आज लोक हित मिक़दामों में क्या समस्याएं आई हैं?
भारत में लोक हित में किए गए मुकदमों में सामने आई परिसीमाएं तथा परिस्थितियां
प्रश्न० आज लोक हित मिक़दामों में क्या समस्याएं आई हैं?
उ०1) लोक हित में मुकदमेबाजी अभी तक प्रचलित नहीं हो पाई है क्योंकि यह अभी भी एक बड़ी संख्या में न्यायाधीशों ,वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की कल्पना को झिझोड़ नहीं पाई है । 80 के शक के अंतिम वर्षों में इसको प्रचार हित मुकदमों के उपाधि दी गई । यह उपाधि उन न्यायाधीशों, वकीलों व पत्रकारों की प्रेरणा पर प्रश्नचिन्ह लगाती है जो न्याय के इस माध्यम या तकनीकी का दुरुपयोग करते हैं । यह कहा जा रहा है कि लोक हित मुकदमों की प्रणाली का प्रयोग को बढ़ावा देने वाले लोगों के व्यक्तिगत प्रचार के लिए किया जा रहा है न कि कमजोर वर्गों की भलाई हेतु ।
2) एक बड़ी संख्या में न्यायाधीशों का मानना है कि पी. आई.एल. एक बेलगाम घोड़े की तरह है जिसमें कोई भी नियम या प्रक्रिया का प्रयोग नहीं हो रहा इस कारण यह न्यायिक प्रणाली के नियमों को तोर- मरोड़ उसे समाप्त कर सकती है ।
3) कुछ न्यायाधीश व वकील पी०आई०एल० प्रणाली का प्रयोग निर्धन लोगों को मदद पहुंचाने में कर रहे हैं और उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में आवाज उठा रहे हैं पर बड़ी संख्या में लोग इसका मूल्य समझ नहीं पाए हैं और इसके प्रति उदासीन है तथा इसकी प्रणाली तथा मान्यता को चुनौती देते हैं ।
4)लोक -हित मुकदमों का परिणाम बैच में बैठे न्यायाधीशों की रूचि सामाजिक, राजनैतिक परिवेश तथा उनकी विवेक पर आधारित है । कुछ न्यायाधीशों ने इसकी पद्धति पर आक्षेप किया है और इसके कारण इसकी जड़ें मजबूत नहीं हो पाई है ।
5) लोक हित में किए गए मुकदमों में याचक अपने याचिकाओं में बहुदा समाचार पत्रों में छापे तथ्यों को आधार बनाते हैं जो कुल मिलाकर विश्वसनीय नहीं होते ।
6) इस प्रणाली द्वारा न्यायालयों ने अचानक गरीब लोगों कि बिना किसी देर के न्याय मिलने की आशाओं को बढ़ावा दिया पर वास्तव में निर्णय लेने और उसे लागू करने में लंबा समय लगता है ।
7) जबकि न्यायालय मानव प्रतिष्ठा गौरव समता तथा सामाजिक न्याय के बारे में चर्चा करता है पर वास्तविक स्थिति यह है कि असल में राहत अपर्याप्त होती है या शून्य के बराबर होती है ।
8) अपने निर्णय या आदेशों में न्यायालय जितना कुछ दे सकते हैं उससे अधिक का वादा करते हैं । कुछ मामलों में सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेशों पर अमल नहीं कर पाती । न्यायपालिका अपने निर्णयॊ के पवर्तन के लिए सदैव समर्थन नहीं होती । अपने आदेशों का पालन करने संबंधित कार्यवाही पर पर्याप्त अनुसरण नहीं हो पाता ।
9) लोग हित मुकदमों को प्रचार हित मुकदमों का नाम देने से उसके परिचालकों की प्रेरणा तथा उत्साह कम हो गया है ।
10) अधिकार लोक हिट मुकदमे केवल पर्यावरण तथा मानव अधिकार संबंधी मुद्दों तक ही सीमित रह गए हैं । अन्य महत्वपूर्ण विषय जैसे लोक सेवकों का उत्तरदायित्व तथा भ्रष्टाचार आदि मुद्दों को इस प्रणाली द्वारा नहीं उठाया गया है ।
11) सामाजिक कार्यकर्ता तथा अधिवक्ता सही तथ्य जुटाने के लिए सर्वेक्षण तथा अनुसंधान कर अधिक शक्ति समय व पैसा नहीं लगाते और इस कारण वे कोट के समक्ष अपने तथ्य सही ढंग से नहीं रख पाते । यदि लोक हित मुकदमो को सही प्रकार से दायर किया जाए तो यह वर्तमान न्याय प्रणाली को एक आंदोलन का आरंभ कर सकते हैं । न्यायालय के पास जन-हित याचिकाओं की सुनवाई हेतु पर्याप्त साधन है । परंतु ऐसा नहीं हो पाया और मुख्य जनहित याचिकाओं की तरह कदम मात्रा पत्र याचिकाओं तक ही सीमित रह गया है । इसका परिणाम यह हुआ कि न्यायालयों की जनहित मुकदमे से धीरे-धीरे रुचि समाप्त हो गई । उन्होंने पाया कि केवल पत्र याचिकाएं ही कोर्ट के संसाधनों पर अधिक भार डालती है।
13) वह सामाजिक कार्यकर्ता जो लोग के साथ काम कर रहे हैं भी लोक-हित मुकदमों की प्रणाली को ठीक प्रकार समझ नहीं पाए । इस कारण न्यायालय के समक्ष अपनी याचिकाओं को सही प्रकार नहीं रख पाए और अपनी याचिकाओं को सही स्वरूप नहीं दे पाए । इसका पी ०आई०एल० आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा ।
14) लोक हित मुकदमा की प्रणाली केवल उच्चतम न्यायालय तक ही सीमित रह गई है । इस कारण वह सामाजिक न्यायालय लाने का एक उपयोगी हथियार सिद्ध नहीं हो पाया है। इसका प्रयोग विभिन्न न्यायालयों में कुछ मामलों तक ही रह गया । समाज में बदलाव लाने में यह अपना प्रभाव नहीं जमा पाया ।
15) पी०आई०एल० की एक कमी यह है कि इसका आरंभ उच्च न्यायपालिका द्वारा ही किया जाता है । वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका सीमित रह जाती है । याचक के पक्ष में सभी तर्क केवल न्यायाधीशों द्वारा ही दिए जाते हैं अधिवक्ताओं द्वारा नहीं । व्यक्तिगत कार्यकर्ता तथा सामाजिक कार्यकर्ता लोकहित मुकदमों से निपटने में निपुण नहीं होती और उनके पास पैसे तथा क्षमता का अभाव रहता है ।
16) कुछ उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश लोकहित मुकदमों में याचिकाओं को प्रोत्साहन देने को कोताही भरते हैं और उन्हें उच्चतम न्यायालय जाने के लिए कहते हैं । इस प्रकार वह अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में विफल रह जाते हैं । और समाज के शोषित वर्ग के उत्थान के लिए अपने दायित्व को नहीं निभा पाते ।
17) कुछ जनहित याचिकाओं में उच्चतम न्यायालय ने समाज के शोषित वर्गों के पक्ष में ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं । परंतु अपने निर्णय के अनुसरण में वह विफल रहे हैं और शासन पर अधिक विश्वास प्रकट किया जिनसे उनके पालन ना करने का अपराध किया ।
18) कुछ जन -हित मुकदमों के अंतिम निर्णय तक पहुंचने में अत्याधिक समय लग जाता है कि उस निर्णय के पालन का फिर कोई फायदा नहीं हो पाता । केवल कुछ ही जन -हित मुकदमों में निर्णय शीघ्र लिया गया है ।
19) जन हित मुकदमों का प्रयोग कुछ व्यक्तियों द्वारा उनके निजी लाभ के लिए या फिर राजनीतिक उद्देश्य से किया जाता है ।
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