ज्ञान कौर बनाम स्टेट ऑफ पंजाब | Gian Kaur vs State of Punjab Case in Hindi
ज्ञान कौर बनाम स्टेट ऑफ पंजाब | Gian Kaur vs State of Punjab - Landmark Supreme Court Case in Hindi -
ज्ञान कौर वर्सेस स्टेट ऑफ पंजाब का केस क्रिमिनल लॉ और कांस्टीट्यूशनल लॉ का एक महत्वपूर्ण कैसा है. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा की आर्टिकल 21 यानी राइट टू लाइफ मैं राइट टू डाई जुड़ा हुआ नहीं है. जीवन के अधिकार में मृत्यु का अधिकार शामिल नहीं है. इस केस में आईपीसी के सेक्शन 306 के तहत ज्ञान कौर और उसके पति को सजा हुई थी जो आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है. उन पर एक महिला गुरवंत कौर को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था. जब सुप्रीम कोर्ट में या केस आया तो उन्होंने अपना पक्ष रखा. उनका कहना था कि आईपीसी का सेक्शन 306 असंवैधानिक है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2 वर्ष पहले पी राथीराम के एक केस में 309 को असंवैधानिक घोषित किया था. 309 में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रावधान है. जब कोई आत्महत्या की कोशिश करता है और उसमें फेल हो जाता है इन दोनों स्थिति में उस पर यह धारा लगाई जाती है. मगर पीरथ नाम के केस में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था. ज्ञान कौर का कहना यह था की जब 309 असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है तो इसका अर्थ यह है कि मरने का अधिकार व्यक्ति के मूल अधिकार में शामिल हो गया है. और अगर कोई व्यक्ति अपने मूल अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहता है और हम उसमें उसकी मदद नहीं करते हैं तब यह संवैधानिक होगा. इसलिए हमने किसी भी तरह का अपराध नहीं किया है. इस केस में पारी नारी मन और सॉरी सोराबजी कोर्ट के मित्र के रूप में काम कर रहे थे. उनका कहना था कि आर्टिकल 21 जीवन जीने का अधिकार एक सकारात्मक अधिकार है उसमें केवल जीवन जीने के अधिकार के बारे में बात किया गया है और उसके अधिकारों की सुरक्षा की बात की गई है. इसमें जीवन समाप्त करने की बात नहीं कही गई है. मामले को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जब अपनी जजमेंट दी तो उसका कहना था कि राइट टू लाइफ एक सकारात्मक कानून है इसमें जीवन जीने की और जीवन के सुरक्षा की बात की गई है इसके अंदर मृत्यु का अधिकार कहीं पर भी नहीं है. और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के पी राथन के केस को भी ओवर रूल कर दिया. जिसके बाद आईपीसी की धारा 306 के साथ-साथ 309 का संवैधानिक महत्व हो गया. इसके बाद यह बात भी सामने आई कि किसी भी व्यक्ति के जीवन पर उसका अधिकार नहीं है बल्कि स्टेट का अधिकार है. समाज में विकास के लिए व्यक्ति का जिंदा रहना जरूरी है. साथी कोर्ट ने यह भी कहा कि जीवन जीने के अधिकार में जीवन को समाप्त करने का अधिकार शामिल नहीं है.
Landmark Cases of India / सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले
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