Pt. Parmanand Katara vs Union Of India & Ors case in Hindi | परमानंद कटारा बनाम भारत संघ

 Pt. Parmanand Katara vs Union Of India & Ors case in Hindi | परमानंद कटारा बनाम भारत संघ



Parmanand Katara v. Union of India, (1995) 3 SCC 248

Equivalent citations: 1989 AIR 2039, 1989 SCR (3) 997

कई बार सड़क पर दुर्घटनाएं हो जाती हैं और उस दुर्घटना मैं घायल व्यक्ति को हॉस्पिटल लेकर जाया जाता है तो डॉक्टर उसे भर्ती करने में या उसका इलाज शुरू करने में आनाकानी करते हैं. किसी दूसरे हॉस्पिटल में रेफर करने की बात करते हैं. क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है यह मेडिकल लीगल केस है और अगर वह इसे करेंगे तो कल को पुलिस की पूछताछ में उन्हें परेशान किया जाएगा. इस मामले पर परमानंद कटारा जो एक सोशल एक्टिविस्ट थे. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर को पढ़कर जिसमें लिखा था कि एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है और उसे जब अस्पताल लेकर जाएगा आता है तो हॉस्पिटल वाले उसे भर्ती करने से मना कर देते हैं और किसी दूसरे हॉस्पिटल में रेफर कर देते हैं जहां पर मेडिकल लीगल कैसे देखे जाते हैं और वह हॉस्पिटल वहां से 20 किलोमीटर दूर था जब वह आदमी जख्मी व्यक्ति को दूसरे हॉस्पिटल में लेकर जा रहा था तभी रास्ते में उसकी मौत हो गई. इसी घटना पर यह रिपोर्ट छपी थी जिसे आधार बनाते हुए परमानंद कटारा ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल लगाया. उसका कहना था कि मौजूदा कानून इस तरीके के हैं  मुश्किल में फंसे किसी भी आदमी की मदद करने वाले व्यक्ति को परेशान ही करते हैं उनकी कोई सहायता नहीं करते. इसीलिए घायल व्यक्ति की ना तो कोई आम व्यक्ति मदद करना चाहता है और ना ही डॉक्टर उसका इलाज करना चाहते हैं. इसमें टेट का कहना था कि कानून इस तरीके से बने हुए हैं की पुलिस को एक्सीडेंट वाले मामले में सबूत जुटाने की आवश्यकता पड़ती है इसलिए सभी हॉस्पिटल में यह सुविधा नहीं दी गई है. यह सुविधा केवल सरकारी हॉस्पिटल में या जहां पर मेडिकल लीगल केसेस की सुविधा होती है वहीं पर घायल व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है. मगर ऐसा करने पर दो तरह की दिक्कत होती है. पहला दो विक्टिम के जान जाने की संभावना अधिक होती है अगर एक्सीडेंट तुरंत बाद उसे मेडिकल सुविधा नहीं दी जाए तो. दूसरी बात अगर उसे किसी भी हॉस्पिटल में ले जाकर डॉक्टर द्वारा उसका इलाज कराया जाता है तो पुलिस के द्वारा वहां पर डॉक्टर को पूछताछ कर परेशान करने की संभावना अधिक होती है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहां की आर्टिकल 21 को ध्यान में रखते हुए जीवन का अधिकार सबसे ऊपर है. क्योंकि किसी की जान अगर एक बार चली गई तो उसे दोबारा नहीं लाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि सरकार ऐसे कानून बनाए जिससे मरीज का इलाज भी समय पर हो और डॉक्टरों को पुलिस के द्वारा ज्यादा परेशान भी ना किया जाए. घायल व्यक्ति चाहे आम व्यक्ति हो या क्रिमिनल हो उसकी जान बचाना डॉक्टर की पहली जिम्मेदारी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस जजमेंट को टीवी रेडियो अखबार के जरिए समाज में पूरी तरीके से प्रचारित करना चाहिए. ताकि डॉक्टर और आम आदमी सब को इस बात की पूरी जानकारी हो कि इस तरीके की दुर्घटना जब भी हो तो उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है  और वह घायल व्यक्ति को सीधे किसी भी हॉस्पिटल में ले जाएं और डॉक्टर उनका इलाज कर सके.


Landmark Cases of India / सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले

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