State Of Gujarat And Anr vs Hon'Ble High Court Of Gujarat Case in Hindi | गुजरात राज्य बनाम माननीय उच्च न्यायालय गुजरात

State Of Gujarat And Anr vs Hon'Ble High Court Of Gujarat Case in Hindi | गुजरात राज्य बनाम माननीय उच्च न्यायालय गुजरात


आपने पुरानी फिल्मों में देखा होगा कि हीरो अगर जेल से छूट कर बाहर निकल रहा है तो जाते समय पुलिस वाले उसे जेल के दौरान किए गए उसके द्वारा कार्यों के बदले उसे कुछ पैसे देते हैं. जो कैदी के द्वारा किए गए कार्य की मजदूरी होती है. मगर क्या सच में भी जेल में कैदियों के द्वारा किए गए कार्य के बदले में उन्हें पैसे दिए जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि जेल में जो कैदियों द्वारा बिहारी या मजदूरी की जाती है उसके बदले में उन्हें एक बेसिक रकम अदा की जाए. जिसके खिलाफ गुजरात तथा अन्य कई स्टेट सुप्रीम कोर्ट में आए और उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह कह दी है और उन्हें पैसे नहीं दिए जा सकते. कोर्ट का कहना था कि जिन कैदियों को सजा के साथ-साथ काम करने की सजा दी गई है उन्हें उनके काम के बदले 1 बेसिक मजदूरी तो दी ही जानी चाहिए. पैसा कितना दिया जाना चाहिए यह अलग विषय है. मगर ऐसा नहीं हो सकता कि उसे काम के बदले कुछ ना दिया जाए. क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में राइट अगेंस्ट एक्सप्लोइटेशन में यह कहा गया है कि आप बिगारी किसी से नहीं करवा सकते यानी कि बिना पैसा दिए उससे कोई काम नहीं करवा सकते. इसलिए आपको कैदियों को उनके काम के बदले कुछ तो भुगतान करना होगा. भुगतान कितना करना है इसका सरकार अपने हिसाब से एक फ्रेमवर्क तैयार करें. इसके अलावा आर्टिकल 21 राइट टू लाइफ मैं भी यह दिया गया है कि अगर कोई व्यक्ति जेल में चला गया है तो इसके वजह से उसके जीवन के मूल अधिकार कम जरूर भूल गए हैं मगर खत्म नहीं हुए हैं. इस मामले के दो पक्ष थे पहला यह कि जब कोई व्यक्ति जेल में है और उसे हार्ड पनिशमेंट मिली हुई है और ना चाहते हुए भी उसे काम करना पड़ रहा है और दूसरे वह लोग हैं जिन्हें साधारण जेल हुई है और वह अपनी मर्जी से काम करना चाहते हैं तो दोनों ही पक्ष में उन्हें मेहनत आना मिलना चाहिए. जब मेहनत आना मिलेगा तो उसका दो तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है कैदी जब अपनी सजा पूरी कर लेगा और वापस समाज में जाएगा उस समय वह पैसा उनके काम आएगा. दूसरा पक्ष यह भी है कि जिसके के जुर्म में वह जेल में आए हुए होते हैं उसमें जो विक्टिम है उनको कंपनसेशन के लिए भी जो पैदा किया जा सकता है वह इनके द्वारा जो मेहनत करके कमाया गया पैसा है उसके तहत दिया जा सकता है. इस मामले में सरकारों ने कहीं पर भी सही तरीके से नियम नहीं बनाए थे जिसके चलते यह दिक्कत हो रही थी साथ ही सरकार यह भी सोच रही होगी कि अगर काम के बदले सभी को पैसा देना पड़ा तो यह सरकार पर बेवजह का बर्डन हो जाएगा. मगर कोर्ट ने कैदियों के पक्ष में उनके संवैधानिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया. उसके बाद से ही जेलों में कैदियों को काम के बदले मेहनत आना देने की शुरुआत हुई.


Landmark Cases of India / सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले

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