Section 17 Contract Act 1872

 

Section 17 Contract Act 1872 in Hindi and English 



Section 17 Contract Act 1872 : 'Fraud' defined-- means and includes any of the following acts committed by a party to a contract, or with his connivance, or by his agent, with intent to deceive another party thereto or his agent, or to induce him to enter into the contracts

(1) the suggestion, as a fact, of that which is not true, by one who does not believe it to be true;

(2) the active concealment of a fact by one having knowledge or belief of the fact;

(3) a promise made without any intention of performing it;

(4) any other act fitted to deceive;

(5) any such act or omission as the law specially declares to be fraudulent.

Explanation - Mere silence as to facts likely to affect the willingness of a person to enter into a contract is not fraud, unless the circumstances of the case are such that, regard being had to them, it is the duty of the person keeping silence to speak, or unless his silence, is, in itself, equivalent to speech.


Illustrations

(a). A sells, by auction, to B, a horse which A knows to be unsound. A says nothing to B about the horse's unsoundness. This is not fraud in A.

(b) Bis A's daughter and has just come of age. Here the relation between the parties would make it A's duty to tell B if the horse is unsound.

(c) B says to A – "If you do not deny it, I shall assume that the horse is sound”. A says nothing. Here, A's silence is equivalent to speech.

(d) A and B, being traders, enter upon a contract. A has private information of a change in prices which would affect B's willingness to proceed with the contract. A is not bound to inform B.



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 17 of Contract Act 1872 :

Avitel Post Studioz Limited And vs Hsbc Pi Holding (Mauritius) on 19 August, 2020

Venture Global Engineering Llc vs Tech Mahindra Ltd & Anr Etc on 1 November, 2017

R.Jankiammal vs S.K.Kumaraswamy (D) Thr.Lrs. on 30 June, 2021

State Of Maharashtra vs Dr. Budhikota Subharao on 16 March, 1993

Vidya Drolia vs Durga Trading Corporation on 14 December, 2020

The State Of Andhra Pradesh & Anr vs T. Suryachandra Rao on 25 July, 2005

Sri Tarsem Singh vs Sri Sukhminder Singh on 2 February, 1998

Mafatlal Industries Ltd., vs Union Of India Etc. Etc on 19 December, 1996

Commissioner Of Customs, Kandla vs M/S Essar Oil Limited & Ors on 7 October, 2004

Bhaurao Dagdu Paralkar vs State Of Maharashtra And Ors on 22 August, 2005



भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 17 का विवरण :  -  “कपट" की परिभाषा -- “कपट' से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आता है निम्नलिखित कार्यों में से कोई भी ऐसा कार्य संविदा के एक पक्षकार द्वारा, या उसकी मौनानुकूलता से या उसके अभिकर्ता द्वारा, संविदा के किसी अन्य पक्षकार की या उसके अभिकर्ता की प्रबंचना करने के आशय से या उसे संविदा करने के लिए उत्प्रेरित करने के आशय से किया गया हो --

(1) जो बात सत्य नहीं है उसका तथ्य के रूप में उस व्यक्ति द्वारा सुझाया जाना जो यह विश्वास नहीं करता कि वह सत्य है;

(2) किसी तथ्य का ज्ञान या विश्वास रखने वाले व्यक्ति द्वारा उस तथ्य का सक्रिय छिपाया जाना;

(3) कोई वचन जो उसका पालन करने के आशय के बिना दिया गया हो; ।

(4) प्रवंचना करने योग्य कोई अन्य कार्य;

(5) कोई ऐसा कार्य या लोप जिसका कपटपूर्ण होना विधि विशेषतः घोषित करे।

स्पष्टीकरण -- संविदा करने के लिए व्यक्ति की रजामन्दी पर जिन तथ्यों का प्रभाव पड़ना सम्भाव्य हो, उनके बारे में केवल मौन रहना कपट नहीं है जब तक कि मामले की परिस्थितियाँ ऐसी न हों जिन्हें ध्यान में रखते हुए मौन रहने वाले व्यक्ति का यह कर्त्तव्य हो जाता हो कि वह बोले या जब तक कि उसका मौन स्वत: ही बोलने के तुल्य न हो।।


दृष्टान्त

(क) 'क' नीलाम द्वारा 'ख' को एक घोड़ा बेचता है जिसके बारे में ‘क’ जानता है कि वह ऐबदार है। 'क' घोड़े के ऐब के बारे में ‘ख’ को कुछ नहीं कहता। यह 'क' की ओर से कपट नहीं है।

(ख) 'क' की ‘ख’ पुत्री है और अभी ही प्राप्तवय हुई है। पक्षकारों के बीच के सम्बन्ध के कारण 'क' का यह कर्तव्य हो जाता है कि यदि घोड़ा ऐबदार है तो 'ख' को वह बात बता दे।

(ग) 'क' से 'ख' कहता है कि यदि आप इस बात का प्रत्याख्यान न करे तो मैं मान लूंगा कि घोड़ा बेऐब है। ‘क’ कुछ । नहीं कहता है। यहाँ 'क' का मौन बोलने के तुल्य है।

(घ) ‘क’ और ‘ख’, जो व्यापारी हैं, एक संविदा करते हैं। ‘क’ को कीमतों में ऐसे परिवर्तन की निजी जानकारी है। जिससे संविदा करने के लिए अग्रसर होने की ‘ख’ की रजामन्दी पर प्रभाव पड़ेगा। ‘ख’ को यह जानकारी देने के लिए 'क' आबद्ध नहीं है।


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