of B; B dies; C, having received intelligence of B's death, prevents the intelligence reaching A, and thus induces A to sell him his interest in the estate. The sale is voidable at the option of A.



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 19 of Contract Act 1872 :

Bank Of India & Ors vs O.P. Swarnakar Etc on 17 December, 2002

Delhi Transport Corporation vs D.T.C. Mazdoor Congress on 4 September, 1990

Assistant General Manager State  vs Radhey Shyam Pandey on 2 March, 2020

Ganga Retreat & Towers Ltd. & Anr vs State Of Rajasthan & Ors on 19 December, 2003

M.P.Power Generation Co.Ltd. vs Ansaldo Energia Spa And Anr on 16 April, 2018

The Morvi Mercantile Bank Ltd. And vs Union Of India, Through The on 3 March, 1965

Mithoolal Nayak vs Life Insurance Corporation Of on 15 January, 1962

Avitel Post Studioz Limited And vs Hsbc Pi Holding (Mauritius) on 19 August, 2020

R.Jankiammal vs S.K.Kumaraswamy (D) Thr.Lrs. on 30 June, 2021

United India Insurance Co. Ltd vs Manubhai Dharmasinhbhai Gajera & on 16 May, 2008



भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 19 का विवरण :  -  स्वतंत्र सम्मति के बिना किए गए करारों की शून्यकरणीयता -- जबकि किसी करार के लिए सम्मति प्रपीड़न, कपट या दुर्व्यपदेशन से कारित हो तब वह करार ऐसी संविदा है जो उस पक्षकार के विकल्प पर शून्यकरणीय है जिसकी सम्मति ऐसे कारित हुई थी। | संविदा का वह पक्षकार जिसकी सम्मति कपट या दुर्व्यपदेशन से कारित हुई थी, यदि वह ठीक समझे तो, आग्रह कर सकेगा कि संविदा का पालन किया जाए, और वह उस स्थिति में रखा जाए कि जिसमें वह होता यदि किए गए व्यपदेशन सत्य होते। |

अपवाद -- यदि ऐसी सम्मति दुर्व्यपदेशन या ऐसे मौन द्वारा जो धारा 17 के अर्थ के अन्तर्गत कपटपूर्ण है, कारित हुई थी तो ऐसा होने पर भी संविदा शून्यकरणीय नहीं है यदि उस पक्षकार के पास जिसकी सम्मति इस प्रकार कारित हुई थी, सत्य का पता मामूली तत्परता से चला लेने के साधन थे।

स्पष्टीकरण --- वह कपट या दुर्व्यपदेशन, जिसने संविदा के उस पक्षकार की सम्मति कारित नहीं की, जिससे ऐसा कपट या दुर्व्यपदेशन किया गया था, संविदा को शून्यकरणीय नहीं कर देता।


दृष्टान्त

(क) 'ख' को प्रवंचित करने के आशय से 'क' मिथ्या व्यपदेशन करता है कि 'क' के कारखाने में पाँच सौ मन नील प्रतिवर्ष बनाया जाता है और एतद्द्वारा 'ख' को वह कारखाना खरीदने के लिए उत्प्रेरित करता है। संविदा 'ख' के विकल्प पर शून्यकरणीय है।

(ख) 'क' दुर्व्यपदेशन द्वारा ‘ख’ को गलत विश्वास कराता है कि 'क' के कारखाने में पाँच सौ मन नील प्रतिवर्ष बनाया जाता है। ‘ख’ कारखाने के लेखाओं की पड़ताल करता है जो यह दर्शित करते हैं कि केवल चार सौ मन नील बनाया गया है। इसके पश्चात् 'ख' कारखाने को खरीद लेता है, संविदा ‘क के दुर्व्यपदेशन के कारण शून्यकरणीय नहीं है।

(ग) 'क' कपटपूर्वक ‘ख’ को इत्तिला देता है कि ‘क’ की सम्पदा विल्लंगम्-मुक्त है। तब ‘ख’ उस सम्पदा को खरीद लेता है। वह सम्पदा एक बन्धक के अध्यधीन है। ‘ख’ या तो संविदा को शून्य कर सकेगा या यह आग्रह कर सकेगा कि वह क्रियान्वित की जाए और बन्धक ऋण का मोचन किया जाए।

(घ) 'क' की सम्पदा में ‘ख’ अयस्क की एक शिला का पता लगाकर 'क' से उस अयस्क के अस्तित्व को छिपाने के साधनों का प्रयोग करता है और छिपा लेता है। 'क' के अज्ञान से ‘ख’ उस सम्पदा को न्यून मूल्य पर खरीदने में समर्थ हो जाता है। संविदा 'क' के विकल्प पर शून्यकरणीय है।

(ङ) ‘ख’ की मृत्यु पर एक सम्पदा का उत्तराधिकारी होने का ‘क’ हकदार है। ‘ख’ की मृत्यु हो जाती है। ‘ख’ की मृत्यु का समाचार पाने पर 'ग' उस समाचार को 'क' तक नहीं पहुँचने देता और इस तरह 'क' को उत्प्रेरित करता

है कि उस सम्पदा में अपना हित उसके हाथ में बेच दे। यह विक्रय 'क' के विकल्प पर शून्यकरणीय है।




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