हानिकारक औषधियों पर प्रतिबंध
प्रश्न० वादी द्वारा क्या मुद्दे उठाए गए?
उ० डॉक्टर विन्सेंट पानीकुलागरा अधिवक्ता तथा पब्लिक इंट्रस्ट लॉ सर्विस सोसाइटी कोचीन के सचिव ने अप्रैल 1983 में हानिकारक तथा अप्रभावी अवषधियों पर प्रतिबन्ध लगाए जाने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की। उन्होंने यह संकेत दिया कि सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने साधारण तौर पर उपयोग में लाए जाने वाली कुछ अवषधियों सहित 20 नियत खुराक वाले संयोजनो पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी । बहुत से रोगों के लिए उपयोग में आने वाली औषधियों की संख्या लगभग 2000 तक हो जाती है । उनमें से कुछ पर अन्य देशों में प्रतिबंध लगा हुआ है और बाजारों में इनकी बिक्री बंद कर दी गई है । किंतु बहुराष्ट्रीय औषधी निर्माता कंपनियों की अनैतिक गतिविधियों के कारण ऐसी औषधियां हमारे देश में अभी भी उपलब्ध है । 1975 में हाथी समिति ने बताया था कि यद्यपि भारत के बाजारों में 15000 औषधियों उपलब्ध हैं जबकि देश की संस्थाएं संबंधी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति १११६ अवषधियों से ही हो सकती है । इसी प्रकार विश्व स्वास्थ्य संगठन भी 1977 से लगातार संकेत कर रहा है कि विकासशील देशों की प्राथमिक आवश्यकताएं 200 से कम औषधियों द्वारा पूर्ण की जा सकती है ।
प्रश्न० वादी ने किस प्रकार के निर्देश के लिए प्रार्थना की?
उ० याचक ने उन औषधियों पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है जिन्हें हानिकारक अथवा अप्रभावी पाया गया । इस याचना के आधार के संदर्भ में कहा गया कि इन औषधियों के बाजार में उपलब्ध रहने के कारण संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लेखित प्राण तथा दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर भी प्रभाव पड़ता है । उसने यह भी कहा कि यद्यपि न्यायालय सरकारी नीतियों संबंधी निर्देशित तथ्यों के विरुद्ध हो जरूरी तौर पर रुकवाया जाना चाहिए ।
प्रश्न० न्यायालय की क्या प्रतिक्रिया रही ?
उ० न्यायालय ने इस याचना को इस आधार पर रद्द किया कि यह सरकार का कार्य है कि वह औषधियों संबंधी नीति बनाएं ।
प्रश्न० इस न्यायालय ने क्या विचार व्यक्त किए ?
उ० फैसले में एक केंद्रीय स्तर पर परिवर्तन तंत्र बनाए जाने का सुझाव दिया जिससे औषधियों के निर्माण पर नियंत्रण हो सके और दोषी व्यक्तियों को सजा मिल सके।
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