Section 31 Arbitration and Conciliation Act, 1996
Section 31 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Form and contents of arbitral award.—
(1) An arbitral award shall be made in writing and shall be signed by the members of the arbitral tribunal.
(2) For the purposes of sub-section (1), in arbitral proceedings with more than one arbitrator, the signatures of the majority of all the members of the arbitral tribunal shall be sufficient so long as the reason for any omitted signature is stated.
(3) The arbitral award shall state the reasons upon which it is based, unless—
(a) the parties have agreed that no reasons are to be given, or
(b) the award is an arbitral award on agreed terms under section 30.
(4) The arbitral award shall state its date and the place of arbitration as determined in accordance with section 20 and the award shall be deemed to have been made at that place.
(5) After the arbitral award is made, a signed copy shall be delivered to each party.
(6) The arbitral tribunal may, at any time during the arbitral proceedings, make an interim arbitral award on any matter with respect to which it may make a final arbitral award.
(7) (a) Unless otherwise agreed by the parties, where and in so far as an arbitral award is for the payment of money, the arbitral tribunal may include in the sum for which the award is made interest, at such rate as it deems reasonable, on the whole or any part of the money, for the whole or any part of the period between the date on which the cause of action arose and the date on which the award is made.
(b) A sum directed to be paid by an arbitral award shall, unless the award otherwise directs, carry interest at the rate of eighteen per centum per annum from the date of the award to the date of payment.
(8) Unless otherwise agreed by the parties,—
(a) the costs of an arbitration shall be fixed by the arbitral tribunal;
(b) the arbitral tribunal shall specify—
(i) the party entitled to costs,
(ii) the party who shall pay the costs,
(iii) the amount of costs or method of determining that amount, and
(iv) the manner in which the costs shall be paid. Explanation.—For the purpose of clause (a), “costs” means reasonable costs relating to—
(i) the fees and expenses of the arbitrators and witnesses,
(ii) legal fees and expenses,
(iii) any administration fees of the institution supervising the arbitration, and
(iv) any other expenses incurred in connection with the arbitral proceedings and the arbitral award.
Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 31 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
M/S Hyder Consulting(Uk) Ltd vs Governer State Of Orissa Tr.Chief on 25 November, 2014
Dakshin Haryana Bijli Vitran vs M/S Navigant Technologies Pvt. on 2 March, 2021
State Of Maharashtra & Ors vs M/S. Ark Builders Pvt.Ltd on 28 February, 2011
Haresh Dayaram Thakur vs State Of Maharashtra And Ors on 5 May, 2000
Deccan Paper Mills Co. Ltd. vs Regency Mahavir Properties . on 19 August, 2020
Tata Consultancy Services vs Vishal Ghisulal Jain on 23 November, 2021
Narayan Prasad Lohia vs Nikunj Kumar Lohia And Others on 28 January, 2003
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 31 का विवरण :
माध्यस्थम् पंचाट का प्ररूप और उसकी विषय-वस्तु-(1) माध्यस्थम् पंचाट लिखित में दिया जाएगा और माध्यस्थम् अधिकरण के सदस्यों द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, ऐसी माध्यस्थम् कार्यवाहियों में जिनमें एक से अधिक मध्यस्थ हैं, माध्यस्थम् अधिकरण के सभी सदस्यों में से बहुमत के हस्ताक्षर पर्याप्त होंगे यह तब जब कि किसी लोप किए गए हस्ताक्षर के लिए कारण अभिकथित किए गए हों ।
(3) माध्यस्थम् पंचाट में वे कारण अभिकथित होंगे जिन पर वह आधारित हैं, जब तक कि-
(क) पक्षकारों ने यह करार न किया हो कि कोई कारण नहीं दिए जाने हैं, या
(ख) पंचाट, धारा 30 के अधीन करार पाए गए निबंधनों पर माध्यस्थम् पंचाट है ।
(4) माध्यस्थम् पंचाट में, धारा 20 के अनुसार अवधारित उसकी तारीख और माध्यस्थम् का स्थान अभिकथित होगा और पंचाट उस स्थान पर दिया गया समझा जाएगा ।
(5) माध्यस्थम् पंचाट दिए जाने के पश्चात्, प्रत्येक पक्षकार को उसकी एक हस्ताक्षरित प्रति दी जाएगी ।
(6) माध्यस्थम् अधिकरण, माध्यस्थम् कार्यवाहियों के दौरान किसी भी समय, ऐसे किसी विषय पर जिस पर कि वह अंतिम माध्यस्थम् पंचाट दे सकता है, अंतरिम पंचाट दे सकेगा ।
(7) (क) जब तक कि पक्षकारों द्वारा अन्यथा करार न पाया जाए, जहां और जहां तक कि कोई माध्यस्थम् पंचाट धन के संदाय के लिए है, माध्यस्थम् अधिकरण, उस राशि में, जिसके लिए पंचाट दिया गया है, संपूर्ण धन पर या उसके किसी भाग पर, वह तारीख जिसको पंचाट दिया गया है, के बीच की संपूर्ण अवधि या उसके किसी भाग के लिए ऐसी दर से जो वह ठीक समझे, ब्याज सम्मिलित कर सकेगा ।
(ख) उस राशि पर, जिसका संदाय किए जाने का माध्यस्थम् पंचाट द्वारा निदेश किया गया है, जब तक कि पंचाट में अन्यथा निदेश न किया गया हो, पंचाट की तारीख से संदाय किए जाने की तारीख तक, अठारह प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज संदेय होगा ।
(8) जब तक कि पक्षकारों द्वारा अन्यथा करार न पाया गया हो-
(क) माध्यस्थम् का खर्च माध्यस्थम् अधिकरण द्वारा नियत किया जाएगा ;
(ख) माध्यस्थम् अधिकरण निम्नलिखित विनिर्दिष्ट करेगा,-
(i) खर्चे का हकदार पक्षकार,
(ii) वह पक्षकार, जो खर्च का संदाय करेगा,
(iii) खर्च की रकम या उक्त रकम अवधारित करने की पद्धति, और
(iv) वह रीति, जिससे खर्चे का संदाय किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण-खंड (क) के प्रयोजन के लिए, खर्च" से निम्नलिखित से संबंधित उचित खर्च अभिप्रेत हैं-
(i) मध्यस्थों और साक्षियों की फीस और व्यय,
(ii) विधिक फीस और व्यय,
(iii) माध्यस्थम् का पर्यवेक्षण करने वाली संस्था की प्रशासन
(iv) माध्यस्थम् कार्यवाहियों और माध्यस्थम् पंचाट के संबंध में उपगत कोई अन्य व्यय ।
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