Section 41 Arbitration and Conciliation Act, 1996

 


Section 41  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 


Provisions in case of insolvency.—

(1) Where it is provided by a term in a contract to which an insolvent is a party that any dispute arising thereout or in connection therewith shall be submitted to arbitration, the said term shall, if the receiver adopts the contract, be enforceable by or against him so far as it relates to any such dispute.

(2) Where a person who has been adjudged an insolvent had, before the commencement of the insolvency proceedings, become a party to an arbitration agreement, and any matter to which the agreement applies is required to be determined in connection with, or for the purposes of, the insolvency proceedings, then, if the case is one to which sub-section (1) does not apply, any other party or the receiver may apply to the judicial authority having jurisdiction in the insolvency proceedings for an order directing that the matter in question shall be submitted to arbitration in accordance with the arbitration agreement, and the judicial authority may, if it is of opinion that, having regard to all the circumstances of the case, the matter ought to be determined by arbitration, make an order accordingly.

(3) In this section the expression “receiver” includes an Official Assignee.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 41  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 

Secur Industries Ltd vs M/S Godrej & Boyce Mfg. Co. Ltd. &  on 26 February, 2004



माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 41 का विवरण : 

दिवाले की दशा में उपबंध-(1) जहां किसी संविदा में, जिसका कोई पक्षकार दिवालिया हो, किसी निबंधन द्वारा यह उपबंधित हो कि उससे या उसके संबंध में पैदा होने वाला कोई विवाद माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत किया जाएगा वहां, यदि रिसीवर संविदा अंगीकृत कर ले तो, उक्त निबंधन जहां तक वह ऐसे किसी विवाद से संबंधित हो, रिसीवर के द्वारा या उसके विरुद्ध प्रवर्तनीय होगा ।


(2) जहां कि कोई व्यक्ति, जो दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जा चुका हो, दिवाले की कार्यवाही के प्रारम्भ के पूर्व किसी माध्यस्थम् करार का पक्षकार हो गया हो और किसी ऐसे विषय का, जिसे करार लागू हो अवधारित किया जाना दिवाले की कार्यवाही के संबंध में या प्रयोजनों के लिए अपेक्षित हैं वहां, यदि मामला ऐसा हो, जिसे उपधारा (1) लागू नहीं होती है तो कोई अन्य पक्षकार या रिसीवर, दिवाले की कार्यवाही में अधिकारिता रखने वाले न्यायिक प्राधिकारी से यह निदेश देने वाले आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा कि प्रश्नगत मामला माध्यस्थम् करार के अनुसार माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत किया जाएगा और यदि न्यायिक प्राधिकारी की यह राय हो कि मामले की सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामला माध्यस्थम् द्वारा अवधारित किया जाना चाहिए, तो वह तद्नुसार आदेश दे सकेगा ।

(3) इस धारा में रिसीवर" पद के अन्तर्गत शासकीय समनुदेशिती आता है ।



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