Pritam Singh Vs State of Punjab

प्रीतम सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब

भूमिका
यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 342, 367, 403 आदि से संबंधित है इसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की पहचान पद चिन्हों के महत्व एवं विशेष इजाजत से की गई अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता से जुड़े प्रश्न विचारणीय थे।
तथ्य
इस प्रकरण  के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है 2 मई 1953 की शाम को लगभग 6:00 बजे प्रीतम सिंह लोहारा तथा करतार सिंह नामक दो व्यक्ति अमृतसर बस स्टैंड से एक बस पर चढ़े उस बस में चानन सिंह एवं सार्दुल सिंह नाम के दो व्यक्ति भी यात्रा कर रहे थे रास्ते में दो और यात्री प्रीतम सिंह फतेहपुरी और गुरुदयाल सिंह उस बस में चढ़ी और प्रीतम सिंह लोहारा के पास की खाली सीटों पर बैठ गए। बोहारु गांव के पास प्रीतम सिंह ने बस को रुकवाया और करतार सिंह तथा गुरदयाल सिंह वहां उतर गए इस दौरान प्रीतम सिंह फतेहपुरी व गुरदयाल सिंह ने चानन सिंह पर और प्रीतम सिंह लोहारा  व करतार सिंह  ने सरदूल सिंह पर बंदूक की गोलियां चलाई जिससे घटनास्थल पर ही उन दोनों की मृत्यु हो गई वह सार्दुल सिंह तथा चानन सिंह से उनकी राइफल वह रिवाल्वर छीन कर भाग गए मार्ग में उन्हें चार साइकिल वाले व्यक्ति मिले जिनसे प्रीतम सिंह वगैरह नहीं साइकिल छीन ली और वे उन साइकिल पर बैठकर चले गए बस के चालक का नाम भी प्रीतम सिंह था।
चालक ने अमृतसर के सदर पुलिस थाने में शाम के 7:45 बजे घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई लगभग 8:30 बजे अन्वेषण अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचा और वहां बस में यात्रा कर रहे व्यक्तियों के बयान लेखबद्ध  किए उन यात्रियों में ठाकुर सिंह नाम का एक पुलिसकर्मी भी था जिसने अभियुक्त गणों की पहचान बताई अन्वेषण के दौरान पास के खेतों में अभियुक्त गणों के पद चिन्ह भी तलाश लिए गए एक खेत में से पद चिन्हों के 8 तथा दूसरे खेत में से चार निशान लिए गए प्रीतम सिंह फतेहपुरी की पहचान हो जाने से उसके घर का ताला तोड़कर वहां से खून से भरा हुआ एक कुर्ता तथा जूतों का जोड़ा जब किया गया 27 मई 1953 को प्रीतम सिंह फतेहपुरी को राइफल सहित भी गिरफ्तार कर लिया गया 29 मई 1953 को प्रीतम सिंह फतेहपुरी की मजिस्ट्रेट के सामने पहचान परेड में पहचान भी कराई गई पहचान परेड में ठाकुर सिंह व राजपाल सिंह द्वारा उसे पहचान लिया गया लेकिन अभियुक्त की ओर से इस पहचान पर यह पत्ती की गई कि ठाकुर सिंह से उसकी दुश्मनी थी गुरदीप नाम के व्यक्ति ने भी उसे पहचान लिया था दयाल सिंह ने भी पहचान स्थापित करते हुए कहा की बस को रुकवाने वाले व्यक्तियों में से एक वह भी था 16 जून 1953 को दोबारा पहचान परेड कराई गई लेकिन इसमें कोई भी व्यक्ति अभियुक्त गणों की पहचान स्थापित नहीं कर सका।
उधर 9 जून 1953 को प्रीतम सिंह लोहारा को फरीदकोट में गिरफ्तार कर लिया गया प्रीतम सिंह लोहारा की सूचना पर 1 टिन मैं कुर्ते में लिपटी दो रिवाल्वर बरामद की गई 17 जून को प्रीतम सिंह लोहारा की पहचान परेड में शिनाख्त कराई गई शिनाख्त परेड में 12 व्यक्तियों को मिलाया गया और 16 गवाहों में से 11 ने अभियुक्त को पहचान लिया इस परेड में अभियुक्त ने अपने आप को चलने के लिए विवश नहीं किए जाने की प्रार्थना की उसी दिन प्रीतम सिंह लोहारा के पद चिन्हों की भी पहचान कराई गई सोहन सिंह व सज्जन सिंह नामक परीक्षकों ने अभियुक्त के पद चिन्हों की शिनाख्त कर ली न्यायालय द्वारा भी परीक्षण से यह पाया गया कि प्रीतम सिंह फतेहपुरी के जूते वही थे जो उसने घटना के समय पहन रखे थे न्यायालय ने प्रीतम सिंह लोहारा को चला कर देखा जिससे उसका लंगड़ा होना ज्ञात हुआ प्रथम सूचना रिपोर्ट में भी उसका लंगड़ा होना अंकित था।
इस प्रकार उपरोक्त सभी तथ्यों एवं साक्ष्य के आधार पर विचारण चला और विचारण में अभियुक्तों को मृत्युदंड से दंडित किया गया उच्च न्यायालय द्वारा मृत्युदंड की पुष्टि की गई इसी के विरुद्ध विशेष अदालत से उच्चतम न्यायालय में अपील प्रस्तुत की गई।
निर्णय
उच्चतम न्यायालय में अपीलारथियों की ओर से निम्नांकित तरफ प्रस्तुत किए गए-
क.  अभियुक्त गणों से तथाकथित बरामदशुदा  बंदूकों एवम रिवॉलवर ओं की पहचान बाबत  साक्षियों के भिन्न भिन्न मत होने से उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
ख.  प्रीतम सिंह फतेहपुरी को पहचान परेड में अधिकांश गवाहों द्वारा नहीं पहचाना गया और यहां तक की स्वयं बस का चालक प्रीतम सिंह भी उसकी पहचान स्थापित नहीं कर सका।
ग.  प्रीतम सिंह लोहारा को पहचान परेड से पहले ही ओम प्रकाश नामक पुलिस अधिकारी द्वारा गवाहों को बता दिया गया था।
घ.  प्रीतम सिंह लोहारा के लंगड़ा होने की बात बस में बैठे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा नहीं कही गई थी।
ङ.  पद चिन्हों की पहचान बाबत साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है क्योंकि यह विज्ञान अभी अविकसित एवं प्रारंभिक अवस्था में है केवल पद चिन्हों की पहचान के आधार पर दोष सिद्ध किया जाना न्याय सम्मत नहीं है।
प्रत्यरथी गण की ओर से अपील के आर्थी तर्कों का खंडन करते हुए यह कहा गया कि-
1. निचली दोनों अदालतों का निष्कर्ष सही है इसलिए उनमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
2. उच्चतम न्यायालय को  तथ्यों में परिवर्तन करने की अधिकारिता नहीं है।
3.  दोष सिद्धि प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथनों  पहचान परेड में अभियुक्तों की पहचान पद चिन्हों के परीक्षण रिवाल्वर की जब्ती एवं बरामदगी खून सदा कुर्तों की बरामदगी तथा घटना के बाद अभियुक्तों के भाग जाने आदि के आधार पर की गई है यह साक्ष्य दोष सिद्धि के लिए पर्याप्त हैं
उच्चतम न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्कों पर गंभीरता से विचार किया न्यायालय ने अभियुक्त की दोष सिद्धि के आधारों पर तथा नीचे के दोनों न्यायालयों के निष्कर्ष को सही माना प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथन पहचान परेड में अभियुक्तों की पहचान अभियुक्तों से रिवाल्वर एवं खून शुदा कुर्तों की बरामदगी अभियुक्त लोहारा के लंगड़े होने का तथ्य आदि ऐसी पुष्टि कारक साक्ष्य हैं जिसके आधार पर अभियुक्तों को दोषी सिद्ध किया जा सकता है।
परिणाम स्वरूप अभियुक्त गणों की अपील को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा उनके मृत्युदंड की पुष्टि की गई।
विधि के सिद्धांत
इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित सिद्धांत प्रतिपादित किए गए। -
1. पद चिन्हों के परीक्षण के निष्कर्ष के आधार पर अभियुक्त को दोष सिद्ध किया  जाना सुरक्षित नहीं है क्योंकि यह विज्ञान अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है।
2. विशेष  इजाजत से की जाने वाली अपीलों में नीचे के न्यायालयों के साक्ष्य के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष को बदलने की अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को नहीं है।
3. न्यायालय द्वारा अभियुक्त की पहचान के लिए स्वयं द्वारा जांच कर कोई राय बनाना न्याय सम्मत नहीं है क्योंकि इससे अभियुक्त की प्रतिरक्षा का अवसर समाप्त हो जाता है।

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