Section 173 CrPC
Section 173 CrPC in Hindi and English
Section 173 of CrPC 1973 :- 173. Report of police officer on completion of investigation --
(1) Every investigation under this Chapter shall be completed without unnecessary delay.
[(1A) The investigation in relation to an offence under sections 376, 376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB or section 376E of the Indian Penal Code shall be completed within two months from the date on which recorded by the officer in charge of the police station.
(2) (i) As soon as it is completed, the officer in charge of the police station shall forward to a Magistrate empowered to take cognizance of the offence on a police report, a report in the form prescribed by the State Government, stating :
(a) the names of the parties;
(b) the nature of the information;
(c) the names of the persons who appear to be acquainted with the circumstances of the case;
(d) whether any offence appears to have been committed and, if so, by whom;
(e) whether the accused has been arrested;
(f) whether he has been released on his bond and, if so, whether with or without sureties;
(g) whether he has been forwarded in custody under section 170.
whether the report of medical examination of the woman has been attached where investigation relates to an offence under sections 376, 4[376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB] [or section 376E of the Indian Penal Code] (45 of 1860).
(ii) The officer shall also communicate, in such manner as may be prescribed by the State Government, the action taken by him, to the person, if any bý whom the information relating to the commission of the offence was first given.
(3) Where a superior officer of police has been appointed under section 158, the report, shall, in any case in which the State Government by general or special order so directs, be submitted through that officer and he may, pending the orders of the Magistrate, direct the officer in charge of the police station to make further investigation.
(4) Whenever it appears from a report forwarded under this section that the accused has been released on his bond, the Magistrate shall make such order for the discharge of such bond or otherwise as he thinks fit.
(5) When such report is in respect of a case to which section 170 applies, the police officer shall forward to the Magistrate along with the report :
(a) all documents or relevant extracts thereof on which the prosecution proposes e to rely other than those already sent to the Magistrate during investigation;
(b) the statements recorded under section 161 of all the persons whom the prosecution proposes to examine as its witnesses.
(6). If the police officer is of opinion that any part of any such statement is not relevant to the subject-matter of the proceedings or that its disclosure to the accused is not essential in the interests of justice and is inexpedient in the public interest, he shall indicate that part of the statement and append a note requesting the Magistrate to exclude that part from the copies to be granted to the accused and stating his reasons for making such request.
(7) Where the police officer investigating the case finds it convenient so to do, he may furnish to the accused copies of all or any of the documents referred to in subsection (5).
(8) Nothing in this section shall be deemed to preclude further investigation in respect of an offence after a report under sub-section (2) has been forwarded to the Magistrate and where upon such investigation, the officer in charge of the police station obtains further evidence, oral or documentary, he shall forward to the Magistrate a further report or reports regarding such evidence in the form prescribed; and the provisions of sub-sections (2) to (6) shall, as far as may be, apply in relation to such report or reports as they apply in relation to a report forwarded under sub-section (2).
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 173 of Criminal Procedure Code 1973:
Tofan Singh vs The State Of Tamil Nadu on 29 October, 2020
Awadesh Kumar Jha @ Akhilesh Kumar vs The State Of Bihar on 7 January, 2016
Union Of India vs Ashok Kumar Sharma on 28 August, 2020
Bhagwat Singh vs Commissioner Of Police And Anr on 25 April, 1985
Balkishan A. Devidayal Etc vs State Of Maharashtra Etc on 31 July, 1980
Kamlapati Trivedi vs State Of West Bengal on 13 December, 1978
State Of Punjab vs Cbi & Ors on 2 September, 2011
Amitbhai Anilchandra Shah vs Cbi & Anr on 8 April, 2013
Raj Kumar Karwal vs Union Of India And Ors.Withkirpal on 21 March, 1990
Amrutbhai Shambhubhai Patel vs Sumanbhai Kantibhai Patel & Ors on 2 February, 2017
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 173 का विवरण : - 173. अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट --
ध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलम्ब के बिना पूरा किया जाएगा।
Updated: Jun, 30 2019
173. अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट --
(1) इस अध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलम्ब के बिना पूरा किया जाएगा।
[(1क) [भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 376, 376क, 376कख, 376ख, 376ग, 376घ, 376घक, 376घख या धारा 376ङ के अधीन अपराध के मामले में थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा अभिलिखित सूचना के दिनांक से दो माह के अन्दर] अन्वेषण पूरा किया जा सकेगा ।]
(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें
निम्नलिखित बातें कथित होंगी--
(क) पक्षकारों के नाम:
(ख) इत्तिला का स्वरूप;
(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम;
(घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा;
(ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है;
(च) क्या वह अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं सहित है या प्रतिभुओं रहित;
(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है।
(ज) जहाँ अन्वेषण भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376, [376क, 376कख, 376ख, 376ग, 376घ, 376घक, 376घख] [या धारा 376ङ] के अधीन अपराध से संबंधित है, क्या स्त्री की, चिकित्सीय परीक्षण की रिपोर्ट संलग्न की गई है।]
(ii) वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किए जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।
(3) जहाँ धारा 158 के अधीन कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहाँ ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिए, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निदेश दे सकता है कि वह आगे और अन्वेषण करे ।
(4) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र के उन्मोचन के लिए या अन्यथा ऐसा आदेश करेगा जैसा वह ठीक समझे ।
(5) जब ऐसी रिपोर्ट का संबंध ऐसे मामले से है, जिसको धारा 170 लागू होती है, तब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट के साथ-साथ निम्नलिखित भी भेजेगा :
(क) वे सब दस्तावेज या उनके सुसंगत उद्धरण, जिन पर निर्भर करने का अभियोजन का विचार है और जो उनसे भिन्न हैं जिन्हें अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेज दिया गया है;
(ख) उन सब व्यक्तियों के, जिनकी साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, धारा 161 के अधीन अभिलिखित कथन
(6) यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है या उसे अभियुक्त को प्रकट करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है और लोकहित के लिए असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित करेगा और अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिए निवेदन करते हुए और ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों का कथन करते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
(7) जहाँ मामले का अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी ऐसा करने सुविधापूर्ण समझता है वहाँ वह उपधारा (5) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं दस्तावेजों की प्रतियाँ अभियुक्त को दे सकता है।
(8) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहाँ ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहाँ वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टों मजिस्ट्रेट को विहित प्ररूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहाँ तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं।
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