Minerva Mills Case | मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | Minerva Mills vs Union of India - Landmark Case on Indian Constitution
भूमिका-
यह प्रकरण संविधान के 42 वें संशोधन की संवैधानिक ता से जुड़ा हुआ है इसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय बिंदु निम्नांकित थे।
1. क्या संविधान का 42वां संशोधन अधिनियम 1976 विधि मान्य है?
2. क्या संविधान का 42 वां संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 368 की परिधि में है?
3. क्या 42वां संशोधन संविधान के आधारभूत ढांचे को नष्ट करता है?
4. क्या राज्य की नीति के निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों पर पूर्विकता प्रधान की जा सकती है?
5. न्यायालय द्वारा किस सीमा तक अनुच्छेद 252 (1) के अधीन घोषित आपातकाल की संवैधानिक ता पर पुनर्विचार किया जा सकता है?
- List of 100+ Landmark Cases of Supreme Court India
तथ्य
मिनर्वा मिल्स कर्नाटक राज्य की एक टेक्सटाइल कंपनी थी यह टेक्सटाइल का व्यापार करती थी कालांतर में इसे केंद्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृत घोषित कर दिया गया ऐसा सिक टेक्सटाइल्स अंडरटेकिंग एक्ट 1974 के अधीन किया गया।
वस्तुतः 20 अगस्त 1970 को केंद्रीय सरकार द्वारा एक समिति का गठन कर इसे मिनर्वा मिल्स के मामलों की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था समिति ने जनवरी 1971 में अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की इस रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सरकार द्वारा मिनर्वा मिल्स का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया गया था इस पर पेटीशनर द्वारा केंद्रीय सरकार के उक्त आदेशों सिक टैक्सटाइल्स अंडरटेकिंग तथा 42 वें संशोधन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई पेटीशनर की ओर से निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए-
1. संविधान का 42 वां संशोधन संविधान के भाग 3 तथा भाग 4 के बीच की अनुरूपता को नष्ट करता है क्योंकि संशोधन में मूल अधिकारों को राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के अधीन लाने का प्रयास किया गया है वह लोकतंत्र को नष्ट एवं सरकार को निरंकुश बनाने वाला है।
2. एक विचित्र सोच है कि राज्य की नीति के निदेशक तत्वों की क्रियान्विती के लिए मूल अधिकारों की बली दिया जाना आवश्यक है।
3. आपातकाल की उद्घोषणा पर मूल अधिकार केवल आपातकाल की दौरान ही निलंबित रहते हैं लेकिन 42 में संशोधन द्वारा राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के मूल अधिकारों पर प्राथमिकता दे दिए जाने से ऐसा लगता है मानो यह व्यवस्था सदैव के लिए लागू हो गई हो अर्थात आपात की स्थाई घोषणा की गई है और मूल अधिकार सदैव के लिए निलंबित हो गए हैं।
उत्तर दाता की ओर से जवाब में यह कहा गया कि-
क. संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संसद को संविधान में संशोधन करने की विपुल शक्तियां प्राप्त हैं।
ख. किसी विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा राज्य की नीति के निदेशक तत्वों को क्रियान्वित किया जाना संविधान के बुनियादी ढांचे को नष्ट करना नहीं है वस्तुतः यह लोक हित में है।
ग. संविधान का अनुच्छेद 368 मूल अधिकारों को छीनने वाला नहीं है क्योंकि इसका आधार सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय है।
घ. तथाकथित संशोधन से न्यायालय की पुनर्विचार की शक्तियां प्रतिकूल तया प्रभावित नहीं होती हैं।
निर्णय
इस याचिका की सुनवाई उच्चतम न्यायालय की एक विशेष पीठ द्वारा की गई और निर्णय मुख्य न्यायाधीश वाई. वी. चंद्रचूड़ द्वारा उद् घोषित किया गया न्यायालय द्वारा पेटीशनर एवं उत्तर दाता के सभी तर्कों पर गंभीरता से विचार किया गया।
न्यायालय ने यह माना कि संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्तियां ए सीमित नहीं है संसद द्वारा संविधान में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता है जिससे संविधान का आधारभूत ढांचा ही नष्ट हो जाए या संविधान निराकृत हो जाए।
42 वें संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 368 के दो नए खंड (4) व(5) जोड़े गए इन दोनों को न्यायालय द्वारा असंवैधानिक माना गया क्योंकि खंड (4) संविधान के किसी भी संशोधन को न्यायालय में प्रश्ना स्पद बनाने से निर्वारित करता है जबकि खंड( 5) संशोधन की शक्ति को असीमित करता है हमारा संविधान शक्ति पृथक्करण के संदर्भ में नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत पर आधारित है यदि न्यायालय की पुनर्विचार की शक्तियों को समाप्त कर दिया जाता है तो सरकार में निरंकुशता का भाव पैदा हो जाएगा और नागरिकों के मूल अधिकार अर्थहीन हो जाएंगे।
न्यायालय नहीं यह भी कहा कि संसद द्वारा संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं किया जा सकता है जिसमें संविधान की सर्वोच्चता को आंचआए मूल अधिकारों को राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के अधीन नहीं किया जा सकता क्योंकि वे दोनों ही एक दूसरे की अनुपूरक एवं अनुरूप है अंततः न्यायालय द्वारा पेटीशनर की याचिका को स्वीकार किया गया लेकिन खर्चे के बारे में कोई आदेश नहीं दिए गए।
विधि के सिद्धांत
इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए गए-
1. संविधान में संसद द्वारा ऐसा कोई संशोधन नहीं किया जा सकता जिससे संविधान का आधारभूत ढांचा ही नष्ट हो जाए।
2. संविधान के आधारभूत ढांचे को प्रभावित करने वाले संशोधन पर न्यायालय द्वारा पुनर्विचार किया जा सकता है।
3. मूल अधिकारों पर राज्य की नीति के निदेशक तत्व को इस प्रकार पूर्वीकता प्रदान नहीं की जा सकती जिससे मूल अधिकारों का महत्व समाप्त हो जाए एवं संविधान के बुनियादी ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
- List of 100+ Landmark Cases of Supreme Court India
Sir kindly upload all story of constitution...
ReplyDeletehttps://magadhias.blogspot.com
ReplyDeleteyou have huge knowledge wisit me site