Bhagwa Das Case Law of Contract | भगवान दास गोवर्धन दास केडिया बनाम गिरधारी लाल पुरुषोत्तम एंड कंपनी

भगवान दास गोवर्धन दास केडिया बनाम गिरधारी लाल पुरुषोत्तम एंड कंपनी
भूमिका
यह प्रकरण किसी संविदा की पूर्णता तथा संविदा भंग के मामलों की सुनवाई की अधिकारिता से संबंधित है इस मामले में न्यायालय के सामने मुख्य रूप से दो बिंदु विचारणीय थे
1.टेलीफोन द्वारा किसी संविदा की स्थापना किए जाने पर वह कब पूर्ण मानी जाती है तथा
2. ऐसी संविदा के भंग किए जाने पर संविदा भंग के लिए वाद किस न्यायालय में दायर किया  जा सकता है
तथ्य
वादी प्रत्यय थी मैसर्स गिरधारी लाल पुरुषोत्तम दास एंड कंपनी द्वारा प्रतिवादी अपील आर्ची केडिया जिनिंग फैक्ट्री व तेल मिल खामगांव के विरुद्ध 31150/- रुपए की धनराशि के लिए नगर सिविल न्यायालय अहमदाबाद में एक वाद दायर किया गया
वादी का यह अभी कथन था की प्रतिवादी ने दिनांक 22 - 7-1959   को एक  मौखिक संविदा की थी जिसके अनुसार उसे बिनोला की खली भेजनी थी लेकिन वह नहीं भेजी गई संविदा का प्रपोजल एवं एक्सेप्टेंस दोनों टेलीफोन पर संपन्न हुए थे
वादी का यह भी कहना था कि वाद कारण अहमदाबाद में उत्पन्न हुआ था क्योंकि बिनोला की खली की स्थापना का वादी द्वारा प्रति ग्रहण अहमदाबाद में किया गया था संविदा की शर्तों के अनुसार बिनोला की खली का  परिदान प्रतिवादी द्वारा अहमदाबाद में किया जाना था तथा उसकी कीमत का भुगतान भी अमदाबाद के एक बैंक से प्राप्त करना था जबकि प्रतिवादी का यह अभी कथन था कि वाद कारण अहमदाबाद के न्यायालय क्षेत्राधिकार में उत्पन्न नहीं होकर खामगांव में उत्पन्न हुआ था जहां वादी की बिनोला की फली खरीदने की स्थापना को प्रतिवादी द्वारा प्रति गृहीत किया गया था माल का प्रदान भी खामगांव में ही किया जाना था तथा कीमत का संदाय भी खामगांव में ही किया जाना था इसलिए अमदाबाद के नगर सिविल न्यायालय को इस मामले की सुनवाई की अधिकारिता नहीं है
लेकिन विचारण न्यायालय द्वारा प्रतिवादी के कथनों को स्वीकार नहीं किया गया न्यायालय ने कहा कि टेलीफोन पर होने वाली संविदा को उस स्थान पर पूर्ण हुआ माना जाता है जहां प्रस्तावना का प्रति ग्रहण किया जाता है इस मामले में चूंकि वादी द्वारा अहमदाबाद में प्रस्तावना को स्वीकार किया गया था इसलिए अहमदाबाद के नगर सिविल न्यायालय को इस मामले की सुनवाई की अधिकारिता है प्रतिवादी द्वारा उक्त आदेश के विरुद्ध गुजरात उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण की याचिका प्रस्तुत की गई और यह प्रार्थना की गई कि मामले का गुण आगुण पर निस्तारण किया जाए लेकिन गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा इस याचिका को खारिज कर दिया गया इस पर गुजरात उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के विरुद्ध विशेष इजाजत से उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई
निर्णय
उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रतिवादी अपील आरती का मुख्य तक यह था कि टेलीफोन द्वारा की जाने वाली संविदा में जहां स्थापना का प्रति ग्रहण किया जाता है वही संविदा पूर्ण हुई मानी जाती है और उसी क्षेत्र के न्यायालय को ऐसे मामलों की सुनवाई करने की अधिकारिता होती है जबकि वादी प्रत्यय अर्थी का यह कहना था कि स्थापना करना वाद करने का एक भाग है इसलिए ऐसे मामलों में सुनवाई की अधिकारिता उच्च न्यायालय को होती है जिसकी स्थानीय अधिकारिता में स्थापना की गई हो और उसे प्रति कृत किए जाने पर वह संविदा के रूप में परिवर्तित हुई हो संविदा की पूर्णता के लिए प्रस्तावना को प्रतिक रहित किया जाना आवश्यक है और जहां पर स्थापना के प्रति ग्रहण की सूचना दी जाती है वही संविदा पूर्ण हुई मानी जाती है
भारतीय संविदा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविदा की पूर्णता के लिए दो बातें आवश्यक हैं
1. प्रस्थापना एवं प्रति ग्रहण तथा
2. प्रति ग्रहण की सूचना परस्थापन कर्ता को दिया जाना
धारा 4 के अनुसार स्थापना की सन सूचना तब पूर्ण होती है जब वह प्रति ग्रहण करने वाले व्यक्ति के ज्ञान में आ जाए इसी प्रकार  प्रति ग्रहण की सन सूचना तब पूर्ण होती है जब वह पारेषण के अनुक्रम में इस प्रकार रख दी जाए कि वह प्रति ग्रहण करने वाले व्यक्ति की नियंत्रण शक्ति से बाहर हो जाए और जब वह प्रस्थापना करने वाले व्यक्ति के ज्ञान में आ जाए
इस मामले में टेलीफोन पर प्रस्तावना अहमदाबाद में की गई थी और उसका प्रति ग्रहण खामगांव में किया गया था इस प्रति ग्रहण की सन सूचना अमदाबाद में की गई समझी जाएगी और इसलिए अहमदाबाद के नगर सिविल न्यायालय को इसकी सुनवाई की अधिकारिता है उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त तर्कों को स्वीकार करते हुए यह अभी निर्धारित किया गया कि संविदा अहमदाबाद में पूर्ण हुई थी इसलिए वहां के नगर सिविल न्यायालय को इस मामले की सुनवाई करने की अधिकारिता है।
न्यायालय का निर्णय न्यायमूर्ति शाह एवं न्यायमूर्ति वांचू द्वारा दिया गया न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला ने विसम्मती प्रकट की न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला का मत था कि संविदा वहां पूर्ण हुई मानी जाएगी जहां पर स्थापना को प्रतीगृहीत किया गया था।
विधि के सिद्धांत
इस मामले में विधि का यह महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि टेलीफोन द्वारा की जाने वाली  संविदाओं में संविदा वहां पूर्ण हुई मानी जाती है जहां प्रति ग्रहण की सूचना प्राप्त होती है डाक व तार द्वारा की जाने वाली  संविदाओं  का नियम टेलीफोन द्वारा की  जाने वाली संविदाओं परलागू नहीं होता है।

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