Section 40 The Trade Marks Act, 1999

 



Section 40 The Trade Marks Act, 1999: 


Restriction on assignment or transmission where multiple exclusive rights would be created.—

(1) Notwithstanding anything in sections 38 and 39, a trade mark shall not be assignable or transmissible in a case in which as a result of the assignment or transmission there would in the circumstances subsist, whether under this Act or any other law, exclusive rights in more than one of the persons concerned to the use, in relation to—

(a) same goods or services;

(b) same description of goods or services;

(c) goods or services or description of goods or services which are associated with each other, of trade marks nearly resembling each other or of identical trade mark, if having regard to the similarity of the goods and services and to the similarity of the trade marks, the use of the trade marks in exercise of those rights would be likely to deceive or cause confusion: Provided that an assignment or transmission shall not be deemed to be invalid under this sub-section if the exclusive rights subsisting as a result thereof in the persons concerned respectively are, having regard to limitations imposed thereon, such as not to be exercisable by two or more of those persons in relation to goods to be sold, or otherwise traded in, within India otherwise than for export therefrom, or in relation to goods to be exported to the same market outside India or in relation to services for use at any place in India or any place outside India in relation to services available for acceptance in India.

(2) The proprietor of a registered trade mark who proposes to assign it may submit to the Registrar in the prescribed manner a statement of case setting out the circumstances and the Registrar may issue to him a certificate stating whether, having regard to the similarity of the goods or services and of the trade marks referred to in the case, the proposed assignment would or would not be invalid under sub-section (1), and a certificate so issued shall, subject to appeal and unless it is shown that the certificate was obtained by fraud or misrepresentation, be conclusive as to the validity or invalidity under sub-section (1) of the assignment insofar as such validity or invalidity depends upon the facts set out in the case, but, as regards a certificate in favour of validity, only if application for the registration under section 45 of the title of the person becoming entitled is made within six months from the date on which the certificate is issued.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 40 The Trade Marks Act, 1999: 

Union Of India vs Association Of Unified Telecom ... on 24 October, 2019


व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 की धारा 40 का विवरण : 

 जहां बहु अनन्य अधिकार सृजित हो जाएंगे वहां समनुदेशन या पारेषण पर निर्बन्धन-(1) धारा 38 और धारा 39 में किसी बात के होते हुए भी, व्यापार चिह्न उस दशा में समनुदेशनीय या पारेषणीय नहीं होगा जिसमें समनुदेशन या पारेषण के परिणामस्वरूप उन परिस्थितियों में एकाधिक सम्पृक्त व्यक्तियों को, चाहे इस अधिनियम के अधीन हो या किसी अन्य विधि के अधीन, -

         (क) उसी माल या सेवाओं;

     (ख) उसी विवरण वाले माल या सेवाओं;

    (ग) ऐसे माल या सेवाएं या माल या सेवाओं के विवरण, जो एक दूसरे से सहयुक्त हैं,

के संबंध में एक दूसरे से निकट सादृश्य रखने वाले व्यापार चिह्न या तद्रूप व्यापार चिह्न के अनन्य उपयोग के अधिकार अस्तित्ववान हो जाएंगे, यदि माल और सेवाओं और व्यापार चिह्न की समरूपता को ध्यान में रखते हुए, उन अधिकारों के प्रयोग में व्यापार चिह्न के उपयोग से धोखा या भ्रम होने की सम्भाव्यता है:परंतु समनुदेशन या पारेषण इस उपधारा के अधीन अविधिमान्य नहीं समझा जाएगा यदि उसके परिणामस्वरूप, सम्पृक्त व्यक्तियों के अस्तित्ववान अनन्य अधिकार उन पर अधिरोपित परिसीमाओं को ध्यान में रखते हुए, इस प्रकार के हैं, जो भारत के भीतर, वहां से निर्यात किए जाने से अन्यथा विक्रय किए जाने वाले या अन्यथा व्यापार किए जाने वाले माल के संबंध में या भारत के बाहर एक ही बाजार को निर्यात किए जाने वाले माल के संबंध में या भारत में स्वीकृति के लिए उपलभ्य सेवाओं के संबंध में, भारत में किसी स्थान पर या भारत के बाहर किसी स्थान पर उपयोग के लिए सेवाओं के संबंध में या भारत के बाहर के एक ही देश या क्षेत्र में उपयोग के लिए सेवाओं के संबंध में या उन व्यक्तियों में से दो या अधिक द्वारा प्रयोक्तव्य नहीं हैं ।

 (2) व्यापार चिह्न का स्वत्वधारी जो उसे समनुदेशन करने की प्रस्थापना करता है, रजिस्ट्रार को विहित रीति से परिस्थितियों का ब्यौरा देते हुए, मामले का कथन प्रस्तुत कर सकेगा और रजिस्ट्रार उसे एक प्रमाणपत्र दे सकेगा जिसमें यह कथन होगा कि क्या मामले में निर्दिष्ट माल या सेवाओं और व्यापार चिह्नों की समरूपता को ध्यान में रखते हुए, उपधारा (1) के अधीन प्रस्थापित समनुदेशन अविधिमान्य होगा या नहीं होगा और इस प्रकार जारी किया गया प्रमाणपत्र अपील के अधीन रहते हुए और जब तक यह दर्शित नहीं किया जाए कि प्रमाणपत्र कपट या दुर्व्यपदेशन से अधिप्राप्त किया गया था, उपधारा (1) के अधीन समनुदेशन की विधिमान्यता या अविधिमान्यता के बारे में, जहां तक ऐसी विधिमान्यता या अविधिमान्यता मामले में कथित तथ्यों पर निर्भर है निश्चायक होगा, किन्तु जहां तक विधिमान्यता के पक्ष में प्रमाणपत्र का संबंध है, यह तभी होगा जब हकदार बनने वाले व्यक्ति के हक के, धारा 45 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन उस तारीख से, जिसको प्रमाणपत्र जारी किया जाता है, छह मास के भीतर ही कर दिया जाता है ।


 


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