Section 209 CrPC

 

Section 209 CrPC in Hindi and English


Section 209 of CrPC 1973 :- 209. - Commitment of case to Court of Session when offence is triable exclusively by it — When in a case instituted on a police report or otherwise, the accused appears or is brought before the Magistrate and it appears to the Magistrate that the offence is triable exclusively by the Court of Session, he shall

(a) commit, after complying with the provisions of section 207 or section 208, as the case may be, the case to the Court of Session and subject to the provisions of this Code relating to bail, remand the accused to custody until such. commitment has been made;

(b) subject to the provisions of this Code relating to bail, remand the accused to custody during and until the conclusion of, the trial;

(c) send to that Court the record of the case and the documents and articles, if any, which are to be produced in evidence;

(d) notify the Public Prosecutor of the commitment of the case to the Court of Session.


STATE AMENDMENT

Uttar Pradesh -- In section 209, for clauses (a) and (b), the following clauses shall be substituted and be deemed always to have been substituted, namely:-

“(a) as soon as may be after complying with the provisions of section 207, commit the case to Court of Session;

(b) subject to the provisions of the Code relating to bail, remand the accused to custody until commitment of the case under clause (a) and thereafter during and until the conclusion of the trial.”


               [Vide Uttar Pradesh Act 16 of 1976, sec. 6 (w.e.f. 30-4-1976)].



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 209 of Criminal Procedure Code 1973:

Raj Kishore Prasad vs State Of Bihar on 1 May, 1996

Raj Kishore Prasad vs State Of Bihar on 1 May, 1996

K.P. Raghavan And Anr. vs M.H. Abbas And Anr. on 6 September, 1966

Kishun Singh And Ors vs State Of Bihar on 11 January, 1993

Joginder Singh & Anr vs State Of Punjab & Anr on 16 November, 1978

Ranjit Singh vs State Of Punjab on 22 September, 1998

Dharam Pal & Ors vs State Of Haryana & Anr on 18 July, 2013

Hardeep Singh vs State Of Punjab & Ors on 10 January, 1947

State Of Orissa vs Debendra Nath Padhi on 29 November, 2004

Hardeep Singh vs State Of Punjab & Ors on 10 January, 2014



दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 209 का विवरण :  - 209. - जब अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तब मामला उसे सुपुर्द करना -- जब पुलिस रिपोर्ट पर या अन्यथा संस्थित किसी मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है और मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह--

(क) यथास्थिति, धारा 207 या धारा 208 के उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात् मामला सेशन न्यायालय को सुपुर्द करेगा और जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए अभियुक्त व्यक्ति को अभिरक्षा में तब तक के लिए प्रतिप्रेषित करेगा जब तक ऐसी सुपुर्दगी नहीं कर दी जाती है;

(ख) जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए विचारण के दौरान और समाप्त होने तक अभियुक्त को अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित करेगा;

(ग) मामले का अभिलेख तथा दस्तावेजें और वस्तुएँ, यदि कोई हों, जिन्हें साक्ष्य में पेश किया जाना है, उस न्यायालय को भेजेगा;

(घ) मामले के सेशन न्यायालय को सुपुर्द किए जाने की लोक अभियोजक को सूचना देगा।

राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश -- धारा 209 में खण्ड (क) और (ख) के स्थान पर अग्रलिखित खण्ड प्रतिस्थापित किए जाएंगे और हमेशा प्रतिस्थापित रहे हैं, समझे जाएंगे, अर्थात् :

“(क) धारा 207 के उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र मामला सेशन कोर्ट को सुपुर्द करेगा;

(ख) जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए खण्ड (क) के तहत मामले की सुपुर्दगी नहीं किए जाने तक और तदुपरान्त विचारण के दौरान और समाप्ति नहीं होने तक अभियुक्त को अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित करेगा।”

[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 16 सन् 1976, धारा 6 (30-4-1976 से प्रभावी)]



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