Nisar Ali Vs State of Uttar Pradesh | निसार अली बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश
निसार अली बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश
भूमिका
यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154, 157, 252 एवं 286 से संबंधित है साथ ही इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 से 104 तक के उपबंधों के अर्थान्वयन का प्रश्न भी अंतर ग्रस्त रहा है इस मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट का साक्ष्यिक मूल्य, उसकी ग्राहयता, अभियुक्त व्यक्ति के निर्दोष होने की उपधारणा, अभियोजन पर आरोप सिद्धि का भार जैसे प्रश्न विचारणीय बिंदु थे।
तथ्य
इस प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं दिनांक 11 मई 1951 की शाम के करीब 6:30 बजे की घटना है कुदरत उल्ला नाम का व्यक्ति अपनी दुकान पर बैठा हुआ था दुकान के नीचे सबीर नाम का व्यक्ति भी बैठा हुआ था। तब वहां निसार अली अपने घर से बाहर आया उससे सभी ने उसकी खराब हालत के बारे में पूछा इससे निसार अली नाराज एवं क्रोधित हो गया तथा दोनों में गाली गलौज होने लग गई धीरे धीरे दोनों गुत्थम गुत्था हो गए इस घटना से वहां कई लोग इकट्ठे हो गए निसार अली ने कुदरत उल्ला से चाकू मांगा जो दे दिया गया निसार अली उस चाकू से सबीर पर वार करके भाग गया चाकू वहां से कुदरत उल्ला ने उठा लिया कुदरत उल्ला सबीर को रिक्शे में बिठाकर अस्पताल ले गया जहां सबीर की मृत्यु हो गई कुदरत उल्लाह ने इस सारी घटना की 6:45 बजे पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई अन्वेषण अधिकारी नहीं घटनास्थल पर पहुंचकर अन्वेषण शुरू कर दिया निसार अली को कुछ समय बाद गिरफ्तार कर लिया गया सबीर की लाश का शव पोस्टमार्टम कराया गया परीक्षण रिपोर्ट में शरीर की मृत्यु उसकी छाती पर चाकू के गहरे घावों के परिणाम स्वरूप होना बताया गया फेफड़ों पर भी गहरे घाव थे जो किसी तेज धार वाले हथियार के लग रहे थे।
अन्वेषण के बाद निसार अली के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 302 एवं कुदरत उल्ला के विरूद्ध धारा 302 एवं 114 के अंतर्गत विचारण चला। सेशन न्यायाधीश द्वारा दोनों अभियुक्त गणों को दोषमुक्त कर दिया गया इस पर राज्य सरकार द्वारा निसार अली के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की गई उच्च न्यायालय द्वारा सेशन न्यायाधीश के निर्णय को उलट कर निसार अली को धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए उसे आजीवन कारावास के दंड से दंडित किया गया इसी निर्णय के विरुद्ध अपील आर्थी निसार अली द्वारा विशेष इजाजत से उच्चतम न्यायालय में अपील प्रस्तुत की गई।
निर्णय
उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील आर्थी की ओर से निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किए गए-
क. प्रथम सूचना रिपोर्ट को साक्ष्य में ग्राह्य नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई थी जो खुद एक अभियुक्त था।
ख. हत्या के आरोप को साबित करने का भार अभियुक्त पर नहीं हो सकता यह भार अभियोजन पक्ष पर था।
ग. साथियों द्वारा कुदरत उल्लाह को प्रकरण में गलत फंसाया गया था इसलिए साक्षियों के कथनों पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए था। साक्षियों के इन कथनों को अपील आर्थी के विरुद्ध भी विश्वसनीय नहीं माना जाना चाहिए।
अपीलार्थी के उपरोक्त तर्कों का खंडन करते हुए प्रत्यरथी यानी प्रतिवादी की ओर से यह कहा गया कि प्रत्यक्ष दर्शी गवाहों की गवाही से अभियुक्त के विरुद्ध धारा 302 का आरोप संदेह से परे साबित हो चुका है इस मामले को किसी भी प्रकार से संदेहास्पद नहीं कहा जा सकता।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दोनों पक्षों के तर्कों पर गंभीरता से विचार किया गया तीन न्यायाधीशों की पीठ की ओर से निर्णय न्यायाधीश कपूर द्वारा सुनाया गया।
उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभी निर्धारित किया गया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट सार भूत साक्ष्य नहीं है और नही साक्षी का मुख्य भाग है उसे साक्ष्य अधिनियम की धारा 157 के अंतर्गत या धारा 145 के अंतर्गत विहित प्रयोजनों के लिए काम में लिया जा सकता है यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने वाला व्यक्ति ही अभियुक्त बन जाता है तो उसे उसके विरुद्ध साक्ष्य के तौर पर काम में नहीं लिया जा सकता है।
उच्च न्यायालय द्वारा प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथनों को कुदरत उल्ला के विरुद्ध अस्वीकार एवं निसार अली के विरुद्ध स्वीकार किया गया था उच्च न्यायालय ने इसका कारण बताते हुए कहा कि-
क. कुदरत उल्लाह एवं सबीर के बीच मैं कोई रंजिश थी और ना ही कोई दुश्मनी।
ख. सबीर की हत्या करने में कुद्रतुल्लाह का कोई हित भी नहीं था।
ग. यह बात गले नहीं उतरती है कि किसी व्यक्ति की हत्या कारित करने वाला व्यक्ति ही पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखा है तथा आहत व्यक्ति (मृतक) को अस्पताल ले जाए।
उच्चतम न्यायालय ने अपील अर्थी के तर्कों को सार हनुमाना और कहा कि प्रत्यक्ष दर्शी गवाहों की गवाही से अभियुक्त निसार अली के विरुद्ध धारा 302 का आरोप संदेह से परे साबित है परिणाम स्वरूप अपील आर्थी की अपील को खारिज कर दिया गया।
विधि के सिद्धांत
इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित सिद्धांत प्रतिपादित किए गए थे-
1. प्रथम सूचना रिपोर्ट न तो सार भूत साक्ष्य है और ना ही उसका मुख्य भाग।
2. यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने वाला व्यक्ति स्वयं अभियुक्त बन जाता है तो उसे उसके विरुद्ध काम में नहीं लिया जा सकता है।
3. अपराध विधिशास्त्र का यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि जब तक अभियुक्त को दोषी साबित नहीं कर दिया जाता उसे निर्दोष माना जाना चाहिए।
4. अभियुक्त के विरुद्ध आरोपों को सिद्ध करने का भार सदैव अभियोजन पक्ष पर होता है।
5. यदि किसी साक्षी के कथनों को एक अभियुक्त के विरुद्ध अविश्वसनीय माना जाता है तो यह आवश्यक नहीं है कि उन कथनों को अन्य अभियुक्त के विरुद्ध भी अविश्वसनीय माना जाए।
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