Section 153 Indian Evidence Act 1872
Section 153 Indian Evidence Act 1872 in Hindi and English
Section 153 Evidence Act 1872 :Exclusion of evidence to contradict answers to questions testing veracity -- When a witness has been asked and has answered any question which is relevant to the inquiry only in so far as it tends to shake his credit by injuring his character, no evidence shall be given to contradict him; but, if he answers falsely, he may afterwards be charged with giving false evidence.
Exception 1 - If a witness is asked whether he has been previously convicted of any crime and denies it, evidence may be given of his previous conviction.
Exception 2 - If a witness is asked any question tending to impeach his impartiality, and answers it by denying the facts suggested, he may be contradicted.
Illustrations
(a) A claim against an underwriter is resisted on the ground of fraud.
The claimant is asked whether, in a former transaction, he had not made a fraudulent claim. He denies it.
Evidence is offered to show that he did make such a claim.
The evidence is inadmissible.
(b) A witness is asked whether he was not dismissed from a situation for dishonesty. He denies it.
Evidence is offered to show that he was dismissed for dishonesty.
The evidence is not admissible.
(c) A affirms that on a certain day he saw B at Lahore.
A is asked whether he himself was not on that day at Calcutta. He denies it.
Evidence is offered to show that A was on that day at Calcutta.
The evidence is admissible, not as contradicting A on a fact which affects his credit, but as contradicting the alleged fact that B was seen on the day in question in Lahore.
In each of these cases the witness might, if his denial was false, be charged with giving false evidence.
(d) A is asked whether his family has not had a blood feud with the family of B against whom he gives evidence.
He denies it. He may be contradicted on the ground that the question tends to impeach his impartiality.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 153 Indian Evidence Act 1872:
Shri N. Sri Rama Reddy Etc vs Shri V. V. Giri on 27 April, 1970
State Of Karnataka vs K. Yarappa Reddy on 5 October, 1999
Vijayan @ Vijayakumar vs State Rep.By Inspector Of Police on 22 March, 1999
Vijayan @ Vijayakumar vs State Rep.By Inspector Of Police on 22 March, 2000
R. M. Malkani vs State Of Maharashtra on 22 September, 1972
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 153 का विवरण : - सत्यवादिता परखने के प्रश्नों के उत्तरों का खण्डन करने के लिए साक्ष्य का अपवर्जन -- जबकि किसी साक्षी से ऐसा कोई प्रश्न पूछा गया हो, जो जांच से केवल वहीं तक सुसंगत है जहां तक कि वह उसके शील को क्षति पहुंचाकर उसकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाने की प्रवृत्ति रखता है, और उसने उसका उत्तर दे दिया हो, तब उसका खण्डन करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया जाएगा; किन्तु यदि वह मिथ्या उत्तर देता है, तो तत्पश्चात् उस पर मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा।
अपवाद 1 -- यदि किसी साक्षी से पूछा जाए कि क्या वह तत्पूर्व किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ था और वह उसका प्रत्याख्यान करे, तो उसकी पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य दिया जा सकेगा।
अपवाद 2 -- यदि किसी साक्षी से उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखने वाला कोई प्रश्न पूछा जाए और वह सुझाए हुए तथ्यों के प्रत्याख्यान द्वारा, उसका उत्तर देता है, तो उसका खण्डन किया जा सकेगा।
दृष्टांत
(क) किसी निम्नांकक के विरुद्ध एक दावे का प्रतिरोध कपट के आधार पर किया जाता है।
दावेदार से पूछा जाता है कि क्या उसने एक पिछले संव्यवहार में कपटपूर्ण दावा नहीं किया था। वह इसका प्रत्याख्यान करता है।
यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि उसने ऐसा दावा सचमुच किया था। यह साक्ष्य अग्राह्य है।
(ख) किसी साक्षी से यह पूछा जाता है कि क्या वह किसी ओहदे से बेईमानी के लिए पदच्युत नहीं किया गया था। वह इसका प्रत्याख्यान करता है।
यह दर्शित करने के लिए कि वह बेईमानी के लिए पदच्युत किया गया था साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है। यह साक्ष्य ग्राह्य नहीं है।
(ग) क प्रतिज्ञात करता है कि उसने अमुक दिन ख को लाहौर में देखा।
क से पूछा जाता है कि क्या वह स्वयं उस दिन कलकत्ते में नहीं था। वह इसका प्रत्याख्यान करता है।
यह दर्शित करने के लिए कि क उस दिन कलकत्ते में था साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है। यह साक्ष्य ग्राह्य है, इस नाते नहीं कि वह क का एक तथ्य के बारे में खण्डन करता है, जो उसकी विश्वसनीयता पर प्रभाव डालता है, वरन् इस नाते कि वह इस अभिकथित तथ्य का खण्डन करता है कि ख प्रश्नगत दिन लाहौर में देखा गया था।
इनमें से हर एक मामले में साक्षी पर, यदि उसका प्रत्याख्यान मिथ्या था, मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा।
(घ) क से पूछा जाता है कि क्या उसके कुटुम्ब और ख के, जिसके विरुद्ध वह साक्ष्य देता है, कुटुम्ब में कुल बैर नहीं रहा था।
वह इसका प्रत्याख्यान करता है। उसका खण्डन इस आधार पर किया जा सकेगा कि यह प्रश्न उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखता है।
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