आया राम गया राम की राजनीति एवं दसवीं अनुसूची

आया राम गया राम की राजनीति, भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची तथा दल परिवर्तन

सत्ता की लालसा में बहुत से राजनीतिक जिस दल के चिन्ह पर चुनाव लड़ते हैं उसे छोड़कर दूसरे दल में चले जाते हैं | इसका एक मात्र उद्देश्य सत्ता और सुविधा प्राप्त करना होता है | 1952 में टी प्रकाशम ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए | पटनम थानों पिल्लई ने 1956 में राज्यपाल पद पाने के लिए अपना दल परिवर्तन कर लिया | उत्तर प्रदेश में एक समय के विपक्ष के नेता गेंदा सिंह और नारायण नारायण दत्त तिवारी रातों-रात कांग्रेसी बन गए | चौथे साधारण निर्वाचन में जो 1968 में हुआ था अनेक राज्यों में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गए | अभी तक विधायक अपना दल छोड़कर कांग्रेस के सदस्य बन जाते थे अब आना-जाना दोनों तरफ से होने लगा | चरण सिंह उत्तर प्रदेश से, राव वीरेंद्र सिंह हरियाणा से, गोविंद नारायण सिंह मध्यप्रदेश से और सरदार लक्ष्मण सिंह गिल पंजाब से मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेसी से बाहर आ गए | यह प्रवृत्ति आगे भी चलती रही | 1978 में शरद पवार ने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेसी छोड़ दी | 1980 में भजनलाल ने जनता दल को कांग्रेस विधायक दल बना दिया और मुख्यमंत्री के अपने शासन को बचा लिया | हरियाणा से ही आया राम गया राम का मुहावरा चलन में आया | ऐसा कहा जाता है कि उस राज्य में एक विधायक ने 2 दिन के भीतर तीन बार अपना दल बदला | इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह दल परिवर्तन सिद्धांत में परिवर्तन के कारण नहीं हुए थे किंतु उनके पीछे सत्ता और पद का आकर्षण था |

इसी दल परिवर्तन या दलबदल की राजनीति को खत्म करने के लिए भारतीय संविधान में 52 वां संविधान संशोधन हुआ | जिसके तहत संविधान के अनुसूची में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई और दल बदलू प्रवृत्ति को नकेल डालने की कोशिश की गई ।

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