Section 65 Indian Evidence Act 1872

 

Section 65 Indian Evidence Act 1872 in Hindi and English 



Section 65 Evidence Act 1872 :Cases in which secondary evidence relating to documents may be given -- Secondary evidence may be given of the existence, condition or contents of a document in the following cases:-

(a) when the original is shown or appears to be in the possession or power- of the person against whom the document is sought to be proved, or of any person out of reach of, or not subject to the process of the Court, or of any person legally bound to produce it, and when, after the notice mentioned in section 66, such person does not produce it;

(b) when the existence, condition or contents of the original have been proved to be admitted in writing by the person against whom it is proved or by his representative in interest;

(c) when the original has been destroyed or lost, or when the party offering evidence of its contents cannot, for any other reason not arising from his own default or neglect, produce it in reasonable time;

(d) when the original is of such a nature as not to be easily movable;

(e) when the original is a public document within the meaning of section 74;

(f) when the original is a document of which a certified copy is permitted by this Act, or by any other law in force in India to be given in evidence;

(g) when the originals consist of numerous accounts or other documents which cannot conveniently be examined in Court, and the fact to be proved is the general result of the whole collection.

In cases (a), (c) and (d), any secondary evidence of the contents of the document is admissible.

In case (b), the written admission is admissible.

In case (e) or (f), a certified copy of the document, but no other kind of secondary evidence, is admissible.

In case (g), evidence may be given as to the general result of the documents by any person who has examined them, and who is skilled in the examination of such documents.



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 65 Indian Evidence Act 1872:

Arjun Panditrao Khotkar vs Kailash Kushanrao Gorantyal on 14 July, 2020

Rakesh Mohindra vs Anita Beri & Ors on 6 November, 2015

Jagmail Singh vs Karamjit Singh on 13 May, 2020

Smt. J. Yashoda vs Smt. K. Shobha Rani on 19 April, 2007

U.Sree vs U.Srinivas on 11 December, 2012

Anvar P.V vs P.K.Basheer & Ors on 18 September, 2014

State Of Rajasthan And Ors. vs Khemraj And Ors. on 10 January, 2000

Marwari Kumhar And Ors vs Bhagwanpuri Guru Ganeshpuri And  on 10 August, 2000

Sonu @ Amar vs State Of Haryana on 18 July, 2017

Arvind Singh vs The State Of Maharashtra on 24 April, 2020



भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65 का विवरण :  -  अवस्थाएं जिनमें दस्तावेजों के संबंध में द्वितीयक साक्ष्य दिया जा सकेगा -- किसी दस्तावेज के अस्तित्व, दशा या अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य निम्नलिखित अवस्थाओं में दिया जा सकेगा :-

(क) जबकि यह दर्शित कर दिया जाए या प्रतीत होता हो कि मूल ऐसे व्यक्ति के कब्जे में या शक्त्यधीन है -

जिसके विरुद्ध उस दस्तावेज को साबित किया जाना ईप्सित है, अथवा

जो न्यायालय की आदेशिका की पहुंच के बाहर है, या ऐसी आदेशिका के अध्यधीन नहीं है, अथवा जो उसे पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है,

और जबकि ऐसा व्यक्ति धारा 66 में वर्णित सूचना के पश्चात् उसे पेश नहीं करता है

(ख) जबकि मूल के अस्तित्व, दशा या अंतर्वस्तु को उस व्यक्ति द्वारा, जिसके विरुद्ध उसे साबित किया जाना है या उसके हित प्रतिनिधि द्वारा लिखित रूप में स्वीकृत किया जाना साबित कर दिया गया है,

(ग) जबकि मूल नष्ट हो गया है, या खो गया है, अथवा जबकि उसकी अंतर्वस्तु का साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाला पक्षकार अपने स्वयं के व्यतिक्रम या उपेक्षा से अनुभूत अन्य किसी कारण से उसे युक्तियुक्त समय में पेश नहीं कर सकता,

(घ) जबकि मूल इस प्रकृति का है कि उसे आसानी से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता,

(ङ) जबकि मूल धारा 74 के अर्थ के अंतर्गत एक लोक-दस्तावेज है,

(च) जबकि मूल ऐसी दस्तावेज है जिसकी प्रमाणित प्रति का साक्ष्य में दिया जाना इस अधिनियम द्वारा या भारत में प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अनुज्ञात है,

(छ) जबकि मूल ऐसे अनेक लेखाओं या अन्य दस्तावेजों से गठित है, जिनकी न्यायालय में सुविधापूर्वक परीक्षा नहीं की जा सकती और वह तथ्य जिसे साबित किया जाना है, संपूर्ण संग्रह का साधारण परिणाम है।

अवस्थाओं (क), (ग) और (घ) में दस्तावेजों की अंतर्वस्तु का कोई भी द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य है।

अवस्था (ख) में वह लिखित स्वीकृति ग्राह्य है।

अवस्था (ङ) या (च) में दस्तावेज की प्रमाणित प्रति ग्राह्य है, किन्तु अन्य किसी भी प्रकार का द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य नहीं है।

अवस्था (छ) में दस्तावेजों के साधारण परिणाम का साक्ष्य ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा दिया जा सकेगा, जिसने उनकी परीक्षा की है और जो ऐसी दस्तावेजों की परीक्षा करने में कुशल है।


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