Section 130 CrPC
Section 130 CrPC in Hindi and English
Section 130 of CrPC 1973 :- 130. Use of armed forces to disperse assembly -- (1) If any such assembly cannot be otherwise dispersed and if it is necessary for the public security that it should be dispersed, the Executive Magistrate of the highest rank who is present may cause it to be dispersed by the armed forces.
(2) Such Magistrate may require any officer in command of any group of persons belonging to the armed forces to disperse the assembly with the help of the armed forces under his command and to arrest and confine such persons forming part of it as the Magistrate may direct, or as it may be necessary to arrest and confine in order to disperse the assembly or to have them punished according to law.
(3) Every such officer of the armed forces shall obey such requisition in such manner as he thinks fit, but in so doing he shall use as little force and do as little injury to person and property, as may be consistent with dispersing the assembly and arresting and detaining such persons.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 130 of Criminal Procedure Code 1973:
Naga People'S Movement, Of Human vs Union Of India on 27 November, 1997
Selvi & Ors vs State Of Karnataka & Anr on 5 May, 2010
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 130 का विवरण : - 130. जमाव को तितर-बितर करने के लिए सशस्त्र बल का प्रयोग -- (1) यदि कोई ऐसा जमाव अन्यथा तितर-बितर नहीं किया जा सकता है और यदि लोक सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि उसको तितरबितर किया जाए तो उच्चतम पंक्ति का कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जो उपस्थित हो, सशस्त्र बल द्वारा उसे तितर-बितर करा सकता है।
(2) ऐसा मजिस्ट्रेट किसी ऐसे अधिकारी से, जो सशस्त्र बल के व्यक्तियों की किसी टुकड़ी का समादेशन कर रहा है, यह अपेक्षा कर सकता है कि वह अपने समादेशाधीन सशस्त्र बल की मदद से जमाव को तितर-बितर कर दे और उसमें सम्मिलित ऐसे व्यक्तियों को, जिनकी बाबत् मजिस्ट्रेट निदेश दे या जिन्हें जमाव को तितर-बितर करने या विधि के अनुसार दण्ड देने के लिए गिरफ्तार और परिरुद्ध करना आवश्यक है, गिरफ्तार और परिरुद्ध करे।
(3) सशस्त्र बल का प्रत्येक ऐसा अधिकारी ऐसी अध्यपेक्षा का पालन ऐसी रीति से करेगा जैसी वह ठीक समझे, किन्तु ऐसा करने में केवल इतने ही बल का प्रयोग करेगा और शरीर और संपत्ति को केवल इतनी ही हानि पहुँचाएगा जितनी उस जमाव को तितर-बितर करने और ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार और निरुद्ध करने के लिए आवश्यक है।
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