Section 10 The Factories Act, 1948
Section 10 The Factories Act, 1948 :
Certifying surgeons.—
(1) The State Government may appoint qualified medical practitioners to be certifying surgeons for the purposes of this Act within such local limits or for such factory or class or description of factories as it may assign to them respectively.
(2) A certifying surgeon may, with the approval of the State Government, authorise any qualified medical practitioner to exercise any of his powers under this Act for such period as the certifying surgeon may specify and subject to such conditions as the State Government may think fit to impose, and references in this Act to a certifying surgeon shall be deemed to include references to any qualified medical practitioner when so authorised.
(3) No person shall be appointed to be, or authorised to exercise the powers of, a certifying surgeon, or having been so appointed or authorised, continue to exercise such powers, who is or becomes the occupier of a factory or is or becomes directly or indirectly interested therein or in any process or business carried on therein or in any process or machinery connected therewith or is otherwise in the employ of the factory: 1[Provided that the State Government may, by order in writing and subject to such conditions as may be specified in the order, exempt any person or class of persons from the provisions of this sub-section in respect of any factory or class or description of factories.]
(4) The certifying surgeon shall carry out such duties as may be prescribed in connection with—
(a) the examination and certification of young persons under this Act;
(b) the examination of person engaged in factories in such dangerous occupations or processes as may be prescribed;
(c) the exercising of such medical supervision as may be prescribed for any factory or class or description of factories where—
(i) cases of illness have occurred which it is reasonable to believe are due to the nature of the manufacturing process carried on, or other conditions of work prevailing, therein;
(ii) by reason of any change in the manufacturing process carried on or in the substances used therein or by reason of the adoption of any new manufacturing process or of any new substance for use in a manufacturing process, there is a likelihood of injury to the health of workers employed in that manufacturing process;
(iii) young persons are, or are about to be, employed in any work which is likely to cause injury to their health. Explanation.—In this section “qualified medical practitioner” means a person holding a qualification granted by an authority specified in the Schedule to the Indian Medical Degrees Act, 1916 (7 of 1916), or in the Schedules to the Indian Medical Council Act, 1933 (27 of 1933)2.
Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 10 The Factories Act, 1948:
Barat Fritz Werner Ltd vs State Of Karnataka on 2 February, 2001
Gammon India Ltd. Etc. Etc vs Union Of India & Ors. Etc on 20 March, 1974
Sitaram Ramcharan Etc. vs M.N. Nagarshana And Ors. on 25 September, 1959
V. Sasidharan vs Peter & Karunakar & Ors on 23 August, 1984
Gujarat Electricity vs Hind Mazdoor Sabha & Ors on 9 May, 1995
A.P. Paper Mills Ltd. Etc. Etc vs Government Of A.P. And Anr on 28 September, 2000
Delhi Cloth & General Mills Co. Ltd vs Chief Commissioner, Delhi & Ors on 11 September, 1969
Union Of India & Anr vs Belgachi Tea Company Ltd. & Ors on 9 May, 2008
D. Krishnan & Anr vs Special Officer, Vellore on 16 May, 2008
A.P. Paper Mills Ltd. Etc. Etc vs Government Of A.P. And Anr on 28 September, 2000
कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 10 का विवरण -
प्रमाणकर्ता सर्जन-(1) राज्य सरकार, अर्हित चिकित्सा-व्यवसायियों को ऐसी स्थानीय सीमाओं में या ऐसे कारखाने या ऐसे वर्ग या प्रकार के कारखानों के लिए जैसे वह उन्हें क्रमशः सौंपे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रमाणकर्ता सर्जन नियुक्त कर सकेगी ।
(2) प्रमाणकर्ता सर्जन, राज्य सरकार के अनुमोदन से, किसी अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी को इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों में से किसी का प्रयोग, ऐसी कालावधि में जैसी प्रमाणकर्ता सर्जन विनिर्दिष्ट करे और ऐसी शर्तों के अध्यधीन जैसी राज्य सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे, करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा, और इस अधिनियम में प्रमाणकर्ता सर्जन के प्रति निर्देशों के अन्तर्गत किसी अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी के प्रति निर्देश भी समझे जाएंगे जब वह ऐसे प्राधिकृत हो ।
(3) कोई व्यक्ति जो किसी कारखाने का अधिष्ठाता है या हो जाता है अथवा उसमें या उसमें चलाई जाने वाली किसी प्रक्रिया या कारबार में या उससे संबंधित किसी पेटेंट या मशीनरी में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः हितबद्ध है या हो जाता है अथवा कारखाने में अन्यथा नियोजित है वह प्रमाणकर्ता सर्जन के रूप में नियुक्त या उसकी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत नहीं किया जाएगा अथवा वैसे नियुक्त या प्राधिकृत हो चुकने पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करना जारी नहीं रखेगाः
[परन्तु राज्य सरकार लिखित आदेश द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को किसी कारखाने या किसी वर्ग या प्रकार के कारखानों की बाबत इस धारा के उपबंधों से छूट दे सकेगी ।]
(4) प्रमाणकर्ता सर्जन ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो निम्नलिखित के सम्बन्ध में विहित किए जाएं-
(क) इस अधिनियम के अधीन अल्पवय व्यक्तियों की परीक्षा और प्रमाणीकरण;
(ख) कारखानों में ऐसी संकटपूर्ण उपजीविकाओं या प्रक्रियाओं में, जैसी विहित की जाएं लगे हुए व्यक्तियों की परीक्षा;
(ग) ऐसे चिकित्सीय पर्यवेक्षण का, जैसा किसी कारखाने या किसी वर्ग या प्रकार के कारखानों के लिए विहित किया जाए, प्रयोग जहां-
(i) रुग्णता के ऐसे मामले हुए हैं जिनकी बाबत यह विश्वास करना युक्तियुक्त है कि वे वहां चलाई जाने वाली विनिर्माण प्रक्रिया के स्वरूप या वहां विद्यमान अन्य काम की दशाओं के कारण हुआ है,
(ii) चलाई जाने वाली विनिर्माण प्रक्रिया में या प्रयुक्त पदार्थों में किसी परिवर्तन के कारण अथवा किसी नई विनिर्माण प्रक्रिया के या विनिर्माण प्रक्रिया में प्रयोग के लिए किसी नए पदार्थ के अपनाए जाने के कारण, उस विनिर्माण प्रक्रिया में नियोजित कर्मकारों के स्वास्थ्य की क्षति संभाव्य है,
(iii) अल्पवय व्यक्ति किसी ऐसे काम में नियोजित हैं या किए जाने वाले हैं जिससे उनके स्वास्थ्य को क्षति पहुंचना संभाव्य है ।
स्पष्टीकरण-इस धारा में “अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके पास भारतीय चिकित्सा उपाधि अधिनियम, 1916 (1916 का 7) की अनुसूची में या भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम, 1933 (1933 का 27) की अनुसूची में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी द्वारा प्रदत्त अर्हता हो ।
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