Section 324 CrPC

 Section 324 CrPC in Hindi and English



Section 324 of CrPC 1973 :- 324. Trial of persons previously convicted of offences against coinage, stamp law or property —

(1) Where a person, having been convicted of an offence punishable under Chapter XII or Chapter XVII of the Indian Penal Code (45 of 1860) with imprisonment for a term of three years or upwards, is again accused of any offence punishable under either of those Chapters with imprisonment for a term of three years or upwards, and the Magistrate before whom the case is pending is satisfied that there is ground for presuming that such person has committed the offence, he shall be sent for trial to the Chief Judicial Magistrate or committed to the Court of Session, unless the Magistrate is competent to try the case and is of opinion that he can himself pass an adequate sentence if the accused is convicted.

(2) When any person is sent for trial to the Chief Judicial Magistrate or committed to the Court of Session under sub-section (1), any other person accused jointly with him in the same inquiry or trial shall be similarly sent or committed, unless the Magistrate discharges such other person under section 239 or section 245, as the case may be.



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 324 of Criminal Procedure Code 1973:

State Of West Bengal & Anr vs Laisalhaque & Ors. Etc on 12 September, 1988

Rameshwar Dayal And Ors vs The State Of Uttar Pradesh on 15 February, 1978

Kunju Muhammed @ Khumani & Anr vs State Of Kerala on 11 August, 2003

C.K. Dasegowda & Ors vs State Of Karnataka on 15 July, 2014

Pampapathy vs State Of Mysore on 28 July, 1966

Nupur Talwar vs Cbi & Anr on 7 June, 2012

Balram Singh & Anr vs State Of Punjab on 7 May, 2003

Upkar Singh vs Ved Prakash & Ors on 10 September, 2004

State Of Haryana vs Hasmat on 26 July, 2004

Jetha Bhaya Odedara vs Ganga Maldebhai Odedara & Anr on 16 December, 2011



दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 324 का विवरण :  -  324. सिक्के, स्टाम्प-विधि या संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के लिए तत्पूर्व दोषसिद्ध व्यक्तियों का विचारण --

(1) जहाँ कोई व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किए जा चुकने पर उन अध्यायों में से किसी के अधीन तीन वर्ष या अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पुनः अभियुक्त है, और उस मजिस्ट्रेट का, जिसके समक्ष मामला लंबित है, समाधान हो जाता है कि यह उपधारणा करने के लिए आधार है कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है तो वह उस दशा के सिवाय विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा या सेशन न्यायालय के सुपुर्द किया जाएगा, जब मजिस्ट्रेट मामले का विचारण करने के लिए सक्षम है और उसकी यह राय है कि यदि अभियुक्त दोषसिद्ध किया गया तो वह स्वयं उसे पर्याप्त दण्ड का आदेश दे सकता है।

(2) जब उपधारा (1) के अधीन कोई व्यक्ति विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है या सेशन न्यायालय को सुपुर्द किया जाता है तब कोई अन्य व्यक्ति, जो उसी जांच या विचारण में उसके साथ संयुक्ततः अभियुक्त है, वैसे ही भेजा जाएगा या सुपुर्द किया जाएगा जब तक ऐसे अन्य व्यक्ति को मजिस्ट्रेट, यथास्थिति, धारा 239 या धारा 245 के अधीन उन्मोचित न कर दे।



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