Section 21 The Trade Marks Act, 1999:

 Section 21 The Trade Marks Act, 1999: 

Opposition to registration.—

(1) Any person may, within three months from the date of the advertisement or re-advertisement of an application for registration or within such further period, not exceeding one month in the aggregate, as the Registrar, on application made to him in the prescribed manner and on payment of the prescribed fee, allows, give notice in writing in the prescribed manner to the Registrar, of opposition to the registration.

(2) The Registrar shall serve a copy of the notice on the applicant for registration and, within two months from the receipt by the applicant of such copy of the notice of opposition, the applicant shall send to the Registrar in the prescribed manner a counter-statement of the grounds on which he relies for his application, and if he does not do so he shall be deemed to have abandoned his application.

(3) If the applicant sends such counter-statement, the Registrar shall serve a copy thereof on the person giving notice of opposition.

(4) Any evidence upon which the opponent and the applicant may rely shall be submitted in the prescribed manner and within the prescribed time to the Registrar, and the Registrar shall give an opportunity to them to be heard, if they so desire.

(5) The Registrar shall, after hearing the parties, if so required, and considering the evidence, decide whether and subject to what conditions or limitations, if any, the registration is to be permitted, and may take into account a ground of objection whether relied upon by the opponent or not.

(6) Where a person giving notice of opposition or an applicant sending a counter-statement after receipt of a copy of such notice neither resides nor carries on business in India, the Registrar may require him to give security for the costs of proceedings before him, and in default of such security being duly given, may treat the opposition or application, as the case may be, as abandoned.

(7) The Registrar may, on request, permit correction of any error in, or any amendment of, a notice of opposition or a counter-statement on such terms as he thinks just.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 21 The Trade Marks Act, 1999: 

Sardar Gurudas Singh Bedi vs Union Of India (Uoi) And Ors. on 27 April, 2006

Wyeth Holdings Corpn. And Anr. vs Controller General Of Patents, on 8 August, 2006

Gujarat Medicraft Pvt. Ltd. vs Cipla Ltd. on 31 January, 2006

Cadila Healthcare Ltd., vs Union Of India And Ors. on 6 May, 1998

Cadila Healthcare Ltd. vs Union Of India (Uoi) And Ors. on 9 September, 1999



व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 की धारा 21 का विवरण : 

रजिस्ट्रीकरण का विरोध- [

(1) कोई व्यक्ति, रजिस्ट्रीकरण के आवेदन के विज्ञापन या पुनः विज्ञापन की तारीख से चार मास के भीतर रजिस्ट्रीकरण के विरोध की लिखित सूचना, विहित रीति में और ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए, रजिस्ट्रार को दे सकेगा ।]

(2) रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रीकरण के आवेदक पर सूचना की एक प्रति तामील करेगा और आवेदक को विरोध की सूचना की ऐसी प्रति के प्राप्त होने के दो मास के भीतर आवेदक रजिस्ट्रार को विहित रीति में उन आधारों का प्रतिकथन भेजेगा, जिनका वह अपने आवेदन के लिए अवलम्ब लेता है, और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह समझा जाएगा कि उसने अपने आवेदन का परित्याग कर दिया है ।

(3) यदि आवेदक ऐसा प्रतिकथन भेजता है तो रजिस्ट्रार उसकी एक प्रति विरोध की सूचना देने वाले व्यक्ति पर तामील कराएगा ।

(4) ऐसा कोई साक्ष्य जिसका अवलम्ब विरोधकर्ता और आवेदक लें, विहित रीति में और विहित समय के भीतर रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किया जाएगा और यदि वे चाहें तो रजिस्ट्रार उन्हें सुनवाई का अवसर देगा ।

(5) रजिस्ट्रार, यदि ऐसा अपेक्षित हो, पक्षकारों को सुनने के पश्चात् और साक्ष्य पर विचार कर यह विनिश्चय करेगा कि रजिस्ट्रीकरण अनुज्ञात किया जाए या नहीं और किन शर्तों और परिसीमाओं के अधीन, यदि कोई है, अनुज्ञात किया जाए और वह आक्षेप के किसी आधार पर विचार कर सकेगा चाहे विरोधकर्ता ने उसका अवलंब लिया हो या नहीं ।

(6) जहां विरोध की सूचना देने वाला, कोई व्यक्ति या ऐसी सूचना की प्रति की प्राप्ति के पश्चात् प्रतिकथन भेजने वाला कोई आवेदक न तो भारत में निवास करता है और न ही कारबार करता है, वहां रजिस्ट्रार उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह रजिस्ट्रार के समक्ष कार्यवाहियों के खर्चे की प्रतिभूति दे और सम्यक्तः प्रतिभूति देने में व्यतिक्रम होने पर, यथास्थिति, विरोध या आवेदन को परित्यक्त मान सकेगा ।

(7) रजिस्ट्रार, ऐसे निबन्धनों पर, जिन्हें वह न्यायसंगत समझे, प्रार्थना करने पर, विरोध की सूचना या प्रतिकथन में किसी गलती को शुद्ध करने की या उसका कोई संशोधन करने की अनुज्ञा दे सकेगा ।



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