पैरोल और प्रोबेशन
पैरोल और प्रोबेशन
पैरोल का अर्थ है किसी अपराधी द्वारा अपनी सजा का एक बड़ा भाग काटने के बाद उसके अच्छे आचरण के कारण छोड़ देना।
यदि किसी व्यक्ति को पैरोल पर छोड़ा जाता है तो उस व्यक्ति पर कई शर्ते लगाई जा सकती है जैसे-
• वह नशा नहीं करेग।
• शराब के अड्डों पर नहीं जाएग।
• वह जुआ नहीं खेलेग।
• वह हथियार नहीं रखेग।
• शिकार नहीं करेग।
• वह अच्छे नागरिक की तरह जीवन बिताय।
• वह कानून का पालन करेग।
• गेंदबाजी नहीं करेग।
• अपराधियों को पत्र नहीं लिखेग।
• रात को देर तक बाहर नहीं मिलेग।
• वेश्याओं के कोठों पर नहीं जाएग।
• किसी निश्चित क्षेत्र में रहेग।
• नाच गाना नहीं करेग।
• बिना इजाजत शादी नहीं करेग।
• नौकरी नहीं बदलेग।
• पशुओं को जान से नहीं मारेग।
• वेश्याओं के पास नहीं रहेगा।
यदि कोई अपराधी पैरोल की शर्तों को तोड़ता है तो उसे वापस जेल भेजा जा सकता है और सजा का शेष भाग काटना पड़ सकता है। यदि किसी व्यक्ति को पैरोल पर छोड़ा जाता है और बाहर आने पर वह दोबारा जुर्म करता है तो उसे पैरोल का लाभ दोबारा नहीं मिलेगा।
हमारे देश में अस्थाई पैरोल पर भी अपराधियों को छोड़ा जाता है।
हीरालाल बनाम बिहार राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबी अवधि के कैदियों को अस्थाई पैरोल पर छोड़ा जाना चाहिए।
अस्थाई पैरोल का अर्थ है कुछ समय के लिए जेल से छूट देना और पैरोल का समय समाप्त होते ही वापस जेल भेज देना| एका ने मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिकारी का आचरण जेल में अच्छा रहता है तो उसे वर्ष में 2 सप्ताह पैरोल पर छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार पैरोल अपराधियों को सुधारने का तरीका है। पैरोल के लालच में अपराधी जेल में अच्छा व्यवहार करते हैं और पैरोल पर छोड़ने पर बाहर भी पैरोल की शर्तों का पालन करते हैं ताकि दोबारा जेल ना जाना पड़े।
इसी प्रकार अपराधियों को सुधारने का दूसरा तरीका है प्रोबेशन। प्रोबेशन और पैरोल में फर्क किया है कि पैरोल में सजा का कुछ भाग माफ होता है जबकि प्रोफेशन में पूरी सजा ही माफ कर दी जाती है।
हमारे देश में अपराधियों को सजा से माफी देने के लिए अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 बनाया गया है। यदि किसी व्यक्ति को प्रोबेशन पर छोड़ा जाता है तो प्रोबेशन को सजा नहीं माना जाता। इस अधिनियम में कुल 19 धाराएं हैं प्रोबेशन का लाभ दो प्रकार से दिया जाता है-
1 अपराधी को चेतावनी देकर छोड़ देना।
2 अच्छे आचरण की शर्त पर छोड़ देना।
इस अधिनियम की धारा 3 के अनुसार यदि कोई 21 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति आईपीसी की धारा 379, 380, 391, 404, 420 का अपराध करता है तो चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है, लेकिन आदतन अपराधी को या उम्रकैद वाले अपराधी को यदि छोड़ने की सजा मिलने वाले व्यक्ति को प्रोबेशन पर नहीं छोड़ा जा सकता।
अतः संक्षेप में 21 वर्ष से कम उम्र के अपराधी को प्रोबेशन पर छोड़ा जा सकता है और पहली बार जुर्म करने वाले किसी भी उम्र के अपराधी को केवल सभी छोड़ा जा सकता है जब उसने 2 वर्ष से कम की सजा वाला अपराध किया हो।
ओवेशन का लाभ लेने वाले अपराधी को निम्न शर्तों का पालन करना होता है।
• प्रोबेशन का लाभ लेने वाले को कोर्ट की शर्तों को मानना होग।
• प्रबेशनर उनको कुछ सुरक्षा धन जमा करना होग।
• प्रोबेशनर कोर्ट की आज्ञा के बिना अपना निवास स्थान नहीं बदल सकता और किसी दूसरे शहर या राज्य का निवासी नहीं बन सकत।
• प्रोबेशनर बिना आज्ञा शादी नहीं कर सकत।
• प्रोबेशनर कोर्ट की बिना आज्ञा के यात्रा नहीं कर सकत।
• प्रोबेशनर को जमानत पत्र भरना होग।
• प्रोबेशनर यदि शर्तों का पालन नहीं करता तो दुगना दंड दिया जाएग।
• प्रोबेशनर प्रोबेशन अधिकारी की आज्ञा के बिना कोई कार्य नहीं करेगा। यदि कोई अपराधी प्रोबेशन की शर्तों को तोड़ता है तो कोर्ट धारा 9 के अनुसार गिरफ्तारी वारंट जारी करता है| कोटिया दी ठीक समझता है तो जमानत देने वालों को भी समन जारी करता है। प्रोबेशनर के कोर्ट में हाजिर होने पर उसे मूल अपराध की सजा काटने के लिए जेल में भेज दिया जाता है या 50 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है।
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