Sunil Batra vs Delhi Administration | सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन
Sunil Batra vs Delhi Administration | सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन
Sunil Batra v. Delhi Administration (1978) 4 SCC 409
जेल में बंद कैदियों के भी कुछ मूल अधिकार होते हैं. और उनके इसी अधिकारों की लड़ाई से जुड़ा सबसे बड़ा मामला सुनील बत्रा वर्सेस दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन केस से सामने आया. सुनील बत्रा के दो कैसे दोनों ही कैदियों के अधिकारों से जुड़े हैं. सुनील बत्रा एक सजायाफ्ता कैदी था जिसे सजा ए मौत की सजा सुनाई गई थी. उसने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा जिसमें उसने अपने साथ रह रहे दूसरे कैदी के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार की शिकायत की. उस कैदी को जेल के ही एक कर्मचारी के द्वारा परेशान किया जा रहा था उससे मिलने आए उसके परिवार वालों से पैसे लेने के लिए उसे बार-बार प्रताड़ित किया जाता था. उस लेटर को पीटी सन मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की. इस सुनवाई के दौरान कई तरह के मामले कोर्ट के सामने आए जैसे कि क्या किसी मुजरिम के द्वारा एक पत्र भेजकर कोर्ट में सुनवाई कराई जा सकती है या या कोई सजा आपता मुजरिम इस तरह का पत्र कोर्ट को लिख सकता है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो जेल में है उसके मौलिक अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं खत्म हो जाते क्योंकि वह जेल में है. और कोर्ट उसके द्वारा भेजे गए पत्र पर सुनवाई कर सकती है. इस मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने उस पुलिस कर्मचारी के साथ-साथ तिहाड़ जेल के सुपरहिट को भी दोषी करार दिया. कोर्ट का कहना था कि जेल के सुपरहिट की यह जिम्मेदारी थी कि वह जेल में रहने वाले कैदियों के अधिकारों की रक्षा करें जो यह करने में नाकामयाब रहा. इसलिए इस तरह के जितने भी दोषी कर्मचारी हैं उन्हें दिल्ली सरकार दंडित करें. इसी के साथ साथ कोर्ट का कहना था कि जेल में एक कंप्लेंट बॉक्स रखा जाएगा जिसमें लॉक लगा होगा और उसकी चाबी जिले के मजिस्ट्रेट के पास होगी वही उस लॉक को खोल पाएगा. जेल में रहने वाले कैदी अपनी हर तरह की शिकायत उस बॉक्स में लिख कर डाल सकते हैं. इसके से सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि जेल में रह रहे कैदियों के भी अधिकार होते हैं.
Landmark Cases of India / सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले
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