Section 452 CrPC

 

Section 452 CrPC in Hindi and English



Section 452 of CrPC 1973 :- 452. Order for disposal of property at conclusion of trial —

(1) When an inquiry or trial in any Criminal Court is concluded, the Court may make such order as it thinks fit for the disposal, by destruction, confiscation or delivery to any person claiming to be entitled to possession thereof or otherwise, of any property or document produced before it or in its custody, or regarding which any offence appears to have been committed; or which has been used for the commission of any offence.

(2) An order may be made under sub-section (1) for the delivery of any property to any person claiming to be entitled to the possession thereof, without any condition or on condition that he executes a bond, with or without sureties, to the satisfaction of the Court, engaging to restore such property to the Court if the order made under sub-section (1) is modified or set aside on appeal or revision.

(3) A Court of Session may, instead of itself making an order under sub-section (1), direct the property to be delivered to the Chief Judicial Magistrate, who shall thereupon deal with it in the manner provided in sections 457, 458 and 459.

(4) Except where the property is livestock or is subject to speedy and natural decay, or where a bond has been executed in pursuance of sub-section (2), an order made under sub-section (1) shall not be carried out for two months, or when an appeal is presented, until such appeal has been disposed of..

(5) In this section, the term “property” includes, in the case of property regarding which an offence appears to have been committed, not only such property as has been originally in the possession or under the control of any party, but also any property into or for which the same may have been converted or exchanged and anything acquired by such conversion or exchange, whether immediately or otherwise.




Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 452 of Criminal Procedure Code 1973:

State(Gnct Of Delhi) vs Narender on 6 January, 2014

Mirza Iqbal Hussain Through vs State Of Uttar Pradesh on 10 November, 1982

State(Gnct Of Delhi) vs Narender on 6 January, 1947

Joginder Singh & Anr vs State Of Punjab & Anr on 16 November, 1978

Transport Commissioner, Andhra vs Sardar Ali, Bus Owner on 26 August, 1983

Main Pal vs State Of Haryana on 7 September, 2010

Dharmatma Singh vs Harminder Singh & Ors on 10 May, 2011

Shambhu Dayal Agarwala vs State Of West Bengal And Anr. on 3 May, 1990

Nidhi Kaim vs State Of M P And Ors Etc on 12 May, 2016

State Of Karnataka vs Selvi J. Jayalalitha & Ors on 14 February, 2017



दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 452 का विवरण :  -  452. विचारण की समाप्ति पर संपत्ति के व्ययन के लिए आदेश --

(1) जब किसी दण्ड न्यायालय में जांच या विचारण समाप्त हो जाता है तब न्यायालय उस संपत्ति या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष पेश की गई है, या उसकी अभिरक्षा में है अथवा जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध के करने में प्रयुक्त की गई है, नष्ट करके, अधिहृत करके या किसी ऐसे व्यक्ति को परिदान करके, जो उस पर कब्जा करने का हकदार होने का दावा करता है, या किसी अन्य प्रकार से उसका व्ययन करने के लिए आदेश दे सकेगा जैसा वह ठीक समझे।

(2) किसी संपत्ति के कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले किसी व्यक्ति को उस संपत्ति के परिदान के लिए उपधारा (1) के अधीन आदेश किसी शर्त के बिना या इस शर्त पर दिया जा सकता है कि वह न्यायालय को समाधानप्रद रूप में यह वचनबंध करते हुए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे कि यदि उपधारा (1) के अधीन किया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण में उपांतरित या अपास्त कर दिया गया तो वह उस संपत्ति को ऐसे न्यायालय को वापस कर देगा।

(3) उपधारा (1) के अधीन स्वयं आदेश देने के बदले सेशन न्यायालय संपत्ति को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को परिदत्त किए जाने का निदेश दे सकता है, जो तब उस संपत्ति के विषय में धारा 457,458 और 459 में उपबंधित रीति से कार्यवाही करेगा। 

(4) उस दशा के सिवाय, जब संपत्ति पशुधन है या शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है या जब उपधारा (2) के अनुसरण में बंधपत्र निष्पादित किया गया है, उपधारा (1) के अधीन दिया गया आदेश दो मास तक अथवा जहाँ अपील उपस्थित की गई है वहाँ जब तक उस अपील का निपटारा न हो जाए, कार्यान्वित न किया जाएगा ।

(5) उस संपत्ति की दशा में, जिसके बारे में अपराध किया गया प्रतीत होता है, इस धारा में “संपत्ति” पद के अन्तर्गत न केवल ऐसी संपत्ति है जो मूलतः किसी पक्षकार के कब्जे या नियंत्रण में रह चुकी है, वरन् ऐसी कोई संपत्ति जिसमें या जिसके लिए उस संपत्ति का संपरिवर्तन या विनिमय किया गया है और ऐसे संपरिवर्तन या विनिमय से, चाहे अव्यवहित रूप से चाहे अन्यथा, अर्जित कोई चीज भी है।



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