Section 38 Arbitration and Conciliation Act, 1996
Section 38 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Deposits.—
(1) The arbitral tribunal may fix the amount of the deposit or supplementary deposit, as the case may be, as an advance for the costs referred to in sub-section (8) of section 31, which it expects will be incurred in respect of the claim submitted to it: Provided that where, apart from the claim, a counter-claim has been submitted to the arbitral tribunal, it may fix separate amount of deposit for the claim and counter-claim.
(2) The deposit referred to in sub-section (1) shall be payable in equal shares by the parties: Provided that where one party fails to pay his share of the deposit, the other party may pay that share: Provided further that where the other party also does not pay the aforesaid share in respect of the claim or the counter-claim, the arbitral tribunal may suspend or terminate the arbitral proceedings in respect of such claim or counter-claim, as the case may be.
(3) Upon termination of the arbitral proceedings, the arbitral tribunal shall render an accounting to the parties of the deposits received and shall return any unexpended balance to the party or parties, as the case may be.
Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 38 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
S.K.Jain vs State Of Haryana & Anr on 23 February, 2009
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 38 का विवरण :
निक्षेप-(1) माध्यस्थम् अधिकरण, धारा 31 की उपधारा (8) में निर्दिष्ट खर्च के लिए अग्रिम के रूप में, यथास्थिति, निक्षेप या अनुपूरक निक्षेप की रकम नियत कर सकेगा, जिसकी वह उसे निवेदित दावे की बाबत, उपगत होने की प्रत्याशा करता है :
परन्तु जहां, दावे से अलग एक प्रतिदावा माध्यस्थम् अधिकरण को निवेदित किया गया है, वहां वह दावे और प्रतिदावे के लिए निक्षेप की पृथक् रकम नियत कर सकेगा ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट निक्षेप, पक्षकारों द्वारा बराबर हिस्सों में संदेय होगा :
परंतु जहां निक्षेप के अपने हिस्से की रकम का संदाय करने में कोई पक्षकार असफल रहता है, वहां दूसरा पक्षकार उक्त हिस्से का संदाय कर सकता है :
परंतु यह और कि जहां दूसरा पक्षकार भी दावे या प्रतिदावे की बाबत, पूर्वोक्त हिस्से का संदाय नहीं करता है वहां माध्यस्थम् अधिकरण, यथास्थिति, ऐसे दावे या प्रतिदावे की बाबत, माध्यस्थम् कार्यवाहियों को निलंबित या समाप्त कर सकेगा ।
(3) माध्यस्थम् कार्यवाहियों के समापन पर माध्यस्थम् अधिकरण प्राप्त निक्षेपों का पक्षकारों को हिसाब देगा और किसी व्यय न किए गए अतिशेष को, यथास्थिति, पक्षकार या पक्षकारों को वापस करेगा ।
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