Tehsildar Vs State of Uttar Pradesh | Landmark Judgment on Criminal Law

तहसीलदार - अपील कर्ता बनाम 
उत्तर प्रदेश सरकार - उत्तर दाता
भूमिका
यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 162 से संबंधित है
तथ्य
16 जून 1954 को नयापुरा के मल्लाह रामस्नेही नहीं अपने घर एक दावत का आयोजन किया जिसमें उसके काफी मित्रगण आए दावत के बाद स्नेही ने पड़ोसी रामस्वरूप के घर के सामने रात को 9:00 बजे गाने बजाने का कार्यक्रम हुआ रामस्वरूप के घर के प्लेटफार्म पर करीब 35-49 मेहमान गाना सुनने के लिए एकत्रित हुए अभियोजन के अनुसार बहुत से लोग बंदूक लिए हुए अकस्मात् रामस्वरूप के मकान के दक्षिणा वाले कुए पर आए और आकर बंदूक चलाई जिससे नत्थी, भारत सिंह, सक्टू मर गए और छह व्यक्तियों को चोटें आई।
घटना वाले स्थान की रूपरेखा भी ली गई उस नक्शे के अवलोकन से यह जाहिर होता है कि रामस्वरूप का मकान पश्चिम की तरफ स्थित है और प्लेटफार्म से करीब 25 कदम दूर पर एक कुआं है।
अभियोजन के अनुसार दावत के बाद गाने का कार्यक्रम हुआ था कुछ लोग रामस्वरूप के मकान के प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर सुनने लगे सत्तू मजीरा बजा रहा था नत्थू गाना गा रहा था पूर्ण चंद्रमा की रोशनी थी तथा एक गैस की लालटेन व और कई अन्य लालटेन थी बांके और आसाराम ने अपनी-अपनी बंदूक के प्लेटफार्म के नजदीक चारपाई पर रख दी भगत सिंह उस चारपाई पर बैठ गया 9:00 बजे करीब अपराधी गण मय 14 - 15 साथियों सहित चिल्लाए कि कोई भागने नहीं पाए नत्थी और शब्दों पर गोली चलाई जिससे वह लोग मौके पर ही मर गए भगत सिंह गोली खाने के बाद उत्तर की तरफ भागा उसका कई अपराधियों ने पीछा किया और गोलियां चलाई जिससे कि वह बांके के मकान के सामने मर गया बांके जो कि घायल हो गया था, आशारामकी बंदूक लेकर रामस्वरूप के मकान की छत पर चला गया जहां से बांके नहीं डाकू पर गोली चलाई जिससे वह तितर-बितर हो रहे थे आसाराम जो मकान के अंदर दावत खा रहा था गोलियों की आवाज सुनकर भागा और रामस्वरूप के मकान की छत पर आकर छुप गया अपराधी आसाराम को नहीं देख पाए इसलिए वे यह समझकर कि आसाराम मर गया चंबल की दिशा में जाकर गायब हो गए वे लोग अपने साथ बांके की बंदूक जो कि चारपाई पर रखी थी उसे भी ले गए।
अभियुक्त गण डाकू मानसिंह गिरोह के सदस्य थे जिन्होंने उस स्थान पर कई डकैती यां तथा कत्ल किए थे इस गिरोह का चरण के गिरोह से संगठन था आसाराम और बांके चरण के भेदिये थे मानसिंह का गिरोह इस वजह से उससे बदला लेना चाहता था और उन्होंने यह आक्रमण आसाराम और बांके से बदला लेने के लिए किया था पुलिस ने अभियुक्तों का चालान किया।
वाद विचारण न्यायालय में- सत्र न्यायाधीश  ने 7 अभियुक्त गणों को छोड़ दिया दो अभियुक्त तहसीलदार सिंह वह श्याम मल्लाह के खिलाफ 14 आरोपों की सजा सुनाई सत्र न्यायालय में तहसीलदार सिंह ने अपने को अनवर सिंह बताया काफी जांच पड़ताल के बाद यह पाया गया कि तहसीलदार सिंह अनवर सिंह नहीं बल्कि तहसीलदार सिंह पुत्र मानसिंह है सत्र न्यायालय में अभियुक्त के वकील ने बांके गवाह से जीरह में दो निम्नलिखित प्रश्न पूछे-
1. क्या तुमने खोज निरीक्षक को यह बतलाया था कि गिरोह के सदस्यों ने नथी, सक्टू व भगत सिंह की लाशें देखी तथा आसाराम का चेहरा भगत सिंह मृतक से मिलता था।
2. क्या तुमने खोज निरीक्षक को गैस लालटेन का वहां मौजूद होना बतला दिया था?
इन प्रश्नों को सत्र न्यायालय ने पूछने की इजाजत नहीं दी और विद्वान वकील साहब इन प्रश्नों के पूछे जाने की इजाजत के लिए कानून दिखाने को कहा वह कानून दिखाने में असमर्थ रहे इसलिए सत्र न्यायालय ने इन प्रश्नों के पूछने की इजाजत नहीं दी यह प्रश्न जिरह में नहीं पूछे जा सकते हैं प्रश्नों के पूछने की इजाजत ना देने का जज साहब ने धारा 161 का आदेश दिया।
प्रथम अपील- उच्च न्यायालय इलाहाबाद में इस निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की गई वह अपील भी खारिज हो गई विद्वान जजों के मतानुसार सत्र न्यायालय में उपरोक्त प्रश्न जिरह  में नहीं पूछे जा सकते हैं। 
वाद उच्चतम न्यायालय में-   विशेष इजाजत लेकर उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की गई अपील कर्ता की ओर से विशेष बहस उपरोक्त दोनों प्रश्नों के पूछने की इजाजत न देने पर की गई अपील कर्ता ने इस दलील को पेश करने के लिए कुछ निम्न तथ्यों पर ध्यान दिलाया-
1.(अ)  धारा 162 दंड प्रक्रिया संहिता एवं धारा 145 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत गवाह द्वारा  पुलिस को दिए गए बयान पर जिरह करना अपराधी का अधिकार है गवाह से यह पूछा जा सकता है कि क्या उसने कोई बयान पुलिस को दिया था? यदि वह हां करता है तो यह गवाही उसके द्वारा दी गई पहली गवाही जिसमें यह बात नहीं कही गई हो तो उसके विरुद्ध इस्तेमाल की जा सकती है। 
1.(ब) परस्पर विरोधी गवाही बहुत बड़ा शब्द है यह चूक को समावेश करता है। 
2. उच्च न्यायालय ने यह कहकर गलती की कि बांके गवाह से दो प्रश्न किसी आशय से पूछे गए थे,  बल्कि चूक के प्रश्न भी और पूछे जाते,  लेकिन चूक के प्रश्न भी और पूछे जाने थे लेकिन सत्र न्यायालय के आदेश के कारण और प्रश्न नहीं पूछे गए। 
3. अपराधी को जिरह करने का पूर्ण अवसर प्रदान नहीं किया गया। 
धारा 145 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत अपराधी जिरह में गवाह परस्पर विरोधी बयान के संबंध में पूछ सकता है धारा 145 का आशय तभी लिया जा सकता है जबकि गवाह अपने पहले बयान से इनकार करें यदि वह इंकार करता है तो उससे यह पूछा जा सकता है कि पहले उसने अमोघ गवाही दी थी। 
धारा 162 दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस द्वारा लिया बयान सिर्फ एक ही काम में यानी बयान के परस्पर विरोध में इस्तेमाल किया जा सकता है इसलिए यदि अदालत के द्वारा लिए बयान और पुलिस के द्वारा लिए गए बयान में कोई अंतर न हो तो पुलिस द्वारा लिया गया बयान परस्पर विरोध करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। 
कुछ चूक( omission)  ऐसी हैं जोकि परस्पर विरोधी कही जा सकती हैं वह चूक उन तथ्यों के बारे में जो एक गवाह ने देखी या कहीं जानी चाहिए थी लेकिन उसनें यह जानबूझकर नहीं कहीं कुछ चूक( ओमिशंस) निचली अदालत में पूछी जाती लेकिन इस वजह से नहीं पूछी गई कि कहीं सत्र न्यायालय उन प्रश्नों को भी पूछने के लिए इजाजत न दें जैसे कि-
1. गिरोह द्वारा गाने बजाने के वक्त दी गई चेतावनी यानी वार्निंग
2. गैस लालटेन का नहीं होना
3. भगत सिंह का अभियुक्तों द्वारा पीछा करना
4. गिरोह के सदस्यों द्वारा लाश का जांचना
5. गिरोह का बांके के मकान के सामने से लौटना
उपरोक्त दूसरी व चौथी चूक को बांके गवा द्वारा पूछा गया था और कोई चूक किसी गवाह से जिरह में नहीं पूछी गई उपरोक्त तथ्यों से विद्वान न्यायाधीश का मत था कि अभियुक्त दोनों प्रश्नों को बांके गवाह से नहीं पूछ सकता था किसी कथन का खंडन करने के लिए प्रश्न पूछा जा सकता है परंतु अगर प्रश्न स्वयं ही ऐसा उत्तर हो जो पुलिस में दिए गए कथन का खंडन करता हो तो वह नहीं पूछा जा सकता है।
  वाद का निर्णय- इसलिए यह अपील खारिज कर दी गई। 
वाद के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत
1. धारा 162 दंड प्रक्रिया संहिता में गवाह से बिरहा में परस्पर विरोधी बयान कराने के लिए सिर्फ  धारा 145 का आश्रय लिया जा सकता है   
2. साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 का आश्रय तभी लिया जा सकता है जबकि    गवाह अपने पहले वाले बयान से इनकार करें।
3. किसी कथन का खंडन करने के लिए जिरह में प्रश्न पूछा जा सकता है।

Tehsildar Vs State of Uttar Pradesh | Landmark Judgment on Criminal Law

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