Carlill Vs Carbolic Case | कार्लील बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी
कार्लील बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी
भूमिका
यह प्रकरण भारतीय संविदा अधिनियम 1872की धारा 8 से संबंधित है इसमें प्रस्थापना प्रपोजल एवं प्रति ग्रहण एक्सेप्टेंस संबंधी विधि का विवेचन किया गया है इस प्रकरण में न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय बिंदु यह था कि प्रस्थापना एवं प्रति ग्रहण की सन सूचना कब पूर्ण होती है
तथ्य
प्रत्यरथी कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी औषधियों का निर्माण एवं विक्रय करने वाली एक व्यवसायिक फर्म थी इस कंपनी द्वारा इनफ्लुएंजा नामक रोग के निवारण के लिए स्मोक बॉल नामक एक औषधि का निर्माण किया गया और इसके प्रचार-प्रसार एवं विक्रय के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए गए थे विज्ञापन इस प्रकार था कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी द्वारा निर्मित औषधि का 2 सप्ताह तक दिन में तीन बार निर्देशानुसार सेवन करने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति इन्फ्लूएंजा रोग से ग्रस्त हो जाता है तो कंपनी द्वारा ऐसे व्यक्ति को 100 पाउंड की राशि पुरस्कार के रूप में दी जाएगी कंपनी ने अपनी सत्यता एवं विश्वसनीयता स्वरूप एलाइंस बैंक में 1000 पोंड की राशि जमा करा दी है पिछली बार भी जब इन्फ्लूएंजा का रोग फैला था तब अनेक व्यक्तियों ने इस औषधि का सेवन कर लाभ प्राप्त किया था और इसका सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को इन्फ्लूएंजा नहीं हुआ था
वादी- अपीलार्थी श्रीमती कालिल इन्फ्लूएंजा रोग से पीड़ित थी इसलिए उसने विज्ञापन के अनुसार स्मोक बॉल नामक औषधि खरीद कर उसका दिशा निर्देश के अनुसार सेवन किया लेकिन उसका उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह इन्फ्लूएंजा रोग से पीड़ित ही रही इस पर श्रीमती कार्लिल ने 100 पौंड की पुरस्कार राशि प्राप्त करने के लिए कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी के विरुद्ध एक वाद दायर किया न्यायालय द्वारा श्रीमती कार्लिल को पुरस्कार की राशि प्राप्त करने का हकदार माना गया उक्त निर्णय के विरुद्ध अपीलीय न्यायालय में अपील प्रस्तुत की गई
निर्णय
न्यायालय के समक्ष प्रत्यय थी कंपनी की ओर से निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किए गए
क- इस मामले में श्रीमती कार्लिल तथा कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी के बीच किसी प्रकार की संविदा नहीं हुई थी इसमें ने तो कंपनी की ओर से प्रस्थापना थी और न ही कार लील की ओर से प्रति ग्रहण यदि प्रति ग्रहण मान भी लिया जाए तो भी इसकी सूचना कंपनी को नहीं दी गई थी इसलिए यह संविदा आबद्धकर नहीं थी
ख. कंपनी द्वारा पर स्थापना किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं की गई थी
ग. संविदा में प्रतिफल का अभाव होने से वह प्रवर्तनीय नहीं है
घ. विज्ञापन मात्र एक प्रलोभन था तथा संविदा पन
संविदा थी
न्यायालय द्वारा इन सभी बिंदुओं एवं तर्कों पर विचार किया गया न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि- पर स्थापना किसी व्यक्ति विशेष या जनसाधारण के लिए हो सकती है इस मामले में स्थापना जनसाधारण के लिए थी तथा कोई भी व्यक्ति विज्ञापन को पढ़कर उसको सदी का सेवन कर सकता था ऐसा सेवन किया जाना विवक्षित प्रति ग्रहण इंप्लायड एक्सेप्टेंस था इसलिए यह एक विधि मान्य संविदा थी
इस संविदा में प्रतिफल भी था औषधि का मूल्य कंपनी के लिए तथा औषधि के सेवन से लाभ नहीं मिलने पर हुआ कष्ट एवं पुरस्कार था इसे पन संविदा भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसमें किसी एक पक्ष को आकस्मिक लाभ एवं दूसरे पक्ष को आकस्मिक नुकसान होने की आशा या संभावना नहीं थी यह मात्र एक प्रलोभन भी नहीं था क्योंकि मात्र प्रलोभन होने पर कंपनी द्वारा अलायंस बैंक में 1000 पौंड की राशि जमा नहीं कराई जाती यह राशि जमा कराना ही विज्ञापन की सत्यता एवं विश्वसनीयता का प्रतीक है
अंततः अपीलीय न्यायालय द्वारा पृत्यर्थी के तर्कों को नकारते हुए अपील आर्थी श्रीमती कर्ली ल्को 100 पौंड की पुरस्कार राशि प्राप्त करने का हकदार माना गया निर्णय न्यायमूर्ति बोवेन द्वारा उद् घोषित किया गया
विधि के सिद्धांत
इस मामले में विधि के निम्नांकित सिद्धांत प्रतिपादित किए गए
1. प्रस्थापना दो प्रकार की हो सकती है व्यक्ति विशेष के लिए एवं जनसाधारण के लिए विज्ञापन के माध्यम से ही की जाने वाली स्थापना जनसाधारण के लिए होती है
2. विज्ञापन में दी गई शर्तों का पालन कर प्रस्थापना का प्रति ग्रहण किया जा सकता है और ऐसे प्रति ग्रहण की सन सूचना प्रथापन करता को दिया जाना आवश्यक नहीं है ऐसा प्रति ग्रहण विवक्षित प्रति ग्रहण कहलाता है
3. वादी के कार्य से प्रतिवादी को होने वाला लाभ तथा प्रतिवादी के कार्य से वादी को होने वाली असुविधा या नुकसान एक दूसरे के लिए प्रति फल होता है
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