Section 134 The Trade Marks Act, 1999

 


Section 134 The Trade Marks Act, 1999: 

Suit for infringement, etc., to be instituted before District Court.—

(1) No suit—

(a) for the infringement of a registered trade mark; or

(b) relating to any right in a registered trade mark; or

(c) for passing off arising out of the use by the defendant of any trade mark which is identical with or deceptively similar to the plaintiff’s trade mark, whether registered or unregistered, shall be instituted in any court inferior to a District Court having jurisdiction to try the suit.

(2) For the purpose of clauses (a) and (b) of sub-section (1), a “District Court having jurisdiction” shall, notwithstanding anything contained in the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908) or any other law for the time being in force, include a District Court within the local limits of whose jurisdiction, at the time of the institution of the suit or other proceeding, the person instituting the suit or proceeding, or, where there are more than one such persons any of them, actually and voluntarily resides or carries on business or personally works for gain. Explanation.—For the purposes of sub-section (2), “person” includes the registered proprietor and the registered user.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 134 The Trade Marks Act, 1999: 

A.P. State Electricity Board vs Mateti S.V.S.Ramachandra Rao on 1 July, 2015

Indian Performing Rights Society vs Sanjay Dalia & Anr on 1 July, 2015

Dabur India Ltd vs K.R. Industries on 16 May, 2008

D.A.V.Boys Sr.Sec.School vs Dav College Managing Committee on 23 July, 2010

Suresh Dhanuka vs Sunita Mohapatra on 2 December, 2011

Suresh Dhanuka vs Sunita Mohapatra on 2 December, 2011

M/S Paragon Rubber Industries vs M/S Pragati Rubber Mills & Ors on 29 November, 2013

M/S. Dhodha House vs S.K. Maingi on 15 December, 2005

American Home Products vs Mac Laboratories Private Limited on 30 September, 1985




व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 की धारा 134 का विवरण : 

 अतिलंघन, आदि के लिए वाद का जिला न्यायालय के समक्ष संस्थित किया जाना-(1) कोई भी वाद-

(क) रजिस्ट्रीकृत व्यापार चिह्न के अतिलंघन के लिए; या

(ख) रजिस्ट्रीकृत व्यापार चिह्न के किसी अधिकार से संबंधित; या

(ग) प्रतिवादी द्वारा किसी चिह्न के, जो वादी के व्यापार चिह्न से, चाहे वह रजिस्ट्रीकृत हो या अरजिस्ट्रीकृत, समरूप है या इतना समरूप है कि धोखा हो जाए, उपयोग से उद्भूत चला देने के लिए,

वाद का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले जिला न्यायालय के अवर किसी न्यायालय में संस्थित नहीं किया जाएगा ।

(2) उपधारा (1) के खंड (क) और खंड (ख) के प्रयोजन के लिए, अधिकारिता वाले जिला न्यायालय" के अंतर्गत, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, वह जिला न्यायालय है जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वाद या अन्य कार्यवाही संस्थित करने के समय वाद या कार्यवाही संस्थित करने वाला व्यक्ति या जहां एक से अधिक ऐसे व्यक्ति हैं वहां उनमें से कोई वस्तुतः और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार या अभिलाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है ।

स्पष्टीकरण-उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए व्यक्ति" के अंतर्गत रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी और रजिस्ट्रीकृत उपयोगकर्ता भी है ।



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