Section 330 CrPC
Section 330 CrPC in Hindi and English
Section 330 of CrPC 1973 :- 330. Release of person of unsound mind pending investigation or trial —
(1) Whenever a person is found under section 328 or section 329 to be incapable of entering defence by reason of unsoundness of mind or mental retardation, the Magistrate or Court, as the case may be shall, whether the case is one in which bail may be taken or not, order release of such person on bail :
Provided that the accused is suffering from unsoundness of mind or mental retardation which does not mandate in-patient treatment and a friend or relative undertakes to obtain regular out-patient psychiatric treatment from the nearest medical facility and to prevent from doing injury to himself or to any other person.
(2) If the case is one in which, in the opinion of the Magistrate or Court, as the case may be, bail cannot be granted or if an appropriate undertaking is not given, he or it shall order the accused to be kept in such a place where regular psychiatric treatment can be provided, and shall report the action taken to the State Government :
Provided that no order for the detention of the accused in a lunatic asylum shall be made otherwise than in accordance with such rules as the State Government may have made under the Mental Health Act, 1987 (14 of 1987).
(3) Whenever a person is found under section 328 or section 329 to be incapable of entering defence by reason of unsoundness of mind or mental retardation, the Magistrate or Court, as the case may be, shall keeping in view the nature of the act committed and the extent of unsoundness of mind or mental retardation, further determine if the release of the accused can be ordered :
Provided that
(a) if on the basis of medical opinion or opinion of a specialist, the Magistrate or Court, as the case may be, decide to order discharge of the accused, as provided under section 328 or section 329, such release may be ordered, if sufficient security is given that the accused shall be prevented from doing injury to himself or to any other person;
(b) if the Magistrate or Court, as the case may be, is of opinion that discharge of the accused cannot be ordered, the transfer of the accused to a residential facility for persons of unsound mind or mental retardation may be ordered wherein the accused may be provided care and appropriate education and training.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 330 of Criminal Procedure Code 1973:
Payare Lal vs State Of Punjab on 30 August, 1961
Eradu And Ors. vs State Of Hyderabad on 1 November, 1955
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 330 का विवरण : - 330. अन्वेषण या विचारण के लम्बन के दौरान विकृत्त चित्त के व्यक्ति को छोड़ा जाना --
(1) जब कभी कोई व्यक्ति, चित्त विकृतता के कारण या बुद्धि-मन्दता के कारण यदि धारा 328 या धारा 329 के अधीन प्रतिरक्षा करने में अक्षम पाया जाता है, तब यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय, चाहे मामला ऐसा है जिसमें जमानत ली जा सकती है या नहीं, ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना आदेशित करेगा :
परन्तु यह कि अभियुक्त चित्त विकृतता से या बुद्धि-मन्दता से ग्रस्त है जो कि अंतरंग रोगी उपचार की आज्ञा नहीं देती तथा कोई मित्र अथवा नातेदार निकटतम चिकित्सीय सुविधा से नियमित बहिर्रोग मनोविकारिकी चिकित्सीय उपचार प्राप्त करने तथा उसको स्वयं का या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने से निवारित करने का वचन देता है।
(2) यदि मामला ऐसा है, जिसमें यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय की राय में जमानत मंजूर नहीं की जा सकती या यदि उचित वचन नहीं दिया जाता है तब वह या यह अभियुक्त को ऐसे स्थान पर रखना आदेशित करेगा जहाँ नियमित मनोविकारिकी उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है, तथा की गई कार्यवाही की रिपोर्ट को राज्य शासन परन्तु यह कि अभियुक्त का पागलखाने में निरोध राज्य शासन द्वारा मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) के अधीन बनाए गए ऐसे नियमों के अनुसार किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
(3) जब कभी कोई व्यक्ति धारा 328 या धारा 329 के अधीन, चित्त विकृतता या बुद्धि-मन्दता के कारण प्रतिरक्षा करने में अक्षम पाया जाता है, यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय कारित किए गए कार्य की प्रकृति तथा चित्त विकृतता या बुद्धि-मन्दता के विस्तार को दृष्टि में रखते हुए यह और अवधारित करेगा कि क्या अभियुक्त की विमुक्ति को आदेशित किया जा सकता है :
परन्तु यह कि-- "
(क) यदि चिकित्सीय राय या विशेषज्ञ की राय के आधार पर यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय, धारा 328 या धारा 329 के अधीन यथा उपबन्धित अभियुक्त की उन्मुक्ति को आदेशित करने का विनिश्चय करता है, तब ऐसे छोड़े जाने को आदेशित किया जा सकेगा यदि इस बात की पर्याप्त प्रतिभूति दी जाती है कि अभियुक्त को स्वयं को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने से निवारित किया जाएगा;
(ख) यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय, इस राय का है कि अभियुक्त की उन्मुक्ति को आदेशित नहीं किया जा सकता तो चित्त-विकृत या मन्दबुद्धि व्यक्तियों के लिये आवासीय सुविधा में अभियुक्त के अंतरण को आदेशित किया जा सकता है जिसमें अभियुक्त को देख-रेख तथा उचित शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।
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