लोक-हित मुकदमों की प्रणाली के उपयोग के संबंध में चेतावनी

भारत में सामाजिक परिवर्तन केवल जन जागृत तथा लोगों के सामाजिक क्रिया कालापो  के माध्यम से ही संभव हो सकता है। इसको गतिशील एवं क्रियाशील बनाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं स्वयंसेवी संस्थाओं न्यायालय जज वकील और पत्रकार आदि बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं और इसे गतिमय कर सकते हैं। सामाजिक क्रांति लाने के लिए केवल लोकहित में मुकदमा अथवा न्यायालयों पर निर्भर रहना केवल बाल से तेल निकालने की कामना के बराबर होगा। समाजसेवियों तथा स्वमसेवियों  संस्थाओं द्वारा लोक हित में मुकदमों का उपयोग सार्वजनिक आंदोलन तथा सामाजिक कार्यक्रमों के संदर्भ में केवल एक सहायक तत्व के रूप में ही किया जाना चाहिए। न्यायालयों तथा लोक हित में मुकदमों की अपनी ही परिसीमाये होती हैं।

उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों के समाजसेवियों अथवा उत्साहि लोक सेवक व्यक्तियों द्वारा गरीब लोगों की ओर लोग हित  मैं मुकदमे दायर किए जा सकते हैं। किंतु ऐसे व्यक्तियों के लिए उचित होगा कि वे ऐसे मुकदमे दायर करने से पूर्व कम से कम किसी सीमा तक प्रभावित लोगों को अपने प्रयास में शामिल कर ले। यह आवश्यक है कि लोक हित में दायर किया गया एक मुकदमा प्रभावित लोगों के विचारों और निर्णयओं का परिणाम हो। ऐसा किए जाने पर ही लोकहित  में किए मुकदमों का महत्व संबंधित लोगों के लिए शिक्षाप्रद हो सकता है तथा ऐसे मुकदमे सामाजिक कायकलाप  करने में योगदान दे सकते हैं।

जहां तक संभव हो सके लोक हितों मैं मुकदमा दायर करने से पूर्व संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के पास समस्या के संबंध में उचित कार्यवाही करवाने के लिए आवेदन पत्र भेज दिया जाना चाहिए।

न्याय दान नहीं है यह किसी के द्वारा किए गए परोपकार पर निर्भर नहीं करता , न्याय का मुद्दा अधिकारियों से संबंधित है और इसके सिवा कुछ नहीं है( न्यायमूर्ति पी० एंन ० भगवती) 

हमारी न्याय संबंधि प्रशासनिक व्यवस्था में जनता की साझेदारी होना अनिवार्य है( न्यायमूर्ति वी० आर० कृष्णा आर्य) 

वास्तव में गरीब भूखे और चिंतित लाखों लोगों की ही अपने मानव अधिकारों के सुख भोगने का अधिकार पाने हेतु न्यायालय के समक्ष की आवश्यकता है ( न्यायमूर्ति दिवेदी) 

स्वमसेवी  क्रियाशील दलों के सहयोग से भूखमरी के शिकार करोड़ों असहाय लोगों की आंखों के आंसू पहुंचकर संविधान में दिए गए वचनों को निभाने के लिए कानून का माध्यम बनाते हुए एक क्रांति का लाना आवश्यक है ( न्यायमूर्ति पी ०एन ०भगवती)

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