लोक हित के मुकदमों की आधार को ठोस बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए ?

 भारत में लोक-हित मुकदमों  संबंधी अभियान को सशक्त बनाने के लिए कदम

प्रश्न० लोक हित के मुकदमों की आधार को ठोस बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए ? 

उ०1) भारत को कल्याणकारी राज्य का दर्जा दिया गया है और राज्य का संवैधानिक प्रणाली को लागू करने के दायित्व सौंपा गया है न्याय प्रणाली को इसी तथ्य के आधार बनाना चाहिए तभी पी० आई ०एल ०प्रणाली सफल बनाई जा सकती है ।

2) लोक- हित मुकदमाॊ  को प्राथमिकता के आधार पर शिवकार्य  तथा उन्हें ग्रहण करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा जरूरी तौर पर एक समान नीति अपनानी चाहिए ।

3) भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को लोक-हित मुकदमों की प्रणाली को  सार्थक बनाने में विशेष प्रोत्साहन देना चाहिए ।

4) उच्च न्यायालयों में एक लोक- हित मुकदमों संबंधी सेल या कोष्ठ का गठन करना अनिवार्य है | एक न्यायाधीश को जन-हित मुकदमों का अगुआ बनाकर उससे ही इसका भार सौंपना  आवश्यक है ।

5) लोक-हित मैं मुकदमों को दायर करने से पहले यह याचिका सभी न्यायाधीशों को जो लोक--हित में मुकदमे से संबंध रखते हो उन्हें दिखाना आवश्यक है ताकि उनकी राय ली जा सके ।

6) लोक-हित के पायोजको न्यायिक हस्तक्षेप से पूर्व यह प्रयास करना चाहिए कि वह प्रतिवादी को बुलाकर मामले को सौहार्दपूर्ण  वातावरण में सुलझाने का प्रयत्न करें इस प्रयास से न्यायिक समय की बचत हो जाएगी साथ ही झूठे लोक-हित मुकदमें  सारे अभियान को नुकसान नहीं पहुंच पाएगा ।

7) न्यायालय हाल ही में समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट के आधार पर कदम उठाने पर सावधान हो गए हैं । अब वह लेखक या अन्य कोई भी व्यक्ति जिसको मामले की विस्तृत जानकारी हो उसके द्वारा दिए गए एविडेंस या शपथ पत्र के लिए आग्रह करते हैं । इसीलिए हर याचिका को दायर करने के पूर्व समस्या की खोजबीन तथा उसके बारे में साक्ष्य जुटाना आवश्यक है । यदि बड़ी संख्या में व्यक्ति प्रभावित हुए हो तब जितना संभव हो सके उनसे शपथ पत्र तथा उनके हस्ताक्षर जुटाना आवश्यक है । इसे याचिका के साथ संलग्न करना चाहिए । याचिका कार्ड से भेजने के बजाय यह सलाह दी जाती है कि उसे कोर्ट में दायर करने हेतु रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजें । सभी तथ्य तथा दस्तावेज जितना संभव हो सके पहली बार में ही प्रस्तुत करें ।

8) लोक-हित में होने वाले मुकदमों की दिनोंदिन बढ़ने वाली संख्या को देखते हुए कार्य प्रणाली को सरल और कारगर बनाया जाना चाहिए । नहीं तो संबंधित लोग इसकी क्षमता में विश्वास खो बैठेंगे ।

9) कुछ जनहित याचिकाओं जैसे बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि मैं न्यायालयों को जल्दी में काम नहीं लेना चाहिए अपितु उनके पवर्तन को देखना चाहिए और अंजनी निर्देशों को लागू करने के लिए समय समय पर उनका निरीक्षण करना चाहिए। कुछ मामलों में अन्तरिम आदेश महत्वपूर्ण होते हैं ना की याचना की सुनवाई। यदि न्यायालय याचना की सुनवाई निरंतर करते रहें और पक्षों के शपथ पत्र इत्यादि का सुनवाई कर अंतरिम निर्देश जारी करते रहे तब मामले का हल निवारण हो पाएगा ।

10) न्यायालय  को अपने कर्मचारियों तथा अधिकारियों का सहयोग ना केवल तथ्यों की पुष्टि करने के लिए आप भी अपने द्वारा दिए गए निर्देशों व आदेशों के पवर्तन के लिए भी करना चाहिए। न्यायालय द्वारा अपनी संरचना (अपनी ढांचे )का उपयोग तथ्यों तथा वास्तविकता का पता चलाने के साधन के रूप में भी करना चाहिए।

11) न्यायालय की मान-हानि संबंधी अनुबंधों को कठोर  बनाना चाहिए ताकि वह व्यक्ति जो झूठ बोलते हो तथा न्यायालय के आदेशों व निर्देशों का पालन न करते हो उन्हें दंड दिया जा सके।

12) जब तक वकील तथा समाजसेवी व्यक्ति मामलों के अनुसरण कर यह न देखें कि उसका प्रवर्तन हो तब तक महत्वपूर्ण निर्णय भी अपनी महत्ता खो देता है। इसी कारण से न्यायालय सचेत स्वयंसेवी संस्थाओं को लोकहित मामलों में दिए गए आदेशों को लागू करने के लिए निरीक्षण हेतु सशक्त कर सकता है।

13) न्यायालय के आदेश की प्रति संबंधित व्यक्तियों को जितनी जल्दी संभव हो दी जानी चाहिए आदेशों की प्रमाणित प्रतियां उन व्यक्तियों को जिन्हें मौके पर जांच करनी हो तुरंत ही उपलब्ध करवाना आवश्यक है। लोक गीत मुकदमों की दिनों दिन बढ़ती संख्याओं को देखते हुए आधार संबंधी नियमों को अस्थाई रूप से प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए।

14) सामाजिक कार्य में जुटे समूह तथा लोक हित में कार्य कर रही फर्मों के सहयोग द्वारा एक निरपेक्ष पी०आई ०एल० अधिकरण की संरचना की आवश्यकता है। जाने-माने अधिवक्ता इस अभिकरण को अपनी निशुल्क सेवाएं दे सकते हैं । यदि संभव हो तो लोकहित के मामले एक संगठन या संवेदनशील वकीलों के समूह द्वारा ही दायर किए जाने चाहिए ना कि केवल एक वकील द्वारा । लोकहीत मामलों के मुकदमा दायर करने वाले अधिवक्ता को यह कार्य समाजसेवा की भावना से करना चाहिए न कि अपने व्यक्तिगत प्रचार हेतु ।

15) कानूनी सहायता परियोजनाओं के किर्यावरण  समिति द्वारा उचतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में लोक हित में देने वाली मुकदमों की पैरवी के लिए वचनबद्ध वकीलों का एक कार्ड बनाया जाना चाहिए और कानूनी सहायता समिति हों अथवा जनता द्वारा वाहन किए गए खर्चे के आधार पर लोकहित मुकदमों के वकीलों के सदन भी बनाए जाने चाहिए। लोक हित मुकदमों के वकीलों को एक दूसरे के अनुभवों को जानने के लिए नियंतकालिक  बैठकें होनी चाहिए। वकीलों पत्रकारों समाजसेवियों तथा अध्यापकों की आपसी सहयोग को मजबूत होना चाहिए ताकि विभिन्न विधा-विधाओं में अच्छा आपसी तालमेल हो सके और लोक हित में किए गए जटिल मुकदमों को बल मिल सके ।

16) लोक -हित में हुए सभी प्रासंगिक मुकदमों का विवरण देने के लिए और उन सभी व्यक्तियों द्वारा जो इस क्षेत्र में कार्यरत है आपस में सूचनाओं तथा विचारों के आदान-प्रदान हेतु एक मंच तैयार करने के लिए एक पत्रिका के प्रकाशन की भी आवश्यकता है।

17) उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के स्थानों पर लोकहित में किए जाने वाले मुकदमों में होने वाव्य के लिए कानूनी सहायता परियोजनाओं का विस्तार किया जाना आवश्यक है गरीबों के अधिकारों के परिवर्तन के मामले उठाने के लिए स्वयंसेवी अधिकरण और संस्थाओं को भी प्रोत्साहन देना आवश्यक है।

18) लोक हित में किए गए अवसरों को जनता के वर्गों अथवा समुदाय को ज्ञान देने के लिए और उनके मन में यह भावना जगाने के लिए किया जाना चाहिए कि ऐसे मुकदमे सारे समुदाय को न्याय दिलाने के लिए एक संयुक्त प्रयास के रूप में होते हैं। प्रभावित लोगों को लोक हित में किए गए मुकदमों में शामिल होने के लिए सहायता दी जानी चाहिए ताकि उनकी चेतना जागृत हो। न्यायालय में दायर लोक हित से संबंधित एक याचिका के सारे समुदाय अथवा पूरे वर्ग का एक सम्मिलित प्रयास अथवा विचार विमर्श और निर्णय के परिणाम स्वरूप होना चाहिए ।

19) कोई भी नागरिक जो जन हित के इरादे से कार्य कर रहा है और इसके पास उपयुक्त कारण हो उसे वैधता दी जानी चाहिए। जनता के किस व्यक्ति के पास उपयुक्त कारण है तथा किसी वैधता प्रदान की जानी चाहिए इसका निर्णय न्यायालय हर मामले में परिस्थितियों के आधार पर कर सकता है।

20) लोक हित मुकदमों का प्रयोग व्यक्तिगत हानि या नुकसान की स्थिति में राहत के लिए नहीं करना चाहिए। न्यायालय को इस प्रक्रिया का राजनैतिज्ञो द्वारा अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग वैदिक प्रशासनिक कार्यवाही मैं देर करने या राजनीतिक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए इस प्रणाली के उपयोग की अनुमति प्रदान नहीं करनी चाहिए।

21) कुछ लोगों द्वारा लोक हित मुकदमों की महत्वपूर्ण प्रणाली प्रचार इत्यादि के लिए करते हैं इस प्रकार के दुरुपयोग को रोकने के लिए कदम उठाने आवश्यक है। यदि न्यायालय वह पाए कि लोक हित मैं मुकदमा किसी व्यक्ति द्वारा अपने निजी लाभ के लिए या राजनैतिक कारणों से दायर किया हो तब वह उस याचिका को आरंभ होने से पहले ही रद्द कर दें चाहे वह पत्र के रूप में न्यायालय को संबोधित की गई हो या फिर नियमित रूप से दायर की गई रिट याचिका हो।

22) लोक हित मामलों में मुकदमों के निपटाने के समय न्यायालयों को सावधान रहना चाहिए कि कहीं वह अपनी न्याय- सीमा को उल्लंघन कर संवैधानिक रूप से प्रशासनिक या बाधित क्षेत्र में कदम तो नहीं रख रहे। उन्हें अपनी सीमा में रहकर ही न्याय दिलवाना चाहिए।

Comments

  1. लोकहित मामलो को भी प्रि लिटिगेशन स्टेज पर ही संक्षिप्त सुनवाई के जरिये निपटाने का प्रयास करना चाहिए।लोकहित में काम करने वाले अनुभवी व्यक्तियो संगठनो का फेडरेशन बनाना चाहिए।पी आई एल पेश करने से पहले आवश्यक तथ्य दस्तावेज गवाह इक्कठे कर फिर ही पिटीशन तैयार करना चाहिए।आवश्यकतानुसार अनुभव साझा करने के लिए संगोठिया कार्यशाला भी करना होगा।

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