Section 446 CrPC
Section 446 CrPC in Hindi and English
Section 446 of CrPC 1973 :- 446. Procedure when bond has been forfeited -
(1) Where a bond under this Code is for appearance, or for production of property, before a Court and it is proved to the satisfaction of that Court, or of any Court to which the case has subsequently been transferred, that the bond has been forfeited,
or where in respect of any other bond under this Code, it is proved to the satisfaction of the Court by which the bond was taken, or of any Court to which the case has subsequently been transferred, or of the Court of any Magistrate of the first class, that the bond has been forfeited,
the Court shall record the grounds of such proof and may call upon any person bound by such bond to pay the penalty thereof or to show cause why it should not be paid.
Explanation -- A condition in a bond for appearance, or for production of property, before a Court shall be construed as including a condition for appearance, or as the case may be, for production of property before any Court to which the case may subsequently be transferred.
(2) If sufficient cause is not shown and the penalty is not paid, the Court may proceed to recover the same as if such penalty were a fine imposed by it under this Code :
Provided that where such penalty is not paid and cannot be recovered in the manner aforesaid, the person so bound as surety shall be liable, by order of the Court ordering the recovery of the penalty, to imprisonment in civil jail for a term which may extend to six months.
(3) The Court may, [after recording its reasons for doing so], remit any portion of the penalty mentioned and enforce payment in part only.
(4) Where a surety to a bond dies before the bond is forfeited, his estate shall be discharged from all liability in respect of the bond.
(5) Where any person who has furnished security under section 106 or section 117 or section 360 is convicted of an offence the commission of which constitutes a breach of the conditions of his bond, or of a bond executed in lieu of his bond under section 448, a certified copy of the judgment of the Court by which he was convicted of such offence may be used as evidence in proceedings under this section against his surety or suretiés and, if such certified copy is so used, the Court shall presume that such offence was committed by him unless the contrary is proved.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 446 of Criminal Procedure Code 1973:
Ajay Kumar @ Bittu vs The State Of Uttarakhand on 29 January, 2021
Prem Surana vs Addl. Munsif And Judicial on 13 August, 2002
Nupur Talwar vs Cbi & Anr on 7 June, 2012
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 446 का विवरण : - 446. प्रक्रिया, जब बंधपत्र समपहृत कर लिया जाता है --
(1) जहाँ इस संहिता के अधीन कोई बंधपत्र किसी न्यायालय के समक्ष हाजिर होने या संपत्ति पेश करने के लिए है और उस न्यायालय या किसी ऐसे न्यायालय को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया गया है, समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है कि बन्धपत्र समपहृत हो चुका है,
अथवा जहाँ इस संहिता के अधीन किसी अन्य बन्धपत्र की बाबत उस न्यायालय को, जिसके द्वारा बंधपत्र लिया गया था, या ऐसे किसी न्यायालय को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया गया है, या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के किसी न्यायालय को, समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है कि बंधपत्र समपहृत हो चुका है,
वहाँ न्यायालय ऐसे सबूत के आधारों को अभिलिखित करेगा और ऐसे बंधपत्र से आबद्ध किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसकी शास्ति दे या कारण दर्शित करे कि वह क्यों नहीं दी जानी चाहिए।
स्पष्टीकरण -- न्यायालय के समक्ष हाजिर होने या संपत्ति पेश करने के लिए बंधपत्र की किसी शर्त का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत ऐसे न्यायालय के समक्ष, जिसको तत्पश्चात् मामला अन्तरित किया जाता है, यथास्थिति, हाजिर होने या संपत्ति पेश करने की शर्त भी है।
(2) यदि पर्याप्त कारण दर्शित नहीं किया जाता है और शास्ति नहीं दी जाती है तो न्यायालय उसकी वसूली के लिए अग्रसर हो सकेगा मानो वह शास्ति इस संहिता के अधीन उसके द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो :
परन्तु जहाँ ऐसी शास्ति नहीं दी जाती है और वह पूर्वोक्त रूप में वसूल नहीं की जा सकती है वहाँ, प्रतिभू के रूप में इस प्रकार आबद्ध व्यक्ति, उस न्यायालय के आदेश से, जो शास्ति की वसूली का आदेश करता है, सिविल कारागार में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।
(3) न्यायालय, ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात् उल्लिखित शास्ति के किसी प्रभाग का परिहार और केवल भाग के संदाय का प्रवर्तन कर सकता है।
(4) जहाँ बंधपत्र के लिए कोई प्रतिभू बंधपत्र का समपहरण होने के पूर्व मर जाता है वहाँ उसकी संपदा, बंधपत्र के बारे में सारे दायित्व से उन्मोचित हो जाएगी।
(5) जहाँ कोई व्यक्ति, जिसने धारा 106 या धारा 117 या धारा 360 के अधीन प्रतिभूति दी है, किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, जिसे करना उसके बंधपत्र की या उसके बंधपत्र के बदले में धारा 448 के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों का भंग होता है, वहाँ उस न्यायालय के निर्णय की, जिसके द्वारा वह ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया था, प्रमाणित प्रतिलिपि उसके प्रतिभू या प्रतिभुओं के विरुद्ध इस धारा के अधीन सब कार्यवाहियों में साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाई जा सकती है और यदि ऐसी प्रमाणित प्रतिलिपि इस प्रकार उपयोग में लाई जाती है तो, जब तक प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसा अपराध उसके द्वारा किया गया था।
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