औराओ के मामले में अवैध ढंग से बंदी बनाए जाने पर मुआवजा


प्रश्न०  उच्चतम न्यायालय में यह मामला किसके द्वारा उठाया गया ? 

उ०  विचाराधीन बंदी ओराऔ के मामले में रांची की कानूनी सहायता समिति ने पत्र के माध्यम से कानूनी सहायता परियोजनाओं की कार्यान्वयन  समिति द्वारा उठाया गया । इस पत्र को रिट याचिका मन गया ।


प्रश्न० इस मामले का तथ्य क्या थे? 

उ०  एक विचाराधीन कैदी भीमा औराओ  को कुन्टी बिहार के उपखंड मजिस्ट्रेट ने रांची के पागल खाने में 1976 मैं भेजा था 6 माह पश्चात अस्पताल के अधीक्षक ने मजिस्ट्रेट को सूचित किया कि औराओ  स्वास्थ्य चित्त  तथा मुक्त किए जाने योग्य है परंतु स्मरण पत्रों( अनुस्मारक ) के पश्चात भी वह 6 वर्ष पागलखाने में रहा ।

प्रश्न०  न्यायालय ने क्या टिप्पणी की ? 

उ०  अपने दिनांक 11 अगस्त 1983 के आदेश में न्यायालय ने कहा कि औराओ द्वारा पागलखाने में 6 वर्ष जीवित-मृत्यु की दशा में रहने की क्षतिपूर्ति धन की किसी भी राशि से नहीं हो सकती । किंतु मौलिक अधिकारों पर अतिक्रमण के मामलों में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत केवल मुआवजा दिया जाना दी एक मात्र  उपचार है ।

प्रश्न०  इस मामले में क्या निर्णय दिया गया ? 

उ०  जब प्राण तथा दैहिक स्वतंत्रता संबंधी अधिकारों पर अतिक्रमण होता है तब कोई भी व्यक्ति जिसे ऐसे उपलब्ध के बारे में शिकायत हो मुआवजे का दावा कर सकता है ।

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