Andhra Pradesh Vs Ganeshwar Rao | Supreme Court Case
आंध्र प्रदेश सरकार - अपील करता
बनाम गनेश्वर राओ - उत्तर दाता
भूमिका
यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 233 से 236 एवं 239 (सीआरपीसी) से संबंधित है।
तथ्य
सन 1929 में आंध्र इंजीनियरिंग कंपनी जो शुरू में साझीदार फर्म थी बाद में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई जिसको सूक्ष्म में (ए ई सी ओ) कहा जा सकता है इस कंपनी ने विशाखापट्टनम अनक पल्ली कुछ जगह बिजली देने के लिए सरकार से लाइसेंस लिए पैसा अधिक नए होने के कारण ( ए ई सी ओ) प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बजाए पब्लिक लिमिटेड कंपनी कर दी गई इस कंपनी का मुख्य संचालक श्री राजू थे पब्लिक लिमिटेड कंपनी का नाम विशाखापट्टनम इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड जिसको सूक्ष्म में (वी ई एस सी ओ) कहा जा सकता है रख दिया और 1936 में अनक पल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड रख दिया ( ए ई सी ओ) ने अपने लाइसेंस वी ई एस सी ओ को हस्तांतरित कर दिए और वी ई एस सी ओ ने लाइसेंस अनक पलीके बिजली खर्च करने वालों कंज्यूमर्स को कर दिए। ए ई सी ओ इकरारनामा के द्वारा प्रबंधक बन गई उसके बाद आंध्र सीमेंस लिमिटेड आदि फरम राजू द्वारा और खोली गई ए ई सी ओ प्रबंधक बन गई ए ई सी ओ का इकरारनामा वी ईएस सी ओ के साथ 15 साल के लिए था बाद में सरकार द्वारा लाइसेंस मिलने पर दोबारा लिया जा सकता था जून 1952 में सरकार ने वी ईएस सी ओ अपने अधिकार में कर ली।
ए ई सी ओ व वी ई एस सी ओ के संचालक गण थे लेकिन वी ई एस सी ओ के प्रबंध कर्ता मैनेजिंग डायरेक्टर नहीं था इसलिए प्रत्येक मीटिंग में सभापति चुना जाता था साधारण मीटिंग में भी यही तरीका अपनाया जाता था जबकि एसीईओ का प्रबंध कर्ता डी. एल. एन. राजू था वह सन 1939 में मर गया उसके बाद आर. के. एन. जी. राजू अधिवक्ता ने प्रबंध कर्ता का भार संभाला मैं ज्यादातर काम को देखते नहीं थे अभियोजन के अनुसार दोनों फर्म का काम डी. एल. एन. राजू अच्छा चलाता रहा था। अभियोजन के अनुसार के एन जी राजू काम की परवाह नहीं करता था इसलिए ए ई सी ओ ने डी. बी. अप्पला राजू को अपने यहां कर्मचारी तथा वी ई एस सी ओ का सेक्रेटरी नियुक्त किया सन 1944 में इस ने इस्तीफा दे दिया तथा डी ब्रदर्स के नाम से रेडियो तथा बिजली के सामान का काम शुरू कर दिया इसकी वजह से टी विश्वेश्वर राओ को ए ई सी ओ का कर्मचारी नियुक्त किया गया।
गणेश्वर राओ उत्तर दाता नंबर 1 ए ई सी ओ का सन 1930 से ₹40 माहवार से कर्मचारी था पहले उसकी नियुक्ति स्टेनो टाइपिस्ट की पदवी पर हुई थी बाद में यह मुख्य कर्मचारी बन गया उसने वी ई एस सी ओ के सेक्रेटरी होने का क्लेम किया बाद में आर. के. एन. जी. राजू ने गणेश्वर राओ को सेक्रेटरी नियुक्त किया और वह काम बतौर सेक्रेटरी के करता रहा वह रोजाना वी ई एस सी ओ का काम करता था उसका काम पैसे खर्च करना पैसे वसूल करना तथा मीटिंग को बुलाना माल खरीदना था इससे वी ई एस सी ओ और ए ई सी ओ के संचालन करता उस पर विश्वास करते थे उसके द्वारा तैयार किए बही खाते प्रबंध कर्ता अंश धारियों द्वारा देखे जाते थे उसके काम में सन 1946 तक शिकायत नहीं पाई गई।
अभियोजन के अनुसार 1946 के करीब उत्तर दाता नंबर वन गणेश्वर राव ने पुराने पुराने चार्टर्ड अकाउंटेंट को हटाकर इंटरनल ऑडिटर नियुक्त किया वह ग्रीन होटल में भी ऑडिटर थे जिसमें की उत्तर दाता नंबर वन संचालक था सन 1942 में आरकेएन जी राव का स्वर्गवास हो गया इसका फायदा उत्तर दाता नंबर वन ने लिया और उसने वी ई एस सी ओ का गबन करना चालू कर दिया क्योंकि ए ई सी ओ के साथ 1942 तक इकरारनामा था उत्तर दाता नंबर वन के बी रमन (राज्य साक्षी) की तरक्की अकाउंट्स क्लर्क में सीनियर अकाउंटेंट की करा दी इस वजह से गणेश्वर राव ने राज्य साक्षी को जीत लिया था इसकी जगह लक्ष्मी नारायण नियुक्त किया इन दोनों को ही उत्तर दाता नंबर 2 ने जीत लिया था सरकार ने लाइसेंस सन 1952 तक नवीनीकरण इस वजह से ए ई सी ओ का वी ई एस सी ओ से संबंध 1952 तक बढ़ गया और प्रतिवादी नंबर 1 पहले ही की तरह काम करता रहा।
दूसरे राजू के मरने के बाद पता चला कि वी ई एस सी ओ को मुवलिंग ₹42000 का देना है यह पैसा ए ई सी ओ ने वी ई एस सी ओ को बचत में से दे दिया उत्तर दाता नंबर 1 व उसके दोस्त किसी रईस आदमी की तलाश में थे जिसको ए ई सी ओ का प्रबंध कर्ता बनाया जाय इस लिए उत्तर दाता नंबर 1 व उसके दोस्तों ने कोशिश करके जी. बी. सुबा राजू को प्रबंध करता बना दिया यह आरकेएन राजू का रिश्तेदार था यह पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन अंग्रेजी में दस्तखत करना जानता था बड़े बड़े प्रतिष्ठानों से बिजली के खर्च के पैसे चेक से आया करते थे बाकी लोग नगद पैसा जमा कराया करते थे नकद पैसे इकट्ठे होकर उत्तर दाता नंबर दो लक्ष्मीनारायण को जमा किए जाते थे उत्तर दाता नंबर 1 के कहने पर उत्तर दाता नंबर 2 ने निजी डायरी बना ली उस डायरी में वह रकम लिखने की हिदायत दी गई जो कि उत्तर दाता नंबर 1 की चिट पर दी जाती थी। जो रकम उत्तर दाता नंबर 1 इन चिटों के द्वारा निकलवा ते थे वह वी ई एस सीईओ के खाते में सुरक्षित लिख देते थे यह रकम अपने रिश्तेदारों को दी जाती थी।
उत्तर दाता नंबर 1 ने एक नया खाता पन्ना माल खरीदने को पेशगी चालु किया जो रकम गबन की जाती थी वह इस खाते में बढ़ा दी जाती थी सुब्बाराजू इस प्रकार के बही खाते से संतुष्ट नहीं था इस वजह से उसने डीएस राजू को बही खाते की देखभाल के लिए नियुक्त किया वह ए ई सीओ में भी कार्य कर्ता था एक नया बहीखाता अनिश्चय बहीखाता तथा नई रोकड़ बही गबन को छिपाने के लिए बनाई 29 नवंबर 1951 की मीटिंग में उत्तर दाता ने अपने बही खाते छिपाएं और कहा कि रिपोर्ट अकाउंटेंट से आई नहीं है इसलिए मीटिंग स्थगित हो कर दिसंबर 1951 को हुई उस तारीख को फर्जी रिपोर्ट की गई।
एमजी कृष्ण अय्यर ने बही खाते की जांच की और पता लगाया कि कुछ रकमें आंध्र पावर सिस्टम के नाम लिखी है लेकिन वास्तव में वह रकमें कभी नहीं दी गई कलेक्टर ने अप्रैल 1952 में वी ई एस सी ओ की जायदाद उपरोक्त उपरोक्त रकम न देने पर कुर्क कर ली 30 अप्रैल 1952 को उत्तर दाता नंबर 1 ने अपनी जायदाद बेचकर आंध्र पावर सिस्टम को 59000 वी ई एस सी ओ की तरफ से चुका दिए और बाकी रकम देने का वायदा किया जिस वायदे को वह निभा नहीं पाया।
19-5-1952 को पुलिस में उत्तर दाता नंबर 1 के खिलाफ शिकायत की गई जांच के द्वारा ₹340000 का गवर्नर पता लगा 13 मई 1954 को दोनों उत्तर दाता मूर्ति भ्रमण के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया 13 सितंबर 1954 को रमन ने जुर्म मंजूर किया और राज्य साक्षी बनने को तैयार हो गया इस वजह सेअतिरिक्त न्यायालय ने उसको दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 के अनुसार माफ कर दिया।
वाद विचारण न्यायालय में- विचारण न्यायालय ने उत्तर दाता नंबर 1 के खिलाफ प्रत्येक आरोप को तथा उत्तर दाता नंबर 2 के खिलाफ षड्यंत्र में गबन के आरोप लगाकर सजा का हुक्म दिया।
प्रथम अपील- प्रथम अपील उत्तर दाता की मंजूर की तथा उत्तर दाता को छोड़ दिया।
वाद उच्चतम न्यायालय में
आंध्र प्रदेश सरकार ने विशेष इजाजत लेकर उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील दायर की धारा 239 में 234 (1) साथ-साथ पढ़नी चाहिए यदि एक साथ न्यायिक जांच में कुछ निरोध (रिस्ट्रिक्शंस) हो तो निरोध इस केस में सपना पथ क्यों कर दिए जाएं।
अपील कर्ता की ओर से यह अपील पेश की गई कि धारा 235 के अंतर्गत सब आरोपों के खिलाफ एक ही न्याय जान उचित है लेकिन धारा 235 व 239 में अंतर है यदि सब अपराध इसी श्रेणी में किए गए हो तो आरोपों की धारा 239 के अंतर्गत न्यायिक जांच की जा सकती है और धारा 234 लागू होती है।
इस केस में अवधि का प्रश्न ही नहीं उठता, इसलिए इस केस में धारा 239 लागू होती है।
उच्चतम न्यायालय ने कुछ संशोधन व निर्देश के साथ यह फैसला उच्च न्यायालय में आदेश के लिए भेज दिया।
वाद का निर्णय- इसलिए अपराधियों की दोष सिद्धि समाप्त की जाती है अपील उच्च न्यायालय में फिर से विचार के लिए भेजी जाने है।
वाद के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत
1. षड्यंत्र का आरोप अलग से बनना चाहिए।
2. गवाह को धारा 32 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत यादाश्त कराने के लिए बहीखाते दिखाई जा सकते हैं।
3. जिस व्यक्ति को क्षमादान दिया गया है उसकी साक्ष्य सभी परिस्थितियों को देख कर ही विश्वास करना चाहिए।
4. अगर धारा 342 के अंतर्गत पूछे गए विभिन्न प्रश्नों का अभियुक्तों ने सही उत्तर दे दिया है तो कोई गैरकानूनी कार्यवाही नहीं बनती है।
Andhra Pradesh Vs Ganeshwar Rao | Supreme Court Case
बनाम गनेश्वर राओ - उत्तर दाता
भूमिका
यह प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 233 से 236 एवं 239 (सीआरपीसी) से संबंधित है।
तथ्य
सन 1929 में आंध्र इंजीनियरिंग कंपनी जो शुरू में साझीदार फर्म थी बाद में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई जिसको सूक्ष्म में (ए ई सी ओ) कहा जा सकता है इस कंपनी ने विशाखापट्टनम अनक पल्ली कुछ जगह बिजली देने के लिए सरकार से लाइसेंस लिए पैसा अधिक नए होने के कारण ( ए ई सी ओ) प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बजाए पब्लिक लिमिटेड कंपनी कर दी गई इस कंपनी का मुख्य संचालक श्री राजू थे पब्लिक लिमिटेड कंपनी का नाम विशाखापट्टनम इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड जिसको सूक्ष्म में (वी ई एस सी ओ) कहा जा सकता है रख दिया और 1936 में अनक पल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड रख दिया ( ए ई सी ओ) ने अपने लाइसेंस वी ई एस सी ओ को हस्तांतरित कर दिए और वी ई एस सी ओ ने लाइसेंस अनक पलीके बिजली खर्च करने वालों कंज्यूमर्स को कर दिए। ए ई सी ओ इकरारनामा के द्वारा प्रबंधक बन गई उसके बाद आंध्र सीमेंस लिमिटेड आदि फरम राजू द्वारा और खोली गई ए ई सी ओ प्रबंधक बन गई ए ई सी ओ का इकरारनामा वी ईएस सी ओ के साथ 15 साल के लिए था बाद में सरकार द्वारा लाइसेंस मिलने पर दोबारा लिया जा सकता था जून 1952 में सरकार ने वी ईएस सी ओ अपने अधिकार में कर ली।
ए ई सी ओ व वी ई एस सी ओ के संचालक गण थे लेकिन वी ई एस सी ओ के प्रबंध कर्ता मैनेजिंग डायरेक्टर नहीं था इसलिए प्रत्येक मीटिंग में सभापति चुना जाता था साधारण मीटिंग में भी यही तरीका अपनाया जाता था जबकि एसीईओ का प्रबंध कर्ता डी. एल. एन. राजू था वह सन 1939 में मर गया उसके बाद आर. के. एन. जी. राजू अधिवक्ता ने प्रबंध कर्ता का भार संभाला मैं ज्यादातर काम को देखते नहीं थे अभियोजन के अनुसार दोनों फर्म का काम डी. एल. एन. राजू अच्छा चलाता रहा था। अभियोजन के अनुसार के एन जी राजू काम की परवाह नहीं करता था इसलिए ए ई सी ओ ने डी. बी. अप्पला राजू को अपने यहां कर्मचारी तथा वी ई एस सी ओ का सेक्रेटरी नियुक्त किया सन 1944 में इस ने इस्तीफा दे दिया तथा डी ब्रदर्स के नाम से रेडियो तथा बिजली के सामान का काम शुरू कर दिया इसकी वजह से टी विश्वेश्वर राओ को ए ई सी ओ का कर्मचारी नियुक्त किया गया।
गणेश्वर राओ उत्तर दाता नंबर 1 ए ई सी ओ का सन 1930 से ₹40 माहवार से कर्मचारी था पहले उसकी नियुक्ति स्टेनो टाइपिस्ट की पदवी पर हुई थी बाद में यह मुख्य कर्मचारी बन गया उसने वी ई एस सी ओ के सेक्रेटरी होने का क्लेम किया बाद में आर. के. एन. जी. राजू ने गणेश्वर राओ को सेक्रेटरी नियुक्त किया और वह काम बतौर सेक्रेटरी के करता रहा वह रोजाना वी ई एस सी ओ का काम करता था उसका काम पैसे खर्च करना पैसे वसूल करना तथा मीटिंग को बुलाना माल खरीदना था इससे वी ई एस सी ओ और ए ई सी ओ के संचालन करता उस पर विश्वास करते थे उसके द्वारा तैयार किए बही खाते प्रबंध कर्ता अंश धारियों द्वारा देखे जाते थे उसके काम में सन 1946 तक शिकायत नहीं पाई गई।
अभियोजन के अनुसार 1946 के करीब उत्तर दाता नंबर वन गणेश्वर राव ने पुराने पुराने चार्टर्ड अकाउंटेंट को हटाकर इंटरनल ऑडिटर नियुक्त किया वह ग्रीन होटल में भी ऑडिटर थे जिसमें की उत्तर दाता नंबर वन संचालक था सन 1942 में आरकेएन जी राव का स्वर्गवास हो गया इसका फायदा उत्तर दाता नंबर वन ने लिया और उसने वी ई एस सी ओ का गबन करना चालू कर दिया क्योंकि ए ई सी ओ के साथ 1942 तक इकरारनामा था उत्तर दाता नंबर वन के बी रमन (राज्य साक्षी) की तरक्की अकाउंट्स क्लर्क में सीनियर अकाउंटेंट की करा दी इस वजह से गणेश्वर राव ने राज्य साक्षी को जीत लिया था इसकी जगह लक्ष्मी नारायण नियुक्त किया इन दोनों को ही उत्तर दाता नंबर 2 ने जीत लिया था सरकार ने लाइसेंस सन 1952 तक नवीनीकरण इस वजह से ए ई सी ओ का वी ई एस सी ओ से संबंध 1952 तक बढ़ गया और प्रतिवादी नंबर 1 पहले ही की तरह काम करता रहा।
दूसरे राजू के मरने के बाद पता चला कि वी ई एस सी ओ को मुवलिंग ₹42000 का देना है यह पैसा ए ई सी ओ ने वी ई एस सी ओ को बचत में से दे दिया उत्तर दाता नंबर 1 व उसके दोस्त किसी रईस आदमी की तलाश में थे जिसको ए ई सी ओ का प्रबंध कर्ता बनाया जाय इस लिए उत्तर दाता नंबर 1 व उसके दोस्तों ने कोशिश करके जी. बी. सुबा राजू को प्रबंध करता बना दिया यह आरकेएन राजू का रिश्तेदार था यह पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन अंग्रेजी में दस्तखत करना जानता था बड़े बड़े प्रतिष्ठानों से बिजली के खर्च के पैसे चेक से आया करते थे बाकी लोग नगद पैसा जमा कराया करते थे नकद पैसे इकट्ठे होकर उत्तर दाता नंबर दो लक्ष्मीनारायण को जमा किए जाते थे उत्तर दाता नंबर 1 के कहने पर उत्तर दाता नंबर 2 ने निजी डायरी बना ली उस डायरी में वह रकम लिखने की हिदायत दी गई जो कि उत्तर दाता नंबर 1 की चिट पर दी जाती थी। जो रकम उत्तर दाता नंबर 1 इन चिटों के द्वारा निकलवा ते थे वह वी ई एस सीईओ के खाते में सुरक्षित लिख देते थे यह रकम अपने रिश्तेदारों को दी जाती थी।
उत्तर दाता नंबर 1 ने एक नया खाता पन्ना माल खरीदने को पेशगी चालु किया जो रकम गबन की जाती थी वह इस खाते में बढ़ा दी जाती थी सुब्बाराजू इस प्रकार के बही खाते से संतुष्ट नहीं था इस वजह से उसने डीएस राजू को बही खाते की देखभाल के लिए नियुक्त किया वह ए ई सीओ में भी कार्य कर्ता था एक नया बहीखाता अनिश्चय बहीखाता तथा नई रोकड़ बही गबन को छिपाने के लिए बनाई 29 नवंबर 1951 की मीटिंग में उत्तर दाता ने अपने बही खाते छिपाएं और कहा कि रिपोर्ट अकाउंटेंट से आई नहीं है इसलिए मीटिंग स्थगित हो कर दिसंबर 1951 को हुई उस तारीख को फर्जी रिपोर्ट की गई।
एमजी कृष्ण अय्यर ने बही खाते की जांच की और पता लगाया कि कुछ रकमें आंध्र पावर सिस्टम के नाम लिखी है लेकिन वास्तव में वह रकमें कभी नहीं दी गई कलेक्टर ने अप्रैल 1952 में वी ई एस सी ओ की जायदाद उपरोक्त उपरोक्त रकम न देने पर कुर्क कर ली 30 अप्रैल 1952 को उत्तर दाता नंबर 1 ने अपनी जायदाद बेचकर आंध्र पावर सिस्टम को 59000 वी ई एस सी ओ की तरफ से चुका दिए और बाकी रकम देने का वायदा किया जिस वायदे को वह निभा नहीं पाया।
19-5-1952 को पुलिस में उत्तर दाता नंबर 1 के खिलाफ शिकायत की गई जांच के द्वारा ₹340000 का गवर्नर पता लगा 13 मई 1954 को दोनों उत्तर दाता मूर्ति भ्रमण के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया 13 सितंबर 1954 को रमन ने जुर्म मंजूर किया और राज्य साक्षी बनने को तैयार हो गया इस वजह सेअतिरिक्त न्यायालय ने उसको दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 के अनुसार माफ कर दिया।
वाद विचारण न्यायालय में- विचारण न्यायालय ने उत्तर दाता नंबर 1 के खिलाफ प्रत्येक आरोप को तथा उत्तर दाता नंबर 2 के खिलाफ षड्यंत्र में गबन के आरोप लगाकर सजा का हुक्म दिया।
प्रथम अपील- प्रथम अपील उत्तर दाता की मंजूर की तथा उत्तर दाता को छोड़ दिया।
वाद उच्चतम न्यायालय में
आंध्र प्रदेश सरकार ने विशेष इजाजत लेकर उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील दायर की धारा 239 में 234 (1) साथ-साथ पढ़नी चाहिए यदि एक साथ न्यायिक जांच में कुछ निरोध (रिस्ट्रिक्शंस) हो तो निरोध इस केस में सपना पथ क्यों कर दिए जाएं।
अपील कर्ता की ओर से यह अपील पेश की गई कि धारा 235 के अंतर्गत सब आरोपों के खिलाफ एक ही न्याय जान उचित है लेकिन धारा 235 व 239 में अंतर है यदि सब अपराध इसी श्रेणी में किए गए हो तो आरोपों की धारा 239 के अंतर्गत न्यायिक जांच की जा सकती है और धारा 234 लागू होती है।
इस केस में अवधि का प्रश्न ही नहीं उठता, इसलिए इस केस में धारा 239 लागू होती है।
उच्चतम न्यायालय ने कुछ संशोधन व निर्देश के साथ यह फैसला उच्च न्यायालय में आदेश के लिए भेज दिया।
वाद का निर्णय- इसलिए अपराधियों की दोष सिद्धि समाप्त की जाती है अपील उच्च न्यायालय में फिर से विचार के लिए भेजी जाने है।
वाद के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत
1. षड्यंत्र का आरोप अलग से बनना चाहिए।
2. गवाह को धारा 32 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत यादाश्त कराने के लिए बहीखाते दिखाई जा सकते हैं।
3. जिस व्यक्ति को क्षमादान दिया गया है उसकी साक्ष्य सभी परिस्थितियों को देख कर ही विश्वास करना चाहिए।
4. अगर धारा 342 के अंतर्गत पूछे गए विभिन्न प्रश्नों का अभियुक्तों ने सही उत्तर दे दिया है तो कोई गैरकानूनी कार्यवाही नहीं बनती है।
Andhra Pradesh Vs Ganeshwar Rao | Supreme Court Case
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