Section 222 CrPC
Section 222 CrPC in Hindi and English
Section 222 of CrPC 1973 :- 222. When offence proved included in offence charged -
(1) When a person is charged with an offence consisting of several particulars, a combination of some only of which constitutes a complete minor offence and such combination is proved, but the remaining particulars are not proved, he may be convicted of the minor offence, though he was not charged with it.
(2) When a person is charged with an offence and facts are proved which reduce it to a minor offence, he may be convicted of the minor offence, although he is not charged with it.
(3) When a person is charged with an offence, he may be convicted of an attempt to commit such offence although the attempt is not separately charged.
(4) Nothing in this section shall be deemed to authorise a conviction of any minor offence where the conditions requisite for the initiation of proceedings in respect of that minor offence have not been satisfied.
Illustrations
(a) A is charged under section 407 of the Indian Penal Code (45 of 1860) with criminal breach of trust in respect of property entrusted to him as a carrier. It appears, that he did commit criminal breach of trust under section 406 of that Code in respect of the property, but that it was not entrusted to him as a carrier. He may be convicted of criminal breach of trust under the said section 406.
(b) A is charged under section 325 of the Indian Penal Code (45 of 1860), with causing grievous hurt. He proves that he acted on grave and sudden provocation. He may be convicted under section 335 of that Code.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 222 of Criminal Procedure Code 1973:
Dalbir Singh vs State Of U.P on 8 April, 2004
Narwinder Singh vs State Of Punjab on 5 January, 2011
Tarkeshwar Sahu vs State Of Bihar (Now Jharkhand) on 29 September, 2006
Virendra Kumar vs State Of U.P on 16 January, 2007
Dinesh Seth vs State Of N.C.T. Of Delhi on 18 August, 2008
Ranchhodlal vs State Of Madhya Pradesh on 27 November, 1964
Bimla Devi And Anr vs State Of J & K on 5 May, 2009
Abu Salem Abdul Qayoom Ansari vs State Of Maharashtra & Anr on 10 September, 2010
Sangaraboina Sreenu vs State Of Andhra Pradesh on 23 April, 1997
Sukhram vs State Of Maharashtra on 17 August, 2007
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 222 का विवरण : - 222. जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अन्तर्गत है -
(1) जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें कई विशिष्टियाँ हैं, जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग साबित हो जाता है, किन्तु शेष विशिष्टियाँ साबित नहीं होती हैं, तब वह उस छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(2) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य साबित कर दिए जाते हैं जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते हैं तब वह छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(3) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिए पृथक् आरोप न लगाया गया हो ।
(4) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिए उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं हुई हैं।
दृष्टांत
(क) क पर उस संपत्ति के बारे में, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है, आपराधिक न्यासभंग के लिए भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 407 के अधीन आरोप लगाया गया है। यह प्रतीत होता है कि उस संपत्ति के बारे में धारा 406 के अधीन उसने आपराधिक न्यासभंग तो किया है किन्तु वह उसे वाहक के रूप में न्यस्त नहीं की गई थी। वह धारा 406 के अधीन आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
(ख) क पर घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 325 के अधीन आरोप है। वह साबित कर देता है कि उसने घोर और आकस्मिक प्रकोपन पर कार्य किया था। वह उस संहिता की धारा 335 के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
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