लोक हित मुकदमे तथा मीडिय


प्रश्न० मीडिया की लोक हित मुकदमाॆ  के प्रोत्साहन में क्या भूमिका रही है ? 

उ०  लोक हित मुकदमाॆ  के प्रोत्साहन में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। गत वर्षो में कई मामले प्रकाशित समाचार ही पोस्ट विश्लेषण या संपादक को लिखे पत्रों से उठाए गए हैं । एक रिपोर्ट जो शोध जांच सर्वे या अनुसन्धान के पश्चात प्रकाशित की जाती है वह लोग हित मुकदमा दायर करने के लिए एक मुद्दा बन सकती है। विशेषता: तब जब पत्रकार ऐसा एफिडेविट या शपथ पत्र दायर करें कि उसने जो भी लिखा है वह सत्य । संपादक या पत्रकार भी लोग हित मुकदमे में पक्ष बनकर भाग ले सकता है।

प्रश्न०  वह मुद्दा जो न्यायालय के समक्ष सुनाई के लिए विचाराधीन हो क्या मीडिया उसे जन मुद्दा बनाकर उस पर विवाद छेड़ सकता है ? 

उ०  कुछ उच्च न्यायालयॊ व  उत्तम न्यायालयों के निर्णय में ऐसा कहा गया है कि मीडिया उस मुद्दे पर विवाद आरंभ कर सकता है जो न्यायालय के समक्ष सुनाई के लिए हो। केवल मामले के तथ्यों या उस मुद्दे को लेकर न्यायाधीशों के आचरण पर कोई बहस आरंभ नहीं की जा सकती है। अन्यथा सभी सरकारी व राजनैतिक पार्टियों किसी भी विवाद जनक मुद्दे पर न्यायालय में याचिका दायर कर उस पर होने वाले विवाद को रोक सकते हैं।

प्रश्न०  क्या मीडिया किसी भी निर्णय की आलोचना कर सकता है ? 

उ०  जी हाँ , उच्चतम न्यायालय द्वारा अवमानना कानूनी की जटिलता को कम किया गया है। न्यायालय ने आलोचकों को स्वतंत्रता प्रदान की है। अवमानना की याचिका अटॉर्नी  जनरल की अनुमति से ही दायर की जा सकती है। न्यायालय में बहुत कम मामले ऐसे देखने में आए हैं जिसमें ऐसे कदम उठाए गए हैं।

प्रश्न०  न्यायालय की अवमानना से बचने का सबसे उत्तम तरीका क्या है ? 

उ०  न्यायालय की अवमानना से आसानी से बचा जा सकती है यदि समस्या पहले मीडिया द्वारा सामने लाई जाए बाद में उसे न्यायालयों के समक्ष लाया जाए।

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