Attorney General Of India vs Lachma Devi Case in Hindi | भारत के महान्यायवादी बनाम लछमा देवी केस

Attorney General Of India vs Lachma Devi  Case in Hindi |  भारत के महान्यायवादी बनाम लछमा देवी केस हिंदी में


Landmark Cases of India / सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले

आजाद भारत में आपने यह कभी नहीं सुना होगा कि किसी मुजरिम को जनता के सामने फांसी दी गई, यानी कि सरकारी तौर पर किसी व्यक्ति को जिसे कोर्ट ने मुजरिम करार दिया हो और उसे फांसी की सजा दी हो उसे भी कभी सार्वजनिक फांसी नहीं दी जाती. भारत में सार्वजनिक फांसी का प्रावधान नहीं है. इससे जुड़ा एक केस सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था अटॉर्नी जनरल वर्सेस लक्ष्मा देवी. इस केस में लक्ष्मा देवी नाम की महिला पर आरोप था कि उसने अपनी बहू को जिंदा जला दिया. लक्ष्मा देवी ने घर में रह रहे अपनी बहू को आग लगा दी और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया मगर कुछ समय बाद पड़ोसियों ने आकर दरवाजा खोला और बहू को अस्पताल लेकर गए. जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. इस मामले में पीड़िता ने पुलिस को गवाही नहीं दी मगर इलाज के दौरान उसकी डॉक्टर से बात हुई जिसमें उसने डॉक्टर को बताया कि उसकी इस हालत के जिम्मेदार उसकी सास है और पड़ोसियों के द्वारा भी यही जानकारी दी गई. जिसके आधार पर लक्ष्मा  देवी को गिरफ्तार तो किया गया मगर साक्ष्यों की कमी से लक्ष्मा देवी को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया. मगर उसके बाद राजस्थान सरकार ने इस फैसले के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में अपील किया. राजस्थान हाई कोर्ट ने पूरे मामले को सुनने के बाद  लक्ष्मा देवी को  मुजरिम करार दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इस मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने दहेज हत्या मामले के तहत एक जघन्य अपराध माना और कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लक्ष्मा देवी को सजा ए मौत की सजा सुनाई . राजस्थान हाई कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने सरकार से कहा कि  जेल मैनुअल के तहत अगर हो सके तो लक्ष्मा देवी को  किसी बड़े मैदान या स्टेडियम में सार्वजनिक फांसी दी जाए  और उसके लिए मीडिया में पहले खबर इश्तेहार दिए जाए.


मगर यह मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां सुप्रीम कोर्ट ने पहले पूरे देश के जेल मैनुअल से यह जानना चाहा कि क्या सार्वजनिक फांसी का प्रावधान पहले से दिया गया है या नहीं. क्योंकि इस तरह की घटना इससे पहले नहीं हुई थी. जांच के बाद पता चला कि इस तरह का कोई भी प्रावधान जेल मैनुअल में नहीं दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर यह प्रावधान जेल मैनुअल में दिया भी गया होता तो भी यह अनुच्छेद 22 का उल्लंघन होता और संवैधानिक होता. कभी भी सार्वजनिक फांसी की इजाजत नहीं दी जा सकती. लक्ष्मा देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए सजा-ए-मौत के फैसले को उम्र कैद में बदल दिया गया. और साथ ही इस केस में जो सार्वजनिक फांसी दिए जाने की बात राजस्थान हाई कोर्ट के द्वारा कही गई थी उसे भी हटा दिया गया.

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