Devkinandan vs Murlidhar | देवकीनंदन बनाम मुरलीधर

Devkinandan vs Murlidhar | देवकीनंदन बनाम मुरलीधर


भूमिका
यह बाद सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 92 तथा आदेश 6 नियम दो कि व्याख्या से संबंधित है इसमें हिंदू विधि के अंतर्गत स्थापित निजी एवं सार्वजनिक न्यास ओं के बीच अंतर का प्रश्न भी अंतर वलित था
तथ्य
इस मामले में तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं शिव गुलाम नामक एक व्यक्ति में सन 1914 में सीतापुर जिले की भदेशिया गांव में राधा कृष्ण का एक मंदिर बनवाया था यह मंदिर "श्री राधा कृष्ण जी का ठाकुरद्वारा" नाम से जाना जाता था सन 1928 में शिव गुलाम की मृत्यु हो गई।  अपने जीवन जीवन काल में इस मंदिर का प्रबंध शिव गुलाम के हाथों में ही रहा शिव गुलाम द्वारा सन 1919 में एक वसीयत निष्पादित की गई थी जिसके द्वारा उसने अपनी सारी भूमि ठाकुरद्वारा के नाम कर दी थी शिव गुलाम के दो पत्नियां थी रामकोर व राजकोट रामपुर की मृत्यु शिव गुलाम के जीवन काल में ही हो गई थी इसलिए शिव गुलाम की मृत्यु के बाद मंदिर का प्रबंध राजकोट के हाथों में चला गया जब राज कोर की भी मृत्यु हो गई तो मंदिर का प्रबंध वसीयत के अनुसार शिव गुलाम के भतीजे मुरलीधर ने संभाला जो इस मामले में प्रतिवादी प्रत्यय रथी है इसी दौरान शिव गुलाम के एक दूर के रिश्तेदार देवकीनंदन ने जो इस मामले में वादी अपील आर्थी है सीतापुर के जिला न्यायालय में एक वाद इस आशय का दायर किया कि मुरलीधर द्वारा मंदिर का प्रबंध ठीक तरह से नहीं चलाया जा रहा है उसके द्वारा जनसाधारण को मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है लेकिन जिला न्यायालय में न्यास की संपत्ति को निजी मानते हुए उसमें हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया इसी दौरान वाद लाने हेतु सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के अंतर्गत महाधिवक्ता की अनुमति के लिए प्रस्तुत प्रार्थना पत्र को भी खारिज कर दिया गया इस पर वादी अपील आर्थी देवकीनंदन ने इस मंदिर को सार्वजनिक घोषित करने के आश्य का एक वाद सीतापुर के अतिरिक्त सिविल न्यायालय में दायर कर दिया।
प्रतिवादी प्रत्यर्थी की ओर से  यह आक्षेप किया गया कि  मंदिर में मूर्तियां उसकी निजी संपत्ति है इसलिए जनसाधारण को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है न्यायालय द्वारा यह अभी निर्धारित किया गया कि शिव गुलाम ने यह मंदिर अपने परिवार के लिए बनवाया था इसलिए यह निजी मंदिर है इस निर्णय के विरुद्ध जिला न्यायालय में अपील की गई जो खारिज कर दी गई उसके विरुद्ध दूसरी अपील अवध के चीफ कोर्ट में की गई पर वहां भी वह खारिज कर दी गई मामला सार्वजनिक महत्व का होने से उक्त निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति दी गई तदनुसार उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
निर्णय
उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील आर्थी द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि मंदिर शिव गुलाम के घर में बना हुआ नहीं है शिव गुलाम द्वारा यह मंदिर पूजा अर्चना के लिए जनसाधारण को समर्पित कर दिया गया था अभी से गांव के सभी व्यक्ति इस मंदिर में पूजा अर्चना करते चले आ रहे हैं।
  प्रतिवादी ने  अपील आर्थी के तर्कों का खंडन करते हुए मंदिर को अपना निजी मंदिर बताया तथा सभी अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों को सही ठहराया।
उच्चतम न्यायालय की 4 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दोनों पक्षों के तर्कों पर गंभीरता से विचार किया गया अपने समक्ष प्रस्तुत तथ्यों से यह तो स्पष्ट था कि मंदिर शिव गुलाम द्वारा विधि अनुसार समर्पित कर दिया गया था प्रश्न केवल समर्पण की सीमा का रह गया था विधि के अनुसार निजी न्यास में लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति अर्थात हितग्राही सीमित होते हैं जबकि सार्वजनिक न्यास में जनसाधारण को हितग्राही माना जाता है इसी अवधारणा के अनुरूप इस मामले का निस्तारण किया गया।
शिव गुलाम नहीं वसीयत द्वारा अपनी सारी संपत्ति ठाकुरद्वारा को समर्पित कर दी थी मंदिर का प्रबंध पहले अपनी पत्नियों को सौंपा गया था तथा बाद में अपने भतीजे मुरलीधर को।  इस प्रयोजन के लिए चार व्यक्तियों की एक समिति का गठन किए जाने का भी प्रावधान था इन चार व्यक्तियों में दो व्यक्ति अन्य जातियों की रखे जाने प्रस्तावित है वसीयत में यह भी कहा गया था कि इनमें से कोई भी व्यक्ति मंदिर की संपत्ति का अन्य संक्रामण नहीं कर सकेगा।
वसीयत के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने है यह निष्कर्ष निकाला कि मंदिर सार्वजनिक था क्योंकि-
क. शिव गुलाम द्वारा मंदिर जनसाधारण को समर्पित कर दिया गया था,
ख. यह मंदिर गांव वालों के आग्रह पर बनाया गया था,
ग.  आरंभ से ही गांव के सभी लोग इस में पूजा अर्चना करते रहे हैं,
घ.  मंदिर के प्रबंध हेतु गठित की जाने वाली समिति में दो अन्य जाति के व्यक्तियों को रखे जाने का प्रावधान था,
ङ.  देव मूर्तियां भी घर में स्थापित नहीं की जा कर मंदिर में स्थापित की गई थी तथा,
च. मंदिर की स्थापना के समय आयोजित प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव भी मंदिर जनता को समर्पित किए जाने का सूचक है।
उपरोक्त सभी आधारों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा मंदिर को सार्वजनिक मंदिर माना गया उच्चतम न्यायालय का निर्णय न्यायमूर्ति वेंकटरामा अय्यर द्वारा सुनाया गया अपील आर्थी की अपील को मंजूर किया गया।
विधि के सिद्धांत
इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित सिद्धांत प्रतिपादित किए गए-
1. ऐसा मंदिर जो जनता के आग्रह पर तथा जनता के लिए बनाया गया हो सार्वजनिक मंदिर होता है।
2. ऐसे तर्क अथवा विवाद न्याय संगत नहीं होते हैं जो किसी पक्ष कार या साक्षी ने प्रस्तुत ही नहीं किए हो और न जिन पर निष्कर्ष आधारित हो।

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