Section 198 CrPC
Section 198 CrPC in Hindi and English
Section 198 of CrPC 1973 :- 198. Prosecution for offences against marriage --
(1) No Court shall take cognizance of an offence punishable under Chapter XX of the Indian Penal Code (45 of 1860) except upon a complaint made by some person aggrieved by the offence :
Provided that
(a) where such person is under the age of eighteen years, or is an idiot or a lunatic, or is from sickness or infirmity unable to make a complaint, or is a woman who, according to the local customs and manners, ought not to be compelled to appear in public, some other person may, with the leave of the Court, make a complaint on his or her behalf;
(b) where such person is the husband and he is serving in any of the Armed Forces of the Union under conditions which are certified by his Commanding Officer as precluding him from obtaining leave of absence to enable him to make a complaint in person, some other person authorised by the husband in accordance with the provisions of sub-section (4) may make a complaint on his behalf;
(c) where the person aggrieved by an offence punishable under (section 494 or section 495) of the Indian Penal Code (45 of 1860) is the wife, complaint may be made on her behalf by her father, mother, brother, sister, son or daughter or by her father's or mother's brother or sister or, with the leave of the Court, by any other person related to her by blood, marriage or adoption.
(2) For the purposes of sub-section (1), no person other than the husband of the woman shall be deemed to be aggrieved by any offence punishable under section 497 or section 498 of the said Code :
Provided that in the absence of the husband, some person who had care of the woman on his behalf at the time when such offence was committed may, with the leave of the Court, make a complaint on his behalf.
(3) When in any case falling under clause (a) of the proviso to sub-section (1), the complaint is sought to be made on behalf of a person under the age of eighteen years or of a lunatic by a person who has not been appointed or declared by a competent authority to be the guardian of the person of the minor or lunatic and the Court is satisfied that there is a guardian so appointed or declared, the Court shall, before granting the application for leave, cause notice to be given to such guardian and give him a reasonable opportunity of being heard.
(4) The authorisation referred to in clause (b) of the proviso to sub-section (1), shall be in writing, shall be signed or otherwise attested by the husband, shall contain a statement to the effect that he has been informed of the allegations upon which the complaint is to be founded, shall be countersigned by his Commanding Officer and shall be accompanied by a certificate signed by that Officer to the effect that leave of absence for the purpose of making a complaint in person cannot for the time being be granted to the husband.
(5) Any document purporting to be such an authorisation and complying with the provisions of sub-section (4) and any document purporting to be a certificate required by that sub-section shall, unless the contrary is proved, be presumed to be genuine and shall be received in evidence.
(6) No Court shall take cognizance of an offence under section 376 of the Indian Penal Code (45 of 1860), where such offence consists of sexual intercourse by a man with his own wife, the wife being under eighteen years of age, if more than one year has elapsed from the date of the commission of the offence.
(7) The provisions of this section apply to the abetment of, or attempt to commit, an offence as they apply to the offence.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 198 of Criminal Procedure Code 1973:
Joseph Shine vs Union Of India on 27 September, 2018
A.Subash Babu vs State Of A.P.& Anr on 21 July, 2011
Abdul Rehman Mahomed Yusuf vs Mahomed Haji Ahmad Agbotwalaand on 15 September, 1959
V. Revathi vs Union Of India & Ors on 25 February, 1988
Ashwin Nanubhai Vyas vs State Of Maharashtra & Anr on 10 October, 1966
S. Khushboo vs Kanniammal & Anr on 28 April, 2010
S. Khushboo vs Kanniammal & Anr on 28 April, 2010
Lily Thomas, Etc. Etc. vs Union Of India & Ors. on 5 April, 2000
Lily Thomas, Etc. Etc vs Union Of India & Ors on 5 May, 2000
Ashwin Nanubhai Vyas vs State Of Maharashtra & Anr on 10 October, 1966
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 198 का विवरण : - 198. विवाह के विरुद्ध अपराधों के लिए अभियोजन --
(1) कोई न्यायालय भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 20 के अधीन दण्डनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति द्वारा किए गए परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं :
परन्तु--
(क) जहाँ ऐसा व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का है अथवा जड़ या पागल है अथवा रोग या अंग-शैथिल्य के कारण परिवाद करने के लिए असमर्थ है, या ऐसी स्त्री है जो स्थानीय रूढ़ियों और रीतियों के अनुसार लोगों के सामने आने के लिए विवश नहीं की जानी चाहिए वहाँ उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है;
.(ख) जहाँ ऐसा व्यक्ति पति है, और संघ के सशस्त्र बलों में से किसी में से ऐसी परिस्थितियों में सेवा कर रहा है जिनके बारे में उसके कमान ऑफिसर ने यह प्रमाणित किया है कि उनके कारण उसे परिवाद कर सकने के लिए अनुपस्थिति छुट्टी प्राप्त नहीं हो सकती, वहाँ उपधारा (4) के उपबंधों के अनुसार पति द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से परिवाद कर सकता है;
(ग) जहाँ भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 494 या धारा 495 के अधीन दण्डनीय अपराध से व्यथित व्यक्ति पत्नी है वहाँ उसकी ओर से उसके पिता, माता, भाई, बहिन, पुत्र या पुत्री या उसके पिता या माता के भाई या बहिन द्वारा या न्यायालय की इजाजत से, किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जो उससे रक्त, विवाह या दत्तक द्वारा संबंधित है, परिवाद किया जा सकता है।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, स्त्री के पति से भिन्न कोई व्यक्ति उक्त संहिता की धारा 497 या धारा 498 के अधीन दण्डनीय अपराध से व्यथित नहीं समझा जाएगा :
परन्तु पति की अनुपस्थिति में, कोई ऐसा व्यक्ति, जो उस समय जब ऐसा अपराध किया गया था ऐसी स्त्री के पति की ओर से उसकी देख-रेख कर रहा था उसकी ओर से न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है।
(3) जब उपधारा (1) के परन्तुक के खण्ड (क) के अधीन आने वाले किसी मामले में अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या पागल व्यक्ति की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा परिवाद किया जाना है, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवयस्क या पागल के शरीर का संरक्षक नियुक्त या घोषित नहीं किया गया है, और न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा कोई संरक्षक जो ऐसे नियुक्त या घोषित किया गया है तब न्यायालय इजाजत के लिए आवेदन मंजूर करने के पूर्व, ऐसे संरक्षक को सूचना दिलवाएगा और सुनवाई का उचित अवसर देगा।
(4) उपधारा (1) के परन्तुक के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट प्राधिकार लिखित रूप में दिया जाएगा और, वह पति द्वारा हस्ताक्षरित या अन्यथा अनुप्रमाणित होगा, उसमें इस भाव का कथन होगा कि उसे उन अभिकथनों की जानकारी दे दी गई है जिनके आधार पर परिवाद किया जाना है और वह उसके कमान ऑफिसर द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित होगा, तथा उसके साथ उस ऑफिसर द्वारा हस्ताक्षरित इस भाव का प्रमाण-पत्र होगा कि पति को स्वयं परिवाद करने के प्रयोजन के लिए अनुपस्थिति छुट्टी उस समय नहीं दी जा सकती है।
(5) किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका ऐसा प्राधिकार होना तात्पर्यित है और जिससे उपधारा (4) के उपबंधों की पूर्ति होती है और किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका उस उपधारा द्वारा अपेक्षित प्रमाण-पत्र होना तात्पर्यित है, जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि वह असली है और उसे साक्ष्य में ग्रहण किया जाएगा।
(6) कोई न्यायालय भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376 के अधीन अपराध का संज्ञान, जहाँ ऐसा अपराध किसी पुरुष द्वारा अठारह वर्ष से कम आयु की अपनी ही पत्नी के साथ मैथुन करता है, उस दशा में न करेगा जब उस अपराध के किए जाने की तारीख से एक वर्ष से अधिक व्यतीत हो चुका है।
(7) इस धारा के उपबंध किसी अपराध के दुष्प्रेरण या अपराध करने के प्रयत्न को ऐसे लागू होगे जैसे वे अपराध को लागू होते हैं।
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