Section 215 CrPC
Section 215 CrPC in Hindi and English
Section 215 of CrPC 1973 :- 215. Effect of errors -- No error in stating either the offence or the particulars required to be stated in the charge and no omission to state the offence or those particulars, shall be regarded at any stage of the case as material, unless the accused was in fact misled by such error or omission and it has occasioned a failure of justice.
Illustrations -
(a) A is charged under section 242 of the Indian Penal Code (45 of 1860), with "having been in possession of counterfeit coin, having known at the time when he became possessed thereof that such coin was counterfeit,” the word "fraudulently" being omitted in the charge. Unless it appears that it was in fact misled by this omission, the error shall not be regarded as material.
(b) A is charged with cheating B and the manner in which he cheated B is not set out in the charge, or is set out incorrectly. A defends himself, calls witnesses and gives his own account of the transaction. The Court may infer from this that the omission to set out the manner of the cheating is not material.
(c) A is charged with cheating B and the manner in which he cheated B is not set out in the charge. There were many transactions between A and B and A had no means of knowing to which of them the charge referred and offered no defence. The Court may infer from such facts that the omission to set out the manner of the cheating was, in the case, a material error.
(d) A is charged with the murder of Khoda Baksh on the 21st January, 1882. In fact, the murdered person's name was Haidar Baksh and the date of the murder was the 20th January, 1882. A was never charged with any murder but one, and had heard the inquiry before the Magistrate, which referred exclusively to the case of Haidar Baksh. The Court may infer from these facts that A was not misled and that the error in the charge was immaterial.
(e) A was charged with murdering Haidar Baksh on the 20th January, 1882 and Khoda Baksh (who tried to arrest him for that murder) on the 21st January, 1882. When charged for the murder of Haidar Baksh, he was tried for the murder of Khoda Baksh. The witnesses present in his defence were witnesses in the case of Haidar Baksh. The Court may infer from this that A was misled and that the error was material.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 215 of Criminal Procedure Code 1973:
S. P. E. Madras vs K.V.Sundaravelu on 8 March, 1978
Anil @ Raju Namdev Patil vs Administration Of Daman & Diu, on 24 November, 2006
Main Pal vs State Of Haryana on 7 September, 2010
State Of West Bengal & Anr vs Laisalhaque & Ors. Etc on 12 September, 1988
K. Prema S. Rao And Anr vs Yadla Srinivasa Rao And Ors on 25 October, 2002
Harjit Singh vs State Of Punjab on 8 December, 2005
State (N.C.T. Of Delhi) vs Navjot Sandhu@ Afsan Guru on 4 August, 2005
Mohan Singh vs State Of Bihar on 26 August, 2011
Abdul Sayeed vs State Of M.P on 14 September, 2010
Ramnarayan Mor And Another vs State Of Maharashtra on 16 December, 1963
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 215 का विवरण : - 215. गलतियों का प्रभाव -- अपराध के या उन विशिष्टियों के, जिनका आरोप में कथन होना अपेक्षित है, कथन करने में किसी गलती को और उस अपराध या उन विशिष्टियों के कथन करने में किसी लोप को मामले के किसी प्रक्रम में तब ही तात्विक माना जाएगा जब ऐसी गलती या लोप से अभियुक्त वास्तव में भुलावे में पड़ गया है। और उसके कारण न्याय नहीं हो पाया है अन्यथा नहीं।
दृष्टांत -
(क) क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 242 के अधीन यह आरोप है कि उसने कब्जे में ऐसा कूटकृत सिक्का रखा है जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है और आरोप में “कपटपूर्वक' शब्द छूट गया है। जब तक यह प्रतीत नहीं होता है कि क वास्तव में इस लोप से भुलावे में पड़ गया, इस गलती को तात्विक नहीं समझा जाएगा।
(ख) क पर ख से छल करने का आरोप है और जिस रीति से उसने ख के साथ छल किया है वह आरोप में उपवर्णित नहीं है या अशुद्ध रूप में उपवर्णित है। क अपनी प्रतिरक्षा करता है, साक्षियों को पेश करता है और संव्यवहार का स्वयं अपना विवरण देता है। न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है कि छल करने की रीति के उपवर्णन का लोप तात्विक नहीं है।
(ग) क पर ख से छल करने का आरोप है कि जिस रीति से उसने ख से छल किया है वह आरोप में उपवर्णित नहीं है। क और ख के बीच अनेक संव्यवहार हुए हैं और क के पास यह जानने का कि आरोप का निर्देश उनमें से किसके प्रति है कोई साधन नहीं था और उसने अपनी कोई प्रतिरक्षा नहीं की। न्यायालय ऐसे तथ्यों से यह अनुमान कर सकता है कि छल करने की रीति के उपवर्णन का लोप उस मामले में तात्विक गलती थी।
(घ) क पर 21 जनवरी, 1882 को खुदाबख्श की हत्या करने का आरोप है। वास्तव में मृत व्यक्ति का नाम हैदरबख्श था और हत्या की तारीख 20 जनवरी, 1882 थी। क पर कभी भी एक हत्या के अतिरिक्त दूसरी किसी हत्या का आरोप नहीं लगाया गया और उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष हुई जांच को सुना था जिसमें हैदरबख्श के मामले का ही अनन्य रूप से निर्देश किया गया था। न्यायालय इन तथ्यों से यह अनुमान कर सकता है कि क उससे भुलावे में नहीं पड़ा था और आरोप में यह गलती तात्विक नहीं थी।
(ङ) क पर 20 जनवरी, 1882 को हैदरबख्श की हत्या और 21 जनवरी, 1882 को खुदाबख्श की (जिसने उसे हत्या के लिए गिरफ्तार करने का प्रयास किया था) हत्या करने का आरोप है। जब वह हैदरबख्श की हत्या के लिए आरोपित हुआ, तब उसका विचारण खुदाबख्श की हत्या के लिए हुआ। उसकी प्रतिरक्षा में उपस्थित साक्षी हैदरबख्श वाले मामले में साक्षी थे। न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है कि क भुलावे में पड़ गया था और यह गलती तात्विक थी।
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