Section 84 CrPC
Section 84 CrPC in Hindi and English
Section 84 of CrPC 1973 :- 84. Claims and objections to attachment — (1) If any claim is preferred to, or objection made to the attachment of, any property attached under section 83, within six months from the date of such attachment, by any person other than the proclaimed person, on the ground that the claimant or objector has an interest in such property and that such interest is not liable to attachment under section 83, the claim or objection shall be inquired into and may be allowed or disallowed in whole or in part :
Provided that any claim preferred or objection made within the period allowed by this sub-section may, in the event of the death of the claimant or objector, be continued by his legal representative.
(2) Claims or objections under sub-section (1) may be preferred or made in the Court by which the order of attachment is issued, or, if the claim or objection is in respect of property attached under an order endorsed under sub-section (2) of section 83, in the Court of the Chief Judicial Magistrate of the district in which the attachment is made.
(3) Every such claim or objection shall be inquired into by the Court in which it is preferred or made :
Provided that, if it is preferred or made in the Court of a Chief Judicial Magistrate, he may make it over for disposal to any Magistrate subordinate to him.
(4) Any person whose claim or objection has been disallowed in whole or in part by an order under sub-section (1) may, within a period of one year from the date of such order, institute a suit to establish the right which he claims in respect of the property in dispute; but subject to the result of such suit, if any, the order shall be conclusive.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 84 of Criminal Procedure Code 1973:
Amina Ahmed Dossa & Ors vs State Of Maharashtra on 15 January, 2001
Subhash Popatlal Dave vs Union Of India & Anr on 16 July, 2013
Syed Farooq Mohammad vs Union Of India And Anr on 14 May, 1990
Vimalben Ajitbhai Patel vs Vatslabeen Ashokbhai Patel And on 14 March, 2008
Licil Antony vs State Of Kerala & Anr on 15 April, 2014
Licil Antony vs State Of Kerala & Anr on 15 April, 1947
I.V. Shivaswamy vs State Of Mysore on 18 January, 1971
Srirangan vs State Of Tamil Nadu on 30 November, 1977
Gopalan Nair vs The State Of Kerala on 22 December, 1972
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 84 का विवरण : - 84. कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियाँ -- (1) यदि धारा 83 के अधीन कुर्क की गई किसी संपत्ति के बारे में उस कुर्की की तारीख से छह मास के भीतर कोई व्यक्ति, जो उद्घोषित व्यक्ति से भिन्न है, इस आधार पर दावा या उसके कुर्क किए जाने पर आपत्ति करता है कि दावेदार या आपत्तिकर्ता का उस संपत्ति में कोई हित है और ऐसा हित धारा 83 के अधीन कुर्क नहीं किया जा सकता तो उस दावे या आपत्ति की जाँच की जाएगी, और उसे पूर्णतः या भागतः मंजूर या नामंजूर किया जा सकता है :
परन्तु इस उपधारा द्वारा अनुज्ञात अवधि के अंदर किए गए किसी दावे या आपत्ति को दावेदार या आपत्तिकर्ता की मृत्यु हो जाने की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा चालू रखा जा सकता है।
(2) उपधारा (1) के अधीन दावे या आपत्तियाँ उस न्यायालय में, जिसके द्वारा कुर्की का आदेश जारी किया गया है, या यदि दावा या आपत्ति ऐसी संपत्ति के बारे में है जो धारा 83 की उपधारा (2) के अधीन पृष्ठांकित आदेश के अधीन कुर्क की गई है तो, उस जिले के, जिसमें कुर्की की जाती है मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जा सकती है।
(3) प्रत्येक ऐसे दावे या आपत्ति की जांच उस न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसमें वह किया गया या की गई है :
परन्तु यदि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया गया या की गई है तो वह उसे निपटारे के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को दे सकता है।
(4) कोई व्यक्ति, जिसके दावे या आपत्ति को उपधारा (1) के अधीन आदेश द्वारा पूर्णतः या भागतः नामंजूर कर दिया गया है, ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर, उस अधिकार को सिद्ध करने के लिए, जिसका दावा वह विवादग्रस्त संपत्ति के बारे में करता है, वाद संस्थित कर सकता है; किन्तु वह आदेश ऐसे वाद के, यदि कोई हो, परिणाम के अधीन रहते हुए निश्चायक होगा।
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