Section 267 CrPC
Section 267 CrPC in Hindi and English
Section 267 of CrPC 1973 :- 267. Power to require attendance of prisoners — (1) Whenever, in the course of an inquiry, trial or other proceeding under this Code, it appears to a Criminal Court--
(a) that a person confined or detained in a prison should be brought before the Court for answering to a charge of an offence, or for the purpose of any proceedings against him, or
(b) that it is necessary for the ends of justice to examine such person as a witness, the Court may make an order requiring the officer in charge of the prison to produce such person before the Court for answering to the charge or for the purpose of such proceeding or as the case may be, for giving evidence.
(2) Where an order under sub-section (1) is made by a Magistrate of the second class, it shall not be forwarded to, or acted upon by, the officer in charge of the prison unless it is countersigned by the Chief Judicial Magistrate to whom such Magistrate is subordinate.
(3) Every order submitted for countersigning under sub-section (2) shall be accompanied by a statement of the facts which, in the opinion of the Magistrate, render the order necessary and the Chief Judicial Magistrate to whom it is submitted may, after considering such statement, decline to countersign the order.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 267 of Criminal Procedure Code 1973:
The State Of Uttar Pradesh vs Jail Superintendent (Ropar) on 26 March, 2021
Santosh Kumari vs State Of J & K & Ors on 13 September, 2011
P. C. Gulati vs Lajya Ram Kapur And Others on 19 August, 1965
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 267 का विवरण : - 267. बन्दियों को हाजिर कराने की अपेक्षा करने की शक्ति --
(1) जब कभी इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान किसी दण्ड न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि --
(क) कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप का उत्तर देने के लिए या उसके विरुद्ध किन्हीं कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिए न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिए, अथवा
(ख) न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे व्यक्ति की साक्षी के रूप में परीक्षा की जाए तब वह न्यायालय, कारागार के भारसाधक अधिकारी से यह अपेक्षा करने वाला आदेश दे सकता है कि वह ऐसे व्यक्ति को, यथास्थिति, आरोप का उत्तर देने के लिए या ऐसी कार्यवाहियों की प्रयोजन के लिए या साक्ष्य देने के लिए न्यायालय के समक्ष पेश करे।
(2) जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है, वहाँ वह कारागार के भारसाधक अधिकारी को तब तक भेजा नहीं जाएगा या उसके द्वारा उस पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक वह ऐसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न हो, जिसके अधीनस्थ वह मजिस्ट्रेट है।
(3) उपधारा (2) के अधीन प्रतिहस्ताक्षर के लिए पेश किए गए प्रत्येक आदेश के साथ ऐसे तथ्यों का, जिनसे मजिस्ट्रेट की राय में आदेश आवश्यक हो गया है, एक विवरण होगा और वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष वह पेश किया गया है उस विवरण पर विचार करने के पश्चात् आदेश पर प्रतिहस्ताक्षर करने से इंकार कर सकता है।
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